Blog: वो काली रात जिसका अंधेरा आज तक छाया
By ऐश्वर्य अवस्थी | Updated: December 16, 2017 08:12 IST2017-12-15T17:42:16+5:302017-12-16T08:12:11+5:30
16 दिसंबर की रात हुई हैवानियत ने एक आंदोलन को जन्म दिया था। खुले विचारों को एक मंच दिया था और धधकते हुए गुस्से को एक नाम दिया था ‘निर्भया'।

Blog: वो काली रात जिसका अंधेरा आज तक छाया
16 दिसम्बर 2012 की वो काली रात जिसने दिल्ली ही समूचे समाज को शर्मसार कर दिया कभी नहीं भली जा सकती। एक लड़की को देश की राजधानी की सड़कों पर इस कदम हवस का शिकार बनाया गया कि हर किसी की आंखे नम हो गईं। उस रात हुई हैवानियत ने एक आंदोलन को जन्म दिया था। खुले विचारों को एक मंच दिया था और धधकते हुए गुस्से को एक नाम दिया था ‘निर्भया'। देश के कोने-कोने में लोग निर्भया को इंसाफ दिलाने के लिए सड़कों पर उतरे और कानून तक बदल गया। लेकिन असल में क्या उसका कोई असर हुआ। क्या दिल्ली में लड़कियों को वो सुरक्षा मिल गई जिसकी वो हकदार हैं। 2012 से अब तक कुछ नहीं बदला भले कानून आ गया हो लेकिन उसको लागू कितना किया गया सवाल ये भी है। तब भी सड़क पर एक लड़की की आवरू तार-तार हुई थी और आज भी सब कुछ वैसा ही है। बल्कि हर रोज ये आंकड़ा तेजी से बढ़ रहा है।
कब होगी महिला सुरक्षित
महिला सुरक्षा की बात करें तो देश में सबसे ज्यादा असुरक्षित महिलाएं दिल्ली में ही हैं। 5 साल पहले दिल्ली में हुई दरिंदगी की घटना से प्रसाशन हिला तो था लेकिन जागा शायद अभी भी नहीं है। हाल में ही एनसीआरबी के आंकड़ों ने भी दिल्ली पुलिस की कलई को खोला है और बताया कि हर रोज दिल्ली की सड़कों पर 7 महिलाएं रेप की वारदात से जूझती हैं। 68 फीसदी घटनाएं पुलिस की नजरों में आज भी नहीं आती हैं।
लड़की पर ही उठते सवाल
जब कॉलेज से निकल कर वह लड़की नौकरी करने लगती है, वह खुद पर गर्व महसूस करती है, लेकिन लड़की होना उसे यहां भी परेशान करता है। दफ्तर में घूरती निगाहें अक्सर उसे नंगा कर जाती हैं। मुश्किलें यहां खत्म नहीं होती अभी तो उस लड़की को खुद को सुरक्षित घर तक पहुंचना है, इस बीच बस ड्राइवर, कंडक्टर, साथ की सवारी और भी न जानें कितने लोगों की निगाहों से घायल होती है वह लड़की।
कैंडिल की नहीं इंसाफ की है चाह
कहते है कि अगर आप किसी लड़के साथ घर से बाहर जाती है तो गंदी सोच रखने वालों से बच जाती हैं, लेकिन ऐसा निर्भया के साथ नहीं हुआ था। बात बस इतनी सी है कि जो अंधेरा 5 सा पहले था वो आज भी वैसे का वैसा ही है। समझ नहीं आता है कि कैंडिल लेकर चलने से इंसाफ नहीं मिलता है। जो लड़कियां हर रोज खुद को खोकर इंसाफ की गुहार लगा रही है उसको कब मिलेगा इंसाफ। बड़े शहर में होने से या किसी की हिम्मत करने से केस कोर्ट तक तो पहुंच जाता है, लेकिन ये दरिंदे बेल पर बड़ी ही आसानी से निकल जाते हैं। इंसाफ के लिए तरसी उन आंखों को ना जाने कब सुकून मिलेगा।