अभिषेक कुमार सिंह का ब्लॉग: राजनीति की नई शैली बनती जा रही है वर्चुअल रैली
By अभिषेक कुमार सिंह | Published: September 19, 2020 04:41 PM2020-09-19T16:41:39+5:302020-09-19T16:41:39+5:30
वर्चुअल रैलियों की शुरुआत भारत में हो चुकी है लेकिन कई सवाल भी हैं. प्रबंधों को लेकर कई सवाल हैं. जैसे, क्या ये उपाय प्रभावी होंगे. क्या इनसे वैसे ही उद्देश्य हासिल हो सकते हैं जैसे वास्तविक रैलियों आदि से होते हैं.
एक वक्त था जब देश में राजनीतिक दल अपनी नीतियों के प्रचार-प्रसार के लिए रेडियो और टीवी पर निर्भर रहते थे. खास तौर से ऑल इंडिया रेडियो और दूरदर्शन पर चुनावों के दौरान राजनीतिक दलों को आवंटित होने वाले समय को लेकर काफी खींचतान रहती थी. लेकिन ऐसा सिर्फ चुनावी काल में होता था.
आम दिनों में अपनी योजनाओं आदि की जानकारी देने के लिए नेतागण जनसभाओं का आयोजन करते थे. उनमें दिए गए भाषणों से राजनेता और उनके दलों की एक साख बनती थी. हालांकि इंटरनेट के आगमन के साथ ऐसे कई कायदे टूट गए और जनसंवाद के लिए सोशल मीडिया जैसे मंच नया जरिया बन गए, पर कोरोना काल में जनता से बातचीत के तौर-तरीके एक नए कलेवर में सामने आए हैं.
वर्चुअल रैली इस दौर की नई सच्चाई
यह तरीका है वर्चुअल रैली का, जिसकी शुरुआत यूं तो सत्ताधारी पार्टी भाजपा ने की है लेकिन अब दूसरे दल भी इसमें हाथ आजमा रहे हैं. अमेरिका तक में वर्चुअल रैलियों की शुरुआत हो गई है.
इस साल अगस्त, 2020 में अमेरिका के राष्ट्रपति पद के नवंबर में होने वाले चुनाव में रिपब्लिकन पार्टी के उम्मीदवार और मौजूदा राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प के समर्थन में आयोजित हिंदूज4ट्रम्प वर्चुअल रैली आयोजित हुई, जिसके बारे में दावा किया गया कि उसे रिकॉर्ड संख्या में एक लाख से अधिक भारतीय-अमेरिकियों ने देखा.
कोरोना सीखा दिए नए तौर-तरीके
असल में कोरोना वायरस से पैदा महामारी कोविड-19 के कारण पूरी दुनिया में हालात ऐसे हैं कि किसी भी सार्वजनिक जगह पर लोग जमा नहीं हो सकते. लेकिन अन्य कार्यक्रमों समेत चुनावी शेड्यूल को निर्धारित वक्त पर पूरा करने की विवशताएं हैं, लिहाजा इसके तौर-तरीके खोजे जा रहे हैं.
वैसे तो दुनिया भर के राजनेता और उनके दल अरसे से वास्तविक रैली के साथ-साथ सोशल मीडिया का इस्तेमाल अपने समर्थकों और जनता से संपर्क बनाने के लिए करते रहे हैं. बेशक, डिजिटल या वर्चुअल रैली जरा नई बात है. इनकी सफलता या नाकामी ही यह साबित करेगी कि वर्चुअल रैलियां भविष्य में होने वाली वास्तविक रैलियों की जगह ले पाती हैं या नहीं, लेकिन फिलहाल तो कोई और विकल्प ही शेष नहीं है.
कितनी प्रभावी हैं वर्चुअल रैली
जिस तरह स्कूल-कॉलेजों की पढ़ाई भी ऑनलाइन की जा चुकी है, उसी तरह लग रहा है कि रैली के वर्चुअल प्रबंधों को लेकर लोगों में ज्यादा एतराज नहीं होंगे. पर इन प्रबंधों को लेकर कई सवाल हैं. जैसे, क्या ये उपाय प्रभावी होंगे. क्या इनसे वैसे ही उद्देश्य हासिल हो सकते हैं जैसे वास्तविक रैलियों आदि से होते हैं. और क्या ये किफायती भी होंगे.
किसी मीटिंग या वेबिनार के मुकाबले रैली का वर्चुअल आयोजन आसान नहीं है. वास्तविक रैली की तरह ही वर्चुअल रैली के आयोजन की तैयारी पूरे तामझाम के साथ की जाती है.
कैसे होती है वर्चुअल रैली की तैयारी
इसके लिए केंद्रीय इकाई की तरफ से करीब हफ्ते भर पहले पार्टी की स्थानीय राज्य इकाई को संदेश भेजा जाता है कि अमुक-अमुक तारीखों पर केंद्रीय नेता कार्यकर्ताओं और जनता को संबोधित करेंगे. राज्य इकाई यह संदेश ब्लॉक, जिला और राज्य पदाधिकारियों को इस रैली का प्रचार अपने फेसबुक और ट्विटर अकाउंट के जरिये करने के संबंध में देती है.
इसके लिए एक ओर जहां केंद्रीय नेता के आवास या दफ्तर पर मंच, पृष्ठभूमि में दिखने वाला बैनर और विभिन्न एंगल से ऑडियो-वीडियो रिकॉर्ड करने वाले कैमरे तैयार किए जाते हैं, वहीं ब्लॉक, जिला और राज्य स्तर के दफ्तरों और कार्यकर्ताओं के घर-कार्यालयों पर एलईडी स्क्रीनें लगा दी जाती हैं.
पार्टी के राज्य मुख्यालय पर भी मंच और कैमरे तैयार रखे जाते हैं ताकि वहां उपस्थित चुने हुए कार्यकर्ता शीर्ष नेताओं के बयानों को नीचे पहुंचा सकें और यदि संवाद की कोई गुंजाइश बनती है तो जनता व निचले स्तर के कार्यकर्ताओं की बात वर्चुअल रैली के दौरान ही शीर्ष नेता तक पहुंचा दी जाए.
एक और खास बात यह है कि इसमें चाहे शीर्ष नेता हो या राज्यस्तरीय नेता, सभी को डिजिटल माध्यम की सीमाओं को ध्यान में रखकर अपने वक्तव्य छोटे रखने होते हैं. वर्चुअल रैली में चूंकि जनता-कार्यकर्ता का मूड भांपना मुमकिन नहीं होता है, इसलिए नेतागण कोशिश करते हैं कि वे अपनी बात ज्यादा न खींचें.
यदि वे ऐसा करते हैं तो लोग बोरियत का अनुभव कर वर्चुअल रैली देखना बंद कर सकते हैं क्योंकि उन्हें ऐसा करते देखे जाने और शीर्ष नेताओं की नाराजगी ङोलने का खतरा नहीं होता है.