सेहत को खोखला बना रही खाद्य पदार्थों की मिलावट, दस्त से कैंसर तक करीब 200 से अधिक बीमारियों की है जड़

By अरविंद कुमार | Updated: June 7, 2022 11:54 IST2022-06-07T11:54:30+5:302022-06-07T11:54:30+5:30

भारत में खाद्य पदार्थों की निगरानी का आलम यह है कि इतने विशाल देश में कुल 3500 फूड इंस्पेक्टर हैं, जबकि 33 करोड़ आबादी वाले अमेरिका में यह आंकड़ा 14 हजार का है.

world food safety day Food adulteration india making people health bad | सेहत को खोखला बना रही खाद्य पदार्थों की मिलावट, दस्त से कैंसर तक करीब 200 से अधिक बीमारियों की है जड़

सेहत को खोखला बना रही खाद्य पदार्थों की मिलावट, दस्त से कैंसर तक करीब 200 से अधिक बीमारियों की है जड़

खाद्य तेलों की महंगाई ने पिछले कई महीनों तक आम लोगों को काफी परेशान किया लेकिन उससे भी अधिक चिंता लोगों को तब हुई जब उन्होंने खाद्य तेलों में मिलावट पर भारतीय खाद्य सुरक्षा और मानक प्राधिकरण की रिपोर्ट की खबर देखी. प्राधिकरण ने देश भर से एकत्र खाद्य तेलों के 24.2 फीसदी नमूनों को मिलावटी या मानकों पर विफल पाया. 15 तरह के खाद्य तेलों के 4461 नमूनों में 1080 मिलावटी मिले. कुछेक में घातक जहरीले रसायन मिले थे.

कोविड संकट के बाद पूरी दुनिया खाद्य मामलों में पहले से कहीं अधिक संजीदा दिख रही है. विश्व खाद्य सुरक्षा दिवस 2022 की थीम ‘सुरक्षित भोजन बेहतर स्वास्थ्य’ है. 7 जून 2019 से विश्व  खाद्य सुरक्षा दिवस मनाया जा रहा है ताकि लोगों में इस विषय पर अधिक जागरूकता का प्रसार हो सके.

भारत में खाद्य पदार्थों में मिलावट नई बात नहीं है. दिनोंदिन यह रोग बढ़ता जा रहा है और जनस्वास्थ्य को भारी हानि पहुंचा रहा है. दस्त से लेकर कैंसर तक करीब 200 से अधिक बीमारियां संदूषित भोजन के नाते फैलती हैं. खाद्य विषाक्तता की घटनाएं भी चुनौती बन रही हैं. 

विश्व बैंक और नीदरलैंड सरकार के एक अध्ययन में खुलासा हुआ कि खाद्यजनित बीमारियों से भारत को हर साल एक लाख 78 हजार करोड़ रुपए से अधिक का नुकसान होता है. यह राशि देश के जीडीपी का 0.5 फीसदी है. अगर सलीके से ध्यान नहीं दिया गया तो 2030 तक तस्वीर भयावह होगी.

पहले महज मिलावट के रोकथाम पर कानूनों का जोर था. खाद्य अपमिश्रण अधिनियम 1954, फल उत्पाद आदेश 1955, मांस खाद्य उत्पाद आदेश 1973, वनस्पति तेल उत्पाद नियंत्रण आदेश 1947, खाद्य तेल पैकेजिंग विनियमन आदेश, 1988 और दुग्ध व दुग्ध उत्पाद आदेश, 1992 जैसे कई कानून इसी के लिए बने थे. इनको समाप्त कर 2006 में खाद्य सुरक्षा और मानक अधिनियम 2006 बना, जो 5 अगस्त 2011 से प्रभावी हुआ. 

इसी कड़ी में खाद्य सुरक्षा और मानकों से संबंधित देश का सबसे बड़ा रेगुलेटर भारतीय खाद्य सुरक्षा और मानक प्राधिकरण बना. यह सारी पहल ‘एक देश एक खाद्य कानून’ की परिकल्पना के तहत हुई और विज्ञान आधारित खाद्य मानकों के विकास का काम इसी की स्थापना के बाद आरंभ हुआ. यह खाद्य वस्तुओं के विनिर्माण, भंडारण, वितरण और  बिक्री से लेकर आयात तक को रेगुलेट करता है. केंद्रीय स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय के तहत काम कर रहा प्राधिकरण खाद्य के लिए वैज्ञानिक मानक बनाने से लेकर क्षमता निर्माण जैसे काम करता है.

इस बीच में कई प्रयास हुए लेकिन अभी भी कई तरह की दुश्वारियां हैं. हमारा खाद्य क्षेत्र असंगठित और विशाल आकार वाला है. हमारे स्ट्रीट फूड स्वाद में बेजोड़ हैं लेकिन उनकी स्वच्छता संबंधी चिंताएं अलग हैं. सेहतमंद भोजन के बारे में लोगों में भी जागरूकता का अभाव है. हमारी खाद्य श्रृंखला में कीटनाशकों का बेहद उपयोग होने के कारण खाद्य जनित रोगों और विषाक्तता में वृद्धि हो रही है. राज्यों में कमजोर ढांचा है और कर्मचारियों और तकनीकी विशेषज्ञों की कमी होने के कारण कई दिक्कतें हैं. 

हालांकि सरकारी मंशा है कि खेत से निकलकर हमारी थाली तक पहुंचने वाली सभी चीजें सुरक्षित हों लेकिन तस्वीर कुछ अलग है. उत्पादन के दौरान ही कई हानिकारक तत्व खाद्य प्रणाली में प्रवेश कर जाते हैं. अगर कच्ची सामग्री दूषित हो तो अंतिम उत्पाद की गुणवत्ता ठीक कैसे होगी. खेती में कीटनाशकों और पशुधन में औषधियों का बढ़ता उपयोग खतरे की घंटी है. कीटनाशक अवशेषों को खाद्य उत्पादों से दूर करने की कोई तकनीक नहीं है. फलों को कृत्रिम रूप से पकाने के लिए कैल्शियम कार्बाइड, फॉर्मेलिन जैसे खतरनाक रसायनों का उपयोग हो रहा है.

देश में पैकेटबंद खाद्य लोकप्रिय हो रहे हैं लेकिन निगरानी का आलम यह है कि इतने विशाल देश में कुल 3500 फूड इंस्पेक्टर हैं, जबकि 33 करोड़ आबादी वाले अमेरिका में यह आंकड़ा 14 हजार का है. इस कारण उचित निगरानी का अभाव है. असुरक्षित खाद्य उत्पाद बनाने वाली कंपनियों की जांच में दोषसिद्धि दर भी निम्न है और मिलावट करनेवाले आसानी से बच निकलते हैं. 2018-19 में 1.06 लाख नमूनों की जांच में 30,415 नमूने मिलावटी मिले, लेकिन 21,363 मामलों में मुकदमा चला और केवल 701 मामलों में दोष सिद्धि हुई. देश में प्रयोगशालाओं की संख्या भी नाकाफी है. 

Web Title: world food safety day Food adulteration india making people health bad

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