लाइव न्यूज़ :

संपादकीय: परीक्षा से छूट देना समस्या का हल नहीं

By लोकमत समाचार ब्यूरो | Updated: January 2, 2019 05:33 IST

तत्कालीन संप्रग सरकार ने जब बच्चों को फेल नहीं करने की नीति ‘नि:शुल्क और अनिवार्य बाल शिक्षा अधिकार (आरटीई) अधिनियम-2009’ को लागू किया था तब यह माना गया था कि परीक्षा का बोझ ज्यादा होने से छात्र स्कूल की अन्य गतिविधियों में भाग नहीं ले पाते हैं.

Open in App

केंद्र सरकार द्वारा बच्चों को कक्षा पांचवीं और आठवीं में फेल करने संबंधी बिल के पारित होने की उम्मीद जताना एक ऐसा मुद्दा है जिस पर सभी राज्यों को केंद्र का साथ देना चाहिए. दरअसल बच्चों को फेल नहीं करने की नीति जिस मकसद से लागू की गई थी उसका उल्टा ही प्रभाव देखने में आ रहा था और छात्र पढ़ाई तथा परीक्षा को गंभीरता से नहीं ले रहे थे.

तत्कालीन संप्रग सरकार ने जब बच्चों को फेल नहीं करने की नीति ‘नि:शुल्क और अनिवार्य बाल शिक्षा अधिकार (आरटीई) अधिनियम-2009’ को लागू किया था तब यह माना गया था कि परीक्षा का बोझ ज्यादा होने से छात्र स्कूल की अन्य गतिविधियों में भाग नहीं ले पाते हैं. लेकिन इसे लागू करने के बाद देखा गया कि नौवीं कक्षा में एकदम से असफल होने वाले छात्रों का प्रतिशत बढ़ गया था.

इसलिए अब लगभग सारे राज्य इस बात पर एकमत हैं कि बच्चों को फेल नहीं करने की नीति बदलनी चाहिए. दरअसल प्रतिस्पर्धा प्रकृति के मूल में ही विद्यमान है और    उसके अभाव में हर चीज का संतुलन बिगड़ने का खतरा पैदा हो जाता है. बच्चों में तनाव पैदा होने का कारण भी प्रतिस्पर्धा नहीं बल्कि परीक्षा का वर्तमान स्वरूप है. दुनिया जानती है कि विश्वकवि रवींद्रनाथ टैगोर ने शांतिनिकेतन में शिक्षाकेंद्र की स्थापना ही इसलिए की थी कि उनका अपने छात्र जीवन का अनुभव अच्छा नहीं रहा था.

वे चाहते थे कि बच्चों को शिक्षा यांत्रिक और नीरस ढंग से बंद कमरे में नहीं बल्कि प्रकृति के बीच रहकर मिले. इसीलिए शांतिनिकेतन में कक्षाएं खुले मैदान में, पेड़ों के नीचे लगती थीं. माइकल फैराडे, थॉमस एडीसन, ग्राहम बेल और चाल्र्स डार्विन समेत ऐसे कितने ही मशहूर लोग हुए हैं जिनका प्रदर्शन छात्र जीवन में बहुत अच्छा नहीं था. दरअसल बच्चों के कलागुणों को निखारने में शिक्षक की भूमिका बहुत महत्वपूर्ण होती है.

इसलिए फेल नहीं करने की नीति बरकरार रखने के बजाय हमें शिक्षकों को ट्रेनिंग देनी चाहिए कि वे बच्चों को इस तरीके से पढ़ाएं कि पढ़ाई उन्हें बोझ न लगे. बच्चों में पढ़ाई के प्रति रुचि भर जगा दी जाए तो बाकी काम तो वे खुद ही कर लेते हैं. इसके बजाय प्रतिस्पर्धा से ही छूट दे देना उन्हें कमजोर बना देता है और भविष्य में वे प्रतिस्पर्धाओं से सामना होने पर टिक नहीं पाते. इसलिए सरकार द्वारा बच्चों को फेल नहीं करने की नीति को खत्म किया जाना ही उचित है और सभी राज्यों को इसके लिए केंद्र को सहयोग देना चाहिए. 

टॅग्स :एजुकेशनexam
Open in App

संबंधित खबरें

भारतSSC CGL Tier 1 Exam 2025 का रिजल्ट जारी, यहां से सीधे डाउनलोड करें

भारतNCERT की कक्षा 7वीं की अपडेटेड टेक्स्टबुक में गजनी की क्रूरता शामिल

भारतबिहार के सरकारी स्कूलों में सामने आ रहा है गैस सिलेंडर घोटाला, राज्य के 22,838 स्कूलों ने नहीं लौटाए आईओसी को 45,860 सिलेंडर

भारतBihar Board Exam 2026 date sheet: बिहार बोर्ड परीक्षा की डेट शीट जारी, इंटर 2 फरवरी से, दसवीं की 17 फरवरी से होगी परीक्षा

कारोबारऐसी शिक्षा चाहते हैं जो करियर बनाने में सहायक हो?, 97 प्रतिशत भारतीय छात्र ने अध्ययन में किया खुलासा, विदेश में अध्ययन करने के लिए रोजगार, कार्य अनुभव और कौशल आवश्यक

पाठशाला अधिक खबरें

पाठशालास्प्रिंगर नेचर ने ICSSR, दिल्ली में 'इंडिया रिसर्च टूर' के तीसरे संस्करण को दिखाई हरी झंडी

पाठशालापढ़ाई पर है पूरा ज़ोर, नहीं रहेगा बच्चा कमजोर

पाठशालासत्यार्थी समर स्कूल: 11 देशों के प्रतिभागियों ने किया दिल्ली और राजस्थान आश्रम का दौरा

पाठशालाJEE Advanced: मन में है विश्वास हम होंगे कामयाब?, लगन और जुनून तो मंज़िल मुश्किल नहीं

पाठशालारूस-यूक्रेन के डर के बीच किर्गिस्तान में मेडिकल पढ़ाई को मिल रहा नया ठिकाना