श्रद्धा मर्डर केस: प्यार में आखिर हैवान कैसे बन जाता है आदमी?
By लोकमत समाचार सम्पादकीय | Updated: November 16, 2022 10:30 IST2022-11-16T10:30:02+5:302022-11-16T10:30:02+5:30
श्रद्धा वालकर हत्याकांड मामले को एक वर्ग कुछ अलग रंग देने की कोशिश कर रहा है. ऐसे प्रयासों को सफल नहीं होने देना चाहिए. इससे अपराध की जांच पर बुरा असर पड़ेगा और जांच एजेंसियों को गुनाह की जड़ तक जाने में कठिनाई होगी.

प्यार में आखिर हैवान कैसे बन जाता है आदमी? (फोटो- सोशल मीडिया)
दिल्ली के श्रद्धा वालकर हत्याकांड ने पूरे देश को हिलाकर रख दिया है. इस हत्याकांड के राज जैसे-जैसे सामने आते जा रहे हैं, लोगों के रोंगटे खड़े होते जा रहे हैं. यह सोचकर ही रूह कांप जाती है कि कोई गुस्से में अपनी प्रेमिका की हत्या कर उसकी लाश के टुकड़े-टुकड़े कर उसे जंगल में फेंकता रहे. आदमी गुस्से में पागल नहीं, हैवान हो जाता है.
श्रद्धा हत्याकांड में उसके लिव इन पार्टनर आफताब अमीन पूनावाला ने जो क्रूरता दिखाई, उससे मनुष्य के भीतर छिपी हैवानियत बयां होती है. प्यार परस्पर विश्वास, समर्पण तथा निष्ठा की बुनियाद पर पनपता है. ऐसे में यह सोचकर ही आश्चर्य होता है कि प्यार में अविश्वास की छोटी सी चिंगारी व्यक्ति को राक्षस क्यों बना देती है. हत्या कर लाश के टुकड़े-टुकड़े कर देने की हद तक नफरत क्यों पैदा कर देता है प्यार?
आफताब तथा श्रद्धा दोनों के बीच मुंबई में प्यार पनपा. आफताब की खातिर श्रद्धा ने अपने परिजनों तक को छोड़ दिया था. आफताब के परिवार वाले भी श्रद्धा के साथ उसके रिश्ते के विरुद्ध बताए जाते थे. दोनों ने घर से बगावत की और दिल्ली आकर रहने लगे. एक-दूसरे पर जान छिड़कने वाले श्रद्धा तथा आफताब पर विवाह को लेकर विवाद होता था. आफताब से श्रद्धा विवाह करना चाहती थी, पर प्रेमी नहीं चाहता था.
कहा तो यह भी जा रहा है कि दोनों के बीच अविश्वास की एक दीवार भी खड़ी होने लगी थी. श्रद्धा को संभवत: शक हो गया था कि किसी अन्य युवती से संबंधों के चलते आफताब उससे विवाह करना नहीं चाहता. मई में आफताब ने श्रद्धा की बड़ी ही बेरहमी से हत्या कर दी. उसका खुलासा 6 माह बाद हुआ तो आफताब की हैवानियत देखकर देश स्तब्ध रह गया. श्रद्धा हत्याकांड हैवानियत को दर्शाने वाली पहली घटना नहीं है.
अगर चौदह साल पीछे जाएं तो नीरज ग्रोवर हत्याकांड याद आ जाता है. यह हत्याकांड भी प्यार की क्रूरतम परिणति के खौफ को ताजा कर देता है. सन् 2008 में मुंबई में बालाजी टेलीफिल्म्स के क्रिएटिव डायरेक्टर की हत्या कर उसकी लाश के तीन सौ टुकड़े कर दिए गए थे. कन्नड़ अभिनेत्री मारिया सुसाईराज से नीरज की मित्रता थी. मारिया के प्रेमी जेरोम मैथ्यू ने एक दिन दोनों को बेडरूम में देख लिया.
नीरज की हत्या करके ही वह शांत नहीं बैठा, उसने और मारिया ने नीरज की लाश के तीन सौ टुकड़े किए तथा शहर से बाहर ले जाकर इन टुकड़ों को जला दिया. इस मामले में एक महिला की क्रूरता भी स्तब्ध कर देती है. विश्वास करना मुश्किल है कि गुस्से में पागल अपने प्रेमी का साथ देने के लिए ममता तथा करुणा की मूर्ति समझी जानेवाली एक महिला भी क्रूरता की पराकाष्ठा का परिचय दे सकती है.
मनुष्य ज्ञानी और विवेकशील होता है लेकिन उसमें सबसे बड़ा दुर्गुण यह भी है कि वह हर चीज अपनी सुविधा के मुताबिक, अपनी इच्छा के अनुसार होते हुए देखना चाहता है. जब चीजें उसकी इच्छा के मुताबिक नहीं होतीं तो प्यार जैसे संवेदनशील विषय पर तो व्यक्ति खुद पर से नियंत्रण खो बैठता है. वह या तो जान दे देता है या जान ले लेता है. मनुष्य की मानसिकता पर अध्ययन अभी भी चल रहा है. अब तक मानसिक विकारों पर हुए तमाम अध्ययनों का निष्कर्ष यही है कि समय रहते समझाया जाए, सहानुभूति जगाई जाए, योग का सहारा लिया जाए तो मनुष्य विपरीत से विपरीत हालात में खुद को संभाल सकता है.
आफताब शादी करना चाहता नहीं था और श्रद्धा इसके लिए उस पर कथित रूप से दबाव बना रही थी. अगर दोनों अपनी समस्याओं पर अपने मित्रों, परिजनों या किसी विशेषज्ञ परामर्शदाता से चर्चा करते तो संभवत: कोई राह निकलती. आफताब और श्रद्धा चूंकि दो अलग-अलग धर्मों के लोग थे इसलिए पूरे मामले को एक वर्ग कुछ अलग रंग देने की कोशिश कर रहा है. ऐसे प्रयासों को सफल नहीं होने देना चाहिए क्योंकि इससे अपराध की जांच पर बुरा असर पड़ेगा तथा जांच एजेंसियों को गुनाह की जड़ तक जाने में कठिनाई होगी.
आफताब ने जो अपराध किया है, उसकी सच्चाई सामने आना जरूरी है. इसीलिए ऐसा कोई कार्य व्यक्तिगत या सामूहिक रूप से नहीं किया जाना चाहिए जिससे जांच पर तनिक भी आंच आए या वह किसी दूसरे मोड़ पर चली जाए. आफताब ने जो अपराध किया है, उसकी उसे कठोरतम सजा मिलनी चाहिए.