अभिषेक कुमार सिंह का ब्लॉग: हवा पर सवार होकर कोहराम मचाता कोरोना
By अभिषेक कुमार सिंह | Updated: April 27, 2021 16:40 IST2021-04-27T16:39:40+5:302021-04-27T16:40:06+5:30
कोरोना वायरस हवा में फैलता है, इसे लेकर 32 देशों के 200 वैज्ञानिकों ने पिछले साल जुलाई, 2020 में भी डब्ल्यूएचओ को पत्र लिखा था.

(फोटो सोर्स- ट्विटर)
कोरोना संक्रमण के बारे में नई जानकारी यह है कि हवा के जरिये उसके वायरस के फैलने की आशंका काफी ज्यादा है. यह दावा दुनिया के प्रतिष्ठित मेडिकल जर्नल ‘द लैंसेट’ में प्रकाशित एक अध्ययन में किया गया है. इस अध्ययन में ऐसे दस कारण गिनाए गए, जिनकी वजह से कोरोना वायरस तेजी से फैलने लगता है यानी सुपर-स्प्रेडर बन जाता है और कोविड-19 महामारी के तेज प्रसार की वजह बन जाता है.
अध्ययन इस पर जोर देता है कि कोविड-19 का प्रसार (ट्रांसमिशन) किसी संक्रमित व्यक्ति की छींक या श्वास से निकलने वाले भारी कणों (ड्रॉपलेट्स) या बूंदों की बजाय एयरोसोल यानी हवा के कणों के जरिये होना ज्यादा आसान है. इसकी पुष्टि क्वारंटीन सेंटर के रूप में इस्तेमाल में लाए जा रहे होटलों में एक-दूसरे से सटे कमरों में रह रहे लोगों के बीच कोरोना ट्रांसमिशन होने पर हुई.
इस अध्ययन में एक संक्रमित व्यक्ति को शामिल किया गया. वह सुपर स्प्रेडर साबित हुआ और उसने 53 लोगों को संक्रमित कर दिया. इनमें से कई लोग तो आपस में संपर्क में भी नहीं आए थे. ऐसे में माना जा रहा है कि यह हवा में मौजूद कोरोना वायरस से संक्रमित हुए. रिपोर्ट यह भी कहती है कि कोरोना का संक्रमण खुली जगहों की बजाय बंद जगहों पर ज्यादा तेजी से फैलता है. इसका मतलब यह है कि ज्यादातर जगहों को हवादार बनाकर संक्रमण का फैलाव घटाया जा सकता है.
लैंसेट का यह निष्कर्ष असल में एक समीक्षा रिपोर्ट पर आधारित है, जिसे ब्रिटेन, अमेरिका व कनाडा के वैज्ञानिकों ने तैयार किया है. समीक्षा रिपोर्ट की मुख्य लेखिका ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी की त्रिश ग्रीनहाल हैं. ग्रीनहाल के मुताबिक कोरोना वायरस के हवा में फैलने की इस सूचना का सीधा अभिप्राय यह है कि अभी तक दुनिया मास्क पहनने और सोशल डिस्टेंसिंग जैसे जिन उपायों के बल पर खुद कोरोना से महफूज मान रही थी, वे उपाय हवा में कोरोना के संक्रमण की खबर के साथ बौने हो गए हैं. हालांकि हवा से वायरस फैलने का मतलब यह नहीं है कि हवा संक्रमित है, बल्कि इसका अर्थ है कि वायरस हवा में काफी समय तक मौजूद रह सकता है.
हवा में कोरोना संक्रमण फैलने की नई सूचनाओं के आधार पर विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) से कोरोना वायरस के संक्रमण की उस परिभाषा को बदलने की मांग की जा रही है, जो उसने पिछले साल जारी की थी. पिछले साल विश्व स्वास्थ्य संगठन और कई अन्य शोधकर्ताओं ने कोरोना वायरस के प्रसार की परिभाषाओं में बार-बार स्पष्ट किया था कि यह हवा में फैलने वाली बीमारी नहीं है. मगर एरोसोल यानी हवा में फैली पानी की छोटी बूंदों के जरिये इसका वायरस कुछ फुट तक हवा में यात्रा कर सकता है.
यहां समझना होगा कि किसी संक्रामक बीमारी को फैलाने वाला एरोसोल आखिर कैसे बनता है. यह असल में तब बनता है, जब छींक या खांसी के जरिये श्वसन तंत्र से निकली छोटी-छोटी बूंदें थोड़ी देर के लिए हवा में तैरने लगती हैं. हालांकि अभी तक माना जाता था कि ये छोटी-छोटी बूंदें हवा के साथ यात्रा नहीं कर सकतीं और जल्दी ही खत्म हो जाती हैं. लेकिन अब मिले सबूतों के आधार पर अध्ययन कह रहे हैं कि कोरोना के मामले में ऐसा हो रहा है और यह एक गंभीर बात है.
कोरोना वायरस हवा में फैलता है, इसे लेकर 32 देशों के 200 वैज्ञानिकों ने पिछले साल जुलाई, 2020 में भी डब्ल्यूएचओ को पत्र लिखा था. उन्होंने यह भी कहा था कि छोटे-छोटे ड्रापलेट्स (बूंदें) भी किसी को संक्रमित कर सकते हैं. लेकिन तब डब्ल्यूएचओ ने कहा था कि वायरस के इन्फ्लुएंजा या खसरे की तरह हवा में फैलने में सक्षम होने के लायक पर्याप्त सबूत नहीं हैं.
संगठन के मुताबिक हवा के जरिये फैलने वाली संक्रामक बूंदें बेहद नजदीकी और एक निश्चित दायरे के अंदर मौजूद लोगों को ही संक्रमित कर सकती हैं. पर इस बार 32 देशों के 239 वैज्ञानिकों ने नए अध्ययनों से मिले सबूतों को रेखांकित किया है कि वायरस को ले जाने वाले हवा में तैरते छोटे कण भी लोगों को संक्रमित कर सकते हैं.
एक दौर था जब डब्ल्यूएचओ बेहद घातक संक्रमण इबोला को लेकर भी कोरोना जैसी राय रखता था. उसे इबोला के इन्फ्लुएंजा या खसरे की तरह हवा के जरिये फैलने की थ्योरी में यकीन नहीं था.
विश्व स्वास्थ्य संगठन की राय थी कि इंसानों में यह संक्रमण यानी इबोला चिंपांजी, गोरिल्ला और जंगली हिरणों जैसे कई जीवों के खून, स्राव, विभिन्न अंगों और शरीर से निकलने वाले द्रवों के नजदीकी संपर्क में आने से होता है. लेकिन अब से करीब दस साल पहले 2012 में ‘साइंटिफिक रिपोर्ट्स’ में छपी रिपोर्ट में कनाडा के वैज्ञानिकों ने साबित कर दिया कि इबोला का वायरस बिना किसी प्रत्यक्ष संपर्क के ही सूअरों से बंदरों में फैल गया. इन वैज्ञानिक शोधकर्ताओं ने दावा किया कि इसकी वजह संक्रमण का हवा में फैलना और वहां बने रहना था.