लाइव न्यूज़ :

Autism Spectrum Disorder: ऑटिज्म क्या है?, लक्षण दिखाई देने पर क्या करें?, बच्चों में खतरे के संकेत

By लोकमत न्यूज़ डेस्क | Updated: January 29, 2025 05:51 IST

Autism Spectrum Disorder: विकार की जल्द से जल्द पहचान करना, उचित उपचार करना, साथ ही इससे जुड़े कलंक को हटाना जरूरी है.

Open in App
ठळक मुद्देऑटिज्म एक न्यूरो-डेवलपमेंट डिसऑर्डर है. परस्पर संवाद करने में कठिनाई होती है.वास्तविक संख्या अधिक हो सकती है.

डॉ. केतकी रावनगावे

ऑटिज्म स्पेक्ट्रम डिसऑर्डर (एएसडी) अब दुर्लभ नहीं रह गया है. भारत में भी यह बढ़ता जा रहा है. यह विकार एक गंभीर और वैश्विक चिंता का विषय बन गया है. इस विकार की जल्द से जल्द पहचान करना, उचित उपचार करना, साथ ही इससे जुड़े कलंक को हटाना जरूरी है.

ऑटिज्म वास्तव में है क्या ?

ऑटिज्म एक न्यूरो-डेवलपमेंट डिसऑर्डर है. यह बच्चों के बौद्धिक, सामाजिक और भावनात्मक विकास को प्रभावित करता है. ऑटिज्म से पीड़ित व्यक्ति को सामाजिक व्यवहार और परस्पर संवाद करने में कठिनाई होती है.

व्यापकता और चिंताएं

अध्ययनों से पता चलता है कि भारत में लगभग 100 में से एक बच्चा ऑटिज्म से पीड़ित होता है. वास्तविक संख्या अधिक हो सकती है.

ऑटिज्म के कारण

ऑटिज्म का सही कारण अभी तक पता नहीं चला है, लेकिन कई पर्यावरणीय, आनुवंशिक और जैविक कारक इसके लिए जिम्मेदार हैं. आनुवंशिक कारकों में, यदि परिवार के किसी सदस्य या सदस्यों को ऑटिज्म हो तो जोखिम बढ़ जाता है. गर्भावस्था के जोखिम के कारकों में विलंब से गर्भधारण, गर्भाशय संबंधी संक्रमण, मधुमेह, उच्च रक्तचाप शामिल है.

जबकि नवजात के लिए जोखिम के कारकों में समय से पूर्व जन्मे बच्चे, जन्म के समय कम वजन, प्रसव के दौरान जटिलताओं का समावेश है. इसके पर्यावरणीय कारकों में रसायनों के संपर्क में आना और वयस्क माता-पिता पर उम्र का प्रभाव शामिल है.

बच्चों में ऑटिज्म के खतरे के संकेत

बच्चों में इसके खतरे के लक्षणों में नजरें मिलाकर बात न करना, कम से कम संपर्क रखना, नाम से पुकारे जाने पर कोई प्रतिक्रिया न देना, भाषा के विकास में विलंब (जैसे, दो वर्ष की उम्र तक शब्द न बोल पाना), इशारे न करना या कम करना(जैसे, उंगली दिखाना, टाटा करना), बच्चों के साथ खेलने या बातचीत करने में कम रुचि, कुछ वस्तुओं या गतिविधियों में अधिक रुचि (जैसे, खिलौनों को एक ही क्रम में व्यवस्थित करना), अपनी ही दुनिया में मगन रहना और लगातार हरकतें दोहराना (जैसे, हाथ हिलाना, गोल-गोल घूमना), अतिसंवेदनशीलता या असंवेदनशीलता (जैसे, ध्वनि, प्रकाश या स्पर्श के प्रति अति प्रतिक्रिया या अनदेखी), दिनचर्या या वातावरण में परिवर्तन को स्वीकार न करना, अप्रत्याशित व्यवहार जैसे चीखना, अचानक रोना या हंसना, खेल में रचनात्मकता की कमी (जैसे, नाटकीय खेल न खेलना) कुछ खाद्य पदार्थों, गंधों या स्पर्शों को न समझना, दूसरों की भावनाओं या गतिविधियों को समझने में कठिनाई, एक ही जैसा या अलग तरीके से बोलना (जैसे कुछ वाक्यांशों को दोहराना), स्वयं को नुकसान पहुंचाने की प्रवृत्ति (जैसे, सिर पीटना, काटना) शामिल है. यदि उपरोक्त लक्षण दिखाई दें तो विशेषज्ञ चिकित्सक से परामर्श लेना आवश्यक है.

उक्त लक्षण दिखाई देने पर क्या करें?

यदि किसी बच्चे में ऐसे लक्षण दिखाई दें तो तुरंत किसी डेवलपमेंटल बिहेवियरल पीडियाट्रिक या विशेषज्ञ से संपर्क करना चाहिए. टीएबीसी या एम-सीएचएटी जैसी स्क्रीनिंग के माध्यम से प्रारंभिक निदान किया जा सकता है.

