ब्लॉग: विकासशील देशों में एक बड़ी चुनौती हैं पानी से होने वाले रोग

By पंकज चतुर्वेदी | Updated: March 30, 2022 08:14 IST2022-03-30T08:14:06+5:302022-03-30T08:14:06+5:30

नेशनल सैंपल सर्वे आफिस (एनएसएसओ) की ताजा 76वीं रिपोर्ट के मुताबिक देश में 82 करोड़ लोगों को जरूरत के मुताबिक पानी मिल रहा है. देश के महज 21.4 फीसदी लोगों को ही घर तक सुरक्षित जल उपलब्ध है.

Water-borne diseases are a major challenge in developing countries | ब्लॉग: विकासशील देशों में एक बड़ी चुनौती हैं पानी से होने वाले रोग

पानी से होने वाले रोग एक बड़ी चुनौती (फाइल फोटो)

अभी गर्मी शुरू ही हुई है और देश के अलग-अलग हिस्सों से नलों में पानी के साथ गंदगी व बदबू आने की शिकायतें आने लगीं. हरिद्वार में तो होली के अगले ही दिन घरों में ऐसा पानी आया, जैसे कि सीवर का निस्तार हो. राजधानी के करीबी पश्चिम उत्तर प्रदेश के सात जिलों में पीने के पानी से कैंसर से मौत का मसला जब गरमाया तो एनजीटी में प्रस्तुत रिपोर्ट के मुताबिक इसका कारण हैंडपंप का पानी पाया गया. अक्तूबर 2016 में ही एनजीटी ने नदी के किनारे के हजारों हैंडपंप बंद कर गांवों में पानी की वैकल्पिक व्यवस्था का आदेश दिया था.

भारत के नीति आयोग द्वारा जारी जल प्रबंधन सूचकांक से जाहिर हो गया है कि देश का विकास कहीं बाधित होगा तो वह होगा पानी की भीषण कमी से देश के 84 फीसदी ग्रामीण आबादी जलापूर्ति से वंचित है तो जो पानी उपलब्ध भी है तो उसमें से 7 प्रतिशत दूषित है.

 इसके विपरीत देश की जल कुंडली एकबारगी देखें तो सभी गृह-नक्षत्र ठीक-ठाक घरों में ही बैठे दिखते हैं. देश में सालाना जल उपलब्धता 1869 अरब घन मीटर है इसमें से 1123 इस्तेमाल योग्य है. लेकिन इन आंकड़ों का जब आगे विश्लेषण करते हैं तो पानी की बेतरतीब बर्बादी, गैरजरूरी इस्तेमाल, असमान वितरण जैसे भयावह तथ्य सामने आते हैं जो कि सारी कुंडली पर राहु का साये की मानिंद हैं.

हर घर जल  की केंद्र की योजना इस बात में तो सफल रही है कि गांव-गांव में हर घर तक पाइप बिछ गए लेकिन आज भी इन पाइपों में आने वाला 75 प्रतिशत जल भूजल है. 

गौरतलब है कि ग्रामीण भारत की 85 फीसदी आबादी अपनी पानी की जरूरतों के लिए भूजल पर निर्भर है. एक तो भूजल का स्तर लगातार गहराई में जा रहा है, दूसरा भूजल एक ऐसा संसाधन है जो यदि दूषित हो जाए तो उसका निदान बहुत कठिन होता है. यह संसद में बताया गया है कि करीब 6.6 करोड़ लोग अत्यधिक फ्लोराइड वाले पानी के घातक नतीजों से जूझ रहे हैं, इन्हें दांत खराब होने , हाथ पैरे टेढ़े होने जैसे रोग झेलने पड़ रहे हैं. जबकि करीब एक करोड़ लोग अत्यधिक आर्सेनिक वाले पानी के शिकार हैं.

नेशनल सैंपल सर्वे आफिस (एनएसएसओ) की ताजा 76वीं रिपोर्ट बताती है कि देश में 82 करोड़ लोगों को उनकी जरूरत के मुताबिक पानी मिल नहीं पा रहा है. देश के महज 21.4 फीसदी लोगों को ही घर तक सुरक्षित जल उपलब्ध है. सबसे दुखद है कि नदी-तालाब जैसे भूतल जल का 70 प्रतिशत बुरी तरह प्रदूषित है. 

यह सरकार स्वीकार रही है कि 78 फीसदी ग्रामीण और 59 प्रतिशत शहरी घरों तक स्वच्छ जल उपलब्ध नहीं हैं. है. यह भी विडंबना है कि अब तक हर एक को पानी पहुंचाने की परियोजनाओं पर 89,956 करोड़ रु पये से अधिक खर्च होने के बावजूद सरकार परियोजना के लाभों को प्राप्त करने में विफल रही है. आज महज 45,053 गांवों को नल-जल और हैंडपंपों की सुविधा मिली है, लेकिन लगभग 19,000 गांव ऐसे भी हैं जहां साफ पीने के पानी का कोई नियमित साधन नहीं है. 

पूरी दुनिया में खासकर विकासशील देशों पानी से होने वाले रोग एक बड़ी चुनौती हैं. विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) और यूनिसेफ का अनुमान है कि अकेले भारत में हर रोज 3000 से अधिक लोग दूषित पानी से उपजने वाली बीमारियों का शिकार हो कर जान गंवा रहे हैं.  गंदा पानी पीने से दस्त और आंत्रशोथ, पेट में दर्द और ऐंठन, टाइफाइड, हैजा, हैपेटाइिटस जैसे रोग अनजाने में शरीर में घर बना लेते हैं.

यह भयावह आंकड़े सरकार के ही हैं कि भारत में करीब 1.4 लाख बच्चे हर साल गंदे पानी से उपजी बीमारियों के चलते मर जाते हैं. देश के 639 में से 158 जिलों के कई हिस्सों में भूजल खारा हो चुका है और उनमें प्रदूषण का स्तर सरकारी सुरक्षा मानकों को पार कर गया है. हमारे देश में ग्रामीण इलाकों में रहने वाले तकरीब 6.3 करोड़ लोगों को पीने का साफ पानी तक मयस्सर नहीं है. इसके कारण हैजा, मलेरिया, डेंगू, ट्रेकोमा जैसी बीमारियों के साथ-साथ कुपोषण के मामले भी बढ़ रहे हैं.

पर्यावरण मंत्रालय और केंद्रीय एजेंसी ‘एकीकृत प्रबंधन सूचना प्रणाली’ (आईएमआईएस) द्वारा सन 2018 में पानी की गुणवत्ता पर करवाए गए सर्वे के मुताबिक राजस्थान में सबसे ज्यादा 19,657 बस्तियां और यहां रहने वाले 77.70 लाख लोग दूषित जल पीने से प्रभावित हैं.

आईएमआईएस के मुताबिक पूरे देश में 70,736 बस्तियां फ्लोराइड, आर्सेनिक, लौह तत्व और नाइट्रेट सहित अन्य लवण एवं भारी धातुओं के मिश्रण वाले दूषित जल से प्रभावित हैं. देश के पेयजल से जहर के प्रभाव को शून्य करने के लिए जरूरी है कि पानी के लिए भूजल पर निर्भरता कम हो और नदी-तालाब आदि सतही जल में गंदगी मिलने से रोका जाए. 

भूजल के अंधाधुंध इस्तेमाल को रोकने के लिए कानून बनाए गए हैं, लेकिन भूजल को दूषित करने वालों पर अंकुश के कानून किताबों से बाहर नहीं आ पाए हैं.

Web Title: Water-borne diseases are a major challenge in developing countries

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