Mental Health Day: क्या आपने कभी सोचा है कि जो लोग हमें बीमारियों से बचाते हैं, वो खुद कितने बीमार हो रहे हैं? जी हां, भारत के मेडिकल प्रोफेशनल्स अर्थात डॉक्टर, नर्स और दूसरे हेल्थ वर्कर्स भी मानसिक बीमारियों का शिकार हो रहे हैं. ये लोग दिन-रात मरीजों की सेवा करते हैं, लेकिन खुद अपने मानसिक स्वास्थ्य पर ध्यान नहीं दे पाते. हाल के वर्षों में ये समस्या इतनी बढ़ गई है कि कई डॉक्टर डिप्रेशन, एंग्जाइटी और यहां तक कि सुसाइड तक के शिकार हो रहे हैं. ये समस्या क्यों हो रही है? लेडी हॉर्डिंग मेडिकल कॉलेज, नई दिल्ली से जुड़े रहे मनोचिकित्सक डॉ सुनील मित्तल कहते हैं कि अस्पतालों में ड्यूटी के घंटे इतने लंबे होते हैं कि नींद पूरी नहीं हो पाती. कभी-कभी 36-48 घंटे की लगातार शिफ्ट! सोचिए, इतने समय तक काम करने से इंसान कितना थक जाता होगा.
ऊपर से मरीजों की भीड़, इमरजेंसी केस, और यह प्रेशर कि हर मरीज को बचाना है. एक अध्ययन में पाया गया कि कोविड के दौरान 37 प्रतिशत हेल्थ वर्कर्स को एंग्जाइटी हुई, 33 प्रतिशत को डिप्रेशन और 23 प्रतिशत को स्ट्रेस. ये आंकड़े डराने वाले हैं, क्योंकि ये लोग हमारी जान बचाते हैं, लेकिन खुद की सेहत का क्या?
इंडियन मेडिकल एसोसिएशन (आईएमए) के पूर्व अध्यक्ष डॉ. विनय अग्रवाल कहते हैं कि ये याद रखा जाना चाहिए कि डॉक्टर भी इंसान हैं. अगर वो खुश और सेहतमंदनहीं रहेंगे तो हम कैसे रहेंगे? सरकार, अस्पताल और हम सबको मिलकर इस समस्या को हल करना होगा. छोटे-छोटे कदम जैसे दोस्तों से बात करना, योग करना या हेल्पलाइन पर कॉल करना – ये सब मदद कर सकते हैं.
विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार, शहरी क्षेत्रों में रहने वाले लोग ग्रामीण क्षेत्रों की तुलना में अवसाद, चिंता और अन्य मानसिक विकारों से अधिक प्रभावित होते हैं. शहरों में मानसिक स्वास्थ्य समस्याओं के बढ़ने के प्रमुख कारणों में से एक है पर्यावरणीय प्रदूषण. वायु प्रदूषण, ध्वनि प्रदूषण और विषाक्त पदार्थों का संपर्क मस्तिष्क पर नकारात्मक प्रभाव डालता है, जिससे तनाव और अवसाद बढ़ता है.
अमेरिकन साइकियाट्रिक एसोसिएशन के अनुसार, शहरी क्षेत्रों में इन कारकों से मानसिक स्वास्थ्य खराब होता है. दूसरा महत्वपूर्ण कारण है सामाजिक अलगाव. शहरों में लोग व्यस्त जीवनशैली के कारण परिवार और दोस्तों से दूर हो जाते हैं, जिससे अकेलापन बढ़ता है. अपराध दर, असमानता और हिंसा जैसे कारक भी चिंता को बढ़ावा देते हैं. इसके अलावा, तेज गति वाला जीवन, लंबे काम के घंटे, ट्रैफिक जाम और आर्थिक दबाव मानसिक थकान पैदा करते हैं.