ऑटिज्म पर शीघ्र ध्यान देने का महत्व

प्रारंभिक हस्तक्षेप कार्यक्रम जैसे कि स्पीच थेरेपी, ऑक्युपेशनल थेरेपी, बिहेविअरल थेरेपी और विशेष प्रशिक्षण से लाभ होते हैं. जैसे संवाद और सामाजिक कौशल में सुधार होता है. व्यवहार और संज्ञानात्मक विकास में सुधार होता है और स्वतंत्र रूप से जीवन जीने की संभावना बढ़ जाती है.

उपचार नहीं करने के जोखिम

यदि समय पर इलाज न किया जाए तो ऑटिज्म गंभीर समस्याएं पैदा कर सकता है, जैसे सामाजिक अलगाव और संवाद कौशल में कमी आ सकती है. व्यवहार संबंधी समस्याएं आती हैं जो शिक्षा और रोजगार में बाधा डालती हैं और माता-पिता पर मानसिक तथा आर्थिक बोझ पड़ता है.

ऑटिज्म का उपचार

ऑटिज्म का कोई इलाज नहीं है, लेकिन निम्नलिखित उपाय लक्षणों को प्रबंधित करने में मदद कर सकते हैं :

थेरेपी : स्पीच, ऑक्युपेशनल, बिहेविअरल और प्ले-आधारित थेरेपी.

दवाएं : अति सक्रियता या एंग्जाइटी जैसे विशिष्ट लक्षणों को नियंत्रित करने के लिए.

अभिभावक प्रशिक्षण : बच्चों के विकास में सहायता के लिए अभिभावकों को तैयार करना.

जागरूकता जरूरी

भारत में ऑटिज्म के बढ़ते प्रसार को देखते हुए ठोस कार्रवाई करनी होगी. माता-पिता, शिक्षकों, डॉक्टरों और समाज को एकजुट होकर लक्षणों की शीघ्र पहचान करनी चाहिए और उचित उपचार उपलब्ध कराना चाहिए. जागरूकता के माध्यम से हम ऑटिज्म से पीड़ित बच्चों को आगे बढ़ने का अवसर दे सकते हैं.

कानूनी संरक्षण

ऑटिज्म को अपंग (दिव्यांग) व्यक्तियों के अधिकार अधिनियम (आरपीडब्ल्यूडी) 2016 में शामिल किया गया है. इससे प्रभावित व्यक्तियों को जो लाभ हो सकते हैं उनमें शैक्षिक और व्यावसायिक सुविधाएं, विशेष प्रशिक्षण एवं पुनर्वास सेवाएं तथा सामाजिक और आर्थिक सहायता का अधिकार शामिल है. ऑटिज्म से प्रभावित व्यक्तियों को सुरक्षा और सहायता प्रदान करके उनके जीवन की गुणवत्ता में सुधार लाने के लिए जागरूकता बढ़ाना जरूरी है.  

टॅग्स :childHealth and Family Welfare Department
Open in App

संबंधित खबरें

क्राइम अलर्टमां नहीं हैवान! बेटे समेत 4 बच्चों को बेरहमी से मारा, साइको लेडी किलर ने बताई करतूत; गिरफ्तार

भारतSupreme Court: बांग्लादेश से गर्भवती महिला और उसके बच्चे को भारत आने की अनुमति, कोर्ट ने मानवीय आधार पर लिया फैसला

स्वास्थ्यखांसी-जुकामः कफ सीरप की बिक्री पर लगाम कसने की कोशिश

भारतशराब की लुभावनी पैकेजिंग के खतरे

भारतAyushman Card: घर बैठे बनवा सकते हैं आयुष्मान कार्ड, बस इन डॉक्यूमेंट की होगी जरूरत

स्वास्थ्य अधिक खबरें

स्वास्थ्यपराली नहीं दिल्ली में जहरीली हवा के लिए जिम्मेदार कोई और?, दिल्ली-एनसीआर सर्दियों की हवा दमघोंटू, रिसर्च में खुलासा

स्वास्थ्यपुरुषों की शराबखोरी से टूटते घर, समाज के सबसे कमजोर पर सबसे ज्यादा मार

स्वास्थ्यकश्‍मीर की हवा, कोयला जलाने की आदत, आंखों में जलन, गले में चुभन और सांस लेने में दिक्कत?

स्वास्थ्यखतरनाक धुएं से कब मुक्त होगी जिंदगी?, वायु प्रदूषण से लाखों मौत

स्वास्थ्यक्या आपने कभी कुत्ते को कंबल के नीचे, सोफे के पीछे या घर के पिछले हिस्से में खोदे गए गड्ढे में पसंदीदा खाना छुपाते हुए देखा है?, आखिर क्या है वजह