भूख नहीं, मोटापा है देश की ज्यादा बड़ी स्वास्थ्य समस्या?, भारत 127 देशों की सूची में भूख मामले में 105वें स्थान पर

By अश्विनी महाजन | Updated: April 15, 2025 05:18 IST2025-04-15T05:18:55+5:302025-04-15T05:18:55+5:30

प्रधानमंत्री ने चेतावनी दी है कि साल 2050 तक भारत में 44 करोड़ लोग मोटापे की समस्या से पीड़ित होंगे, जो कई बीमारियों की जड़ है.

Obesity ibiggest health problem country not hunger blog Prof Ashwini Mahajan India ranks 105th among 127 countries in terms of hunger | भूख नहीं, मोटापा है देश की ज्यादा बड़ी स्वास्थ्य समस्या?, भारत 127 देशों की सूची में भूख मामले में 105वें स्थान पर

सांकेतिक फोटो

Highlights हृदय रोग, कैंसर और स्ट्रोक समेत कई बीमारियां मुख्य रूप से मोटापे की वजह से होती हैं.पुरुषों में यह 18.9 प्रतिशत से बढ़कर 22.9 प्रतिशत हो गई.हमारी लगभग एक-चौथाई आबादी मोटापे से पीड़ित है.

भारत के बारे में एक आम धारणा यह है कि भारत भयंकर भूख से पीड़ित देश है. अगर हम वेल्टहंगरहिल्फ की रिपोर्ट पर यकीन करें तो आज भी भारत 127 देशों की सूची में भूख के मामले में 105वें स्थान पर है. लेकिन सच यह है कि आज भारत में बड़ी संख्या में लोग वजन कम होने से कम, बल्कि मोटापे की समस्या से ज्यादा पीड़ित हैं. यही वजह है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने देश के लोगों से खाद्य तेलों का इस्तेमाल कम से कम 10 प्रतिशत कम करने की अपील की है. प्रधानमंत्री ने चेतावनी दी है कि साल 2050 तक भारत में 44 करोड़ लोग मोटापे की समस्या से पीड़ित होंगे, जो कई बीमारियों की जड़ है.

गौरतलब है कि स्वास्थ्य क्षेत्र के विशेषज्ञों का कहना है कि टाइप-2 डायबिटीज, हृदय रोग, कैंसर और स्ट्रोक समेत कई बीमारियां मुख्य रूप से मोटापे की वजह से होती हैं. राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण 2015-16 और 2020-21 के अनुसार, इन 5 वर्षों में मोटापे से पीड़ित महिलाओं की संख्या 20.6 प्रतिशत से बढ़कर 24 प्रतिशत हो गई, जबकि पुरुषों में यह 18.9 प्रतिशत से बढ़कर 22.9 प्रतिशत हो गई.

यानी हमारी लगभग एक-चौथाई आबादी मोटापे से पीड़ित है. मोटापे की समस्या आम तौर पर जीवनशैली से जुड़ी होती है. इसके कई कारण हैं, जिनमें शारीरिक श्रम की कमी, वसा (खाद्य तेल), चीनी और नमक का अधिक सेवन शामिल है. अगर हम खाद्य तेलों के उपयोग की बात करें तो हम देखते हैं कि खाद्य तेलों की प्रति व्यक्ति खपत, जो 1950 से 1960 के दशक में प्रति व्यक्ति प्रति वर्ष केवल 2.9 किलोग्राम थी, अब उद्योग रिपोर्ट के अनुसार बढ़कर 19.4 किलोग्राम प्रति व्यक्ति वार्षिक हो गई है.

ध्यान देने वाली बात यह है कि यह विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा प्रति व्यक्ति प्रति वर्ष 13 किलोग्राम की अनुशंसित खपत और आईसीएमआर (भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद) की सिफारिश, प्रति व्यक्ति प्रति वर्ष 12 किलोग्राम से कहीं अधिक है. वर्तमान में भारत में उत्पादित खाद्य तेलों का 67.4 प्रतिशत विभिन्न प्राथमिक तिलहनों से, 5.1 प्रतिशत नारियल से, 2.2 प्रतिशत ताड़ से, 11.0 प्रतिशत कपास के बीजों से, 9.8 प्रतिशत चावल की भूसी से, 3.1 प्रतिशत तिलहनों के सॉल्वेंट निष्कर्षण से तथा 1.4 प्रतिशत वनों एवं वृक्षों से प्राप्त होता है.

देश में विभिन्न प्रकार के तिलहनों का उत्पादन पारंपरिक तरीके से किया जाता है. भारत के पारंपरिक खाद्य तेल काफी हद तक स्वास्थ्य के लिए अच्छे माने जाते हैं. लेकिन विदेशों पर हमारी निर्भरता के कारण देश में बड़ी मात्रा में ऐसे तेल आयात और उपयोग होने लगे, जिन्हें स्वास्थ्य के लिए हानिकारक माना जाता है.

भारत में बड़ी मात्रा में आयात किया जाने वाला पाम ऑयल  स्वास्थ्य के लिए बेहद खतरनाक है. इसमें संतृप्त वसा की उच्च मात्रा के कारण हानिकारक एलडीएल कोलेस्ट्रॉल बढ़ने की संभावना है जिससे हृदय रोग, मोटापा और अन्य स्वास्थ्य समस्याओं का खतरा बढ़ जाता है.

लेकिन सस्ता होने के कारण इसका आयात लगातार बढ़ रहा है. यह भी माना जाता है कि भारत में सरसों के तेल में ब्लेंडिंग के नाम पर बड़ी मात्रा में पाम ऑयल मिलाकर बेचा जाता है. इसके अलावा जीएम तेलों के स्वास्थ्य पर दुष्प्रभाव की चिंता भी महत्वपूर्ण है.

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