अभय कुमार दुबे का ब्लॉग: उत्तर प्रदेश में सब कुछ ठीक नहीं है भाजपा के लिए
By अभय कुमार दुबे | Published: November 17, 2021 09:17 AM2021-11-17T09:17:01+5:302021-11-17T09:20:22+5:30
आंकड़ों के लिहाज से भाजपा के लिए एक बहुत चिंताजनक बात यह है कि भाजपा को होने वाला नुकसान सीधे-सीधे समाजवादी पार्टी के खाते में जुड़ रहा है.
पांच राज्यों में सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण उत्तर प्रदेश का चुनाव है. 403 सीटों की विधानसभा में जो पार्टी 202 या उससे ज्यादा सीटें लाएगी, वह न केवल उत्तरप्रदेश पर राज्य करेगी बल्कि राष्ट्रीय स्तर पर राजनीति को प्रभावित करने में सक्षम होगी. भाजपा के लिए यह चुनाव करो या मरो की हैसियत रखता है.
पश्चिम बंगाल में ममता बनर्जी के हाथों भारी पराजय के बाद अगर उत्तर प्रदेश में उसका ग्राफ नीचे गया तो पार्टी में भगदड़ मच जाएगी. अभी पार्टी के भीतर और बाहर एक टीना फैक्टर (देयर इज नो अल्टरनेटिव) बना हुआ है. उत्तर प्रदेश में अगर भाजपा ने तगड़ी जीत हासिल न की, तो यह टीना फैक्टर पहले की तरह प्रभावी नहीं रह जाएगा.
मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की राजनीति को तो करारा धक्का लगेगा ही, पिछले सात साल में यह भाजपा की सबसे करारी हार होगी.
इस राजनीतिक स्थिति की रोशनी में देखने पर सी-वोटर के सर्वेक्षण की तीसरी कड़ी भारतीय जनता पार्टी के लिए बेहद चिंताजनक है. जिस पार्टी ने 2017 में चालीस फीसदी वोट प्राप्त कर तीन सौ से ज्यादा सीटें हासिल की हों, उसे यह सर्वेक्षण करीब सौ सीटों का नुकसान होता हुआ दिखा रहा है. वोट का प्रतिशत अभी उतना ही है, पर वही प्रतिशत सीटें कम दे रहा है.
जाहिर है कि भाजपा उत्तर प्रदेश जैसे विशाल प्रदेश के कुछ हिस्सों में (जैसे पश्चिमी उत्तर प्रदेश में किसान आंदोलन के कारण) हार रही है, और कुछ हिस्सों में टक्कर बराबर की होने की तरफ है (जैसे पूर्वी उत्तर प्रदेश). जिन हिस्सों में वह जीत रही है, वहां उसे मिलने वाले वोट बर्बाद हो रहे हैं. ऊपर से यह नुकसान क्रमश: होता हुआ दिखता है. सितंबर से नवंबर के बीच यानी तीन महीने में एक भी बार ऐसा मौका नहीं आया, जब वह अपने नुकसान को रोक पाती, और विपरीत रुझान को पलटते हुए दिखती.
इस बीच में उसने अनावश्यक गलतियां भी की हैं- जैसे लखीमपुर खीरी की घटना. सी-वोटर के ताजा सर्वेक्षण में लोगों से यह भी पूछा गया कि लखीमपुर खीरी कांड का भाजपा को नुकसान होगा या नहीं? तो बहुमत का फैसला यही आया कि नुकसान होगा. दूसरी तरफ भाजपा का सामाजिक समीकरण भी बिगड़ता हुआ दिख रहा है.
वोटरों से यह सवाल भी पूछा गया कि क्या ओमप्रकाश राजभर और उनकी पार्टी के समाजवादी पार्टी से जुड़ जाने से भाजपा को नुकसान होगा? यहां भी जवाब हां में मिला.
आंकड़ों के लिहाज से भाजपा के लिए एक बहुत चिंताजनक बात यह है कि भाजपा को होने वाला नुकसान सीधे-सीधे समाजवादी पार्टी के खाते में जुड़ रहा है. यानी भाजपा विरोधी भावनाओं का लाभ कांग्रेस, आम आदमी पार्टी, बसपा या असदुद्दीन ओवैसी के बीच बिखरकर बर्बाद नहीं हो रहा है. समाजवादी पार्टी धीरे-धीरे, पर लगातार भाजपा की मुख्य प्रतिद्वंद्वी की स्थिति में आती जा रही है.
चाहे भाजपा विरोधी वोटर हों, या हाल ही में उससे फिरंट हुई सामाजिक शक्तियां हों, सभी को लगने लगा है कि अब सपा ही भाजपा को हरा सकती है. यह घटनाक्रम बताता है कि तकनीकी रूप से विपक्ष की भाजपा विरोधी एकता न होते हुए भी भाजपा विरोधी वोट कमोबेश एक ही ध्रुव पर जमा होने की प्रवृत्ति दिखा रहे हैं. आंकड़े यह भी कह रहे हैं कि सितंबर में भाजपा और सपा के बीच बंटने वाले वोट कुल जमा 65 फीसदी के आसपास थे, लेकिन अब वे 76 फीसदी के आसपास पहुंच गए हैं.
अगर यही प्रक्रिया जारी रही, तो जनवरी में होते वाले सर्वेक्षण में भाजपा हारते हुए दिख सकती है, और उसका फायदा समाजवादी पार्टी को जीत के रूप में मिलते हुए दिख सकता है. यह सब देखकर भाजपा के खेमे में परेशानी है. चुनाव का इंचार्ज तो धर्मेद्र प्रधान को बनाया गया था, लेकिन अब अमित शाह फिर से मैदान में उतर आए हैं.
गोवा, मणिपुर और उत्तराखंड में भी भाजपा मुश्किलों का सामना कर रही है. सर्वेक्षण में एक बड़ा उलटफेर पंजाब में होते हुए दिखता है. वहां आम आदमी पार्टी सबसे बड़े दल के रूप में उभरते हुए दिखाई गई है. अगर आप ने दिल्ली की सीमाओं को लांघते हुए पंजाब में सत्ता पर सफलतापूर्वक दस्तक दे दी, तो यह न केवल इस पार्टी के लिए बल्कि हमारे लोकतंत्र के लिए भी एक नई और स्वागत करने लायक घटना होगी.
'आप' पिछले चुनाव में भी सत्ता की दावेदार थी. इस बार उसकी स्थिति पहले से भी अच्छी है, क्योंकि पिछली बार कांग्रेस अमरिंदर सिंह के नेतृत्व में एकताबद्ध थी लेकिन इस बार वह बंटी हुई है. नवजोत सिंह सिद्धू अपनी ही सरकार को रोज ब्लैकमेल कर रहे हैं. इसका सीधा लाभ अरविंद केजरीवाल की पार्टी को मिल रहा है.
कांग्रेस अगर पंजाब को खोती है तो यह देश की सबसे पुरानी पार्टी के लिए एक बड़ा झटका साबित होगा. अगर कांग्रेस अपनी सरकार बचा ले जाती है तो उसका श्रेय केवल दलित वोटरों को जाएगा जो चन्नी को मुख्यमंत्री बनाने के कारण नए सिरे से कांग्रेस की तरफ गोलबंद होते हुए दिख रहे हैं.