शाहदरा जिले के न्यू सीलमपुर क्षेत्र में स्थित वेलकम नगर में एक युवक को उसकी सिर्फ इतनी सी ‘गुस्ताखी’ को लेकर चाकुओं से गोदकर मार दिया गया कि मारने वाले को शक था कि उसने उसका मोबाइल ले लिया है! इसी जिले के विवेक विहार में एक पति ने महज इसलिए अपनी पत्नी का गला घोंट दिया कि उसने उसे सिगरेट के लिए बीस रुपए देने में थोड़ी आनाकानी की थी.
बाद में पत्नी ने ये रुपए दे दिए तो भी उसका गुस्सा ठंडा नहीं हुआ. उसने पत्नी को तो मार ही दिया, खुद भी एक ट्रेन के आगे कूदकर जान दे दी. और तो और, दक्षिण पश्चिम दिल्ली जिले के मोती बाग पार्क में एक इतने सीधे-सादे युवक की अलस्सुबह हत्या कर दी गई, जिसकी लाश पर पछाड़ खाते उसके मां-बाप से इसके अलावा कुछ कहते नहीं बना कि उसका तो किसी से कभी कोई छोटा-मोटा पंगा भी नहीं हुआ.
देश का दिल कहलाने वाली राजधानी दिल्ली (जो इन दिनों जहरीले हवा-पानी के कारण अपने शहरियों की सेहत के लिए कोरोना के बाद का सबसे बड़ा संकट झेल रही है) के अखबारों में छपी वर्षांत की ये खबरें चीख-चीख कर जता रही हैं कि उसकी सामाजिक सेहत और भी खराब है. लेकिन दिल्ली ही क्यों, इन्हीं अखबारों में छपी गोरखपुर की उस खबर को पढ़ लें,
जिसमें ग्यारहवीं के एक छात्र को व्हाट्सएप पर लगाए उसके एक स्टेटस से खफा सिरफिरों ने उसके कालेज में ही गोलियों से भून डाला, तो साफ हो जाता है कि शेष देश का हाल भी कुछ अच्छा नहीं है. कह सकते हैं कि 2025 ने बहुत से जख्म दिए तो छाती चौड़ी करने के अनेक मौके भी.
लेकिन इस बात का क्या करें कि इससे यह गम गलत नहीं होता कि उसने हमें मनुष्यता के उदात्तीकरण की ओर ले जाने के बजाय उसके अवसान के अंदेशे ही प्रबल किए हैं. ये अंदेशे उत्सव बनते बड़े-बड़े युद्धों और उनमें निरीह बच्चों तक के संहारों में ही नहीं, हमारे निजी व सामाजिक जीवन की छोटी-छोटी कुटिलताओं में भी नजर आते हैं.
इसे यों समझ सकते हैं कि यूक्रेन, गाजा व सूडान जैसे संघर्षों, नृशंस आतंकवादी हमलों, जलवायु परिवर्तन के जाये बाढ़, भूकंप व तूफान जैसी प्राकृतिक आपदाओं और साइबर युद्ध आदि की त्रासदियों से जन्मे संकटों के लिए तो हम विभिन्न देशों की राजनीति, उसकी जाई व्यवस्थाओं व सरकारों की कुटिलताओं और भू-राजनीतिक तनावों, असुरक्षाओं, अस्थिरताओं व बदगुमानियों को जिम्मेदार ठहराकर खुद को बरी कर सकते हैं, लेकिन क्या हमारे द्वारा रोजमर्रा के जीवन में बरती जाने वाली नृशंसताओं की जिम्मेदारी में अपने सबसे बड़े हिस्से का ठीकरा किसी और पर फोड़कर आश्वस्त हो सकते हैं?