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नजरिया: स्कूल बोर्ड से ही कमजोर होने लगती है भारत की शिक्षा व्यवस्था

By धीरज पाल | Updated: June 2, 2018 16:15 IST

यूपी बोर्ड परीक्षा समाप्त होने के बाद मेरी मुलाकात एक 10वीं के छात्र से होती है। परिचित होने के बाद मैंने पूछा कि इस बार से प्रशासन ने सीसीटीवी कैमरा लगाकर अच्छा किया न।

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मई महीने की समाप्ति और जून महीने की शुरुआत हो गई है। पूरे वर्ष के ये दो महीने देश की शिक्षा व्यवस्था के लिहाज से बेहद खास होते हैं। दरअसल, मई और जून का महीना देश की शिक्षा व्यवस्था को एक दिशा देते हैं। इस महीने में देशभर के अलग-अलग राज्यों में बोर्ड परीक्षाओं के नतीजे घोषित होते हैं। स्कूली बोर्ड शिक्षा के अलावा देश भर में विश्वविद्यालयों, कॉलेजों में अलग-अलग कोर्सेस के प्रवेश परीक्षाएं भी आयोजित की जाती है और नतीजें की घोषणा भी की जाती है। ताकि छात्र जुलाई महीने से शुरू नए सत्र का हिस्सा बन सकें। देश के कई राज्यों के स्कूली शिक्षा बोर्ड के नतीजे घोषित हो चुके हैं वहीं, कुछ राज्यों के परिणाम आने में अभी देरी है। नतीजे हम सब के सामने हैं। कुछ बोर्ड को छोड़ दिया जाए तो नतीजे हमारे देश की शिक्षा व्यवस्था की स्तर को बयां करती है। दरअसल यह भी अधुरा सत्य है! भारत की बुनियादी शिक्षा स्तर का पता लगाना है तो कुछ बातों पर गौर करना पड़ेगा।

बोर्ड रिजल्ट में देरी बच्चों के भविष्य के साथ खिलवाड़  

भारत में शिक्षा स्तर कमजोर करने की बीज स्कूल बोर्ड के दौरान ही पड़ने लगती है। एक ताजा उदाहरण बताता हूं। जैसा कि इस वक्त राज्य के स्कूली बोर्ड के कक्षा 10वीं और 12वीं के नतीजे घोषित कर रहे हैं। बिहार और झारखंड बोर्ड के नताजों में अभी देरी है। और यही देरी बच्चों के आगे की शिक्षा का भविष्य तय करती है। क्योंकि कई सारे विश्वविद्यालों और कॉलेजों में दाखिला लेने की अंतिम तारीख समाप्त हो गई है। इनमें पटना विश्वविद्यालय, कानपुर विश्वविद्यालय, बीएचयू जैसे कई कॉलेजों में दाखिले की अंतिम तारीख समाप्त हो गई है। ऐसे हालात में छात्र या सरकारी नौकरी के लिए अध्ययन करते हैं या गांव और कस्बा छोड़कर पलायन कर दूसरे शहरों का रूख कर लेते हैं। जब छात्र अच्छे कॉलेजों या विश्वविद्यालों में दाखिला नहीं लेंगे हमारी शिक्षा व्यवस्था का स्तर ऐसे ही दिन-ब-दिन गिरती जाएगी। और हम हर चुनावों की रैलियों का हिस्सा बनेंगे, तालियां बजाएंगे और नेताओं का गुणगान करेंगे। ऐसा इसलिए क्योंकि हमारे नेता लोग स्कूल की इमारत बनवाते हैं!

सिर्फ परीक्षाओं के दौरान इतनी सख्ती क्यों? 

जैसे-जैसे बोर्ड के परीक्षाओं के दिन करीब आते हैं वैसे-वैसे बच्चों के भय बढ़ने लगते हैं। ऐसा क्यों? क्योंकि उन्हें अपनी विषय की परीक्षा का भय कम और प्रशासन द्वारा किए गए सख्त रवैये से ज्यादा भयभीत होते हैं। छात्र जब अनुउत्तीर्ण होते हैं तो लोग उन्हें यही कहकर कोसते हैं कि "हटाओ सही से नहीं पढ़ा होगा" लेकिन यह कभी नहीं कहते हैं कि "स्कूल में सही से पढ़ाया नहीं गया होगा"। यूपी बोर्ड एग्जाम के समाप्त होने के बाद मेरी मुलाकात एक 10वीं के छात्र से होती है। परिचित होने के बाद मैंने पूछा कि इस बार से प्रशासन ने सीसीटीवी कैमरा लगाकर अच्छा किया न। उसने तुरंत जवाब दिया कि नहीं गलत किया। प्रशासन को यही कैमरा पढ़ाई के दौरान कक्षाओं में लगानी चाहिए। ताकि ये पता चले कि कौन से शिक्षक स्कूल की कक्षाओं में कितना पढ़ा रहे हैं और हमारे हर विषय के कितने पाठ पठाये जा रहे हैं। बात तो सही है। जब तक स्कूल की शिक्षा व्यवस्था सही नहीं हो रही है तब तक रिजल्ट खराब ही आएगा। ऐसे वक्त में शिक्षा व्यवस्था की हालात सुधरने के बजाय बदत्तर हो रही है।  

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