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हेमधर शर्मा ब्लॉग: सफेदपोश नागरिकों की दुनिया में कौन हैं नकाबपोश निशाचर?

By लोकमत समाचार ब्यूरो | Updated: August 21, 2024 12:21 IST

मेडिकल कॉलेज के पूर्व प्रिंसिपल भी सीबीआई की पूछताछ के दायरे में हैं

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कोलकाता के आरजी कर मेडिकल कॉलेज व अस्पताल में एक ट्रेनी डॉक्टर की बलात्कार के बाद हत्या की जघन्य वारदात से पूरा देश उबल रहा है। जगह-जगह धरना-प्रदर्शन हो रहे हैं, डॉक्टरों की हड़ताल हो रही है। इसी क्रम में 14-15 अगस्त की दरम्यानी रात जब उस अस्पताल के सामने भीड़ इकट्ठी होनी शुरू हुई तो वहां के डॉक्टरों को लगा कि वह उनके समर्थन में है, क्योंकि भीड़ मृतका को न्याय देने की मांग वाले नारे लगा रही थी।

लेकिन कुछ घंटों के भीतर ही जब विशाल आकार ले चुकी भीड़ ने अस्पताल पर हमला कर दिया और भीतर घुस कर तोड़-फोड़ करने लगी, तब वहां के कर्मचारियों को अहसास हुआ कि ये तो दोस्त नहीं, दुश्मन हैं! अब सभी राजनीतिक दल आरोप लगा रहे हैं कि ये गुंडे उनके नहीं, प्रतिद्वंद्वी पार्टियों के थे। जो भीड़ मृतका को न्याय दिलाने की मांग कर रही थी, उसी ने अस्पताल में उत्पात मचाकर उन सारे सबूतों को नष्ट कर दिया, जो अपराधियों को सजा दिलाने में सहायक हो सकते थे।

पूरा देश गुस्से से उबल रहा है, लेकिन रेप, गैंगरेप और हत्या की घटनाएं फिर भी देश के प्राय: सभी हिस्सों से सामने आ रही हैं। तीन दिन पहले ही उत्तराखंड के उधम सिंह नगर जिले में एक नर्स की रेप के बाद हत्या कर दी गई।दो दिन पहले ही देहरादून में दिल्ली से आई एक बस में नाबालिग लड़की से सामूहिक बलात्कार हुआ।

आखिर ये नराधम रहते कहां हैं कि समाज के जागरूक लोगों की उन पर नजर नहीं पड़ती? जिस अस्पताल में यह जघन्य वारदात हुई, वहां के कर्मचारी अपनी सुरक्षा को लेकर भयभीत हैं और मृतका के माता-पिता को संदेह है कि अपराधी अकेला नहीं है, अस्पताल के और लोग भी मिले हुए हैं; दोषियों को सजा दिलाने की मांग के नाम पर जो भीड़ इकट्ठा होती है वह जाने-अनजाने में अपराधियों की मदद कर जाती है; राजनीतिक पार्टियां हमेशा की तरह राजनीति करने में व्यस्त रहती हैं; भीड़ तोड़फोड़ कर अपनी ही सार्वजनिक संपत्ति को नुकसान पहुंचाती रहती है और हड़ताल से बेहाल मरीज फिर से सबकुछ सामान्य होने की प्रार्थना करते हुए जीवन और मृत्यु के बीच झूलते रहते हैं।

दिल्ली के निर्भया कांड के बाद भी देश भर में इसी तरह का उबाल आया था, लेकिन उसके बाद भी न गैंगरेप की घटनाओं में कमी आई है, न तमाशबीनों के उसे चुपचाप देखते रहने की। कोई किसी को सरेराह चाकुओं से गोद डालता है, दुर्घटना में घायल कोई सड़क किनारे पड़ा रहता है और राहगीर ऐसे गुजर जाते हैं जैसे कुछ हुआ ही न हो!

अपराधों के खिलाफ क्रोध से उबलते लोगों का हुजूम देखकर आश्वस्ति होती है कि मानवता अभी जिंदा है; लेकिन जब रक्षकों के ही भक्षक बनने का पता चलता है(आरजी कर अस्पताल कांड का नराधम संजय रॉय कोलकाता पुलिस का नागरिक स्वयंसेवक था और मेडिकल कॉलेज के पूर्व प्रिंसिपल भी सीबीआई की पूछताछ के दायरे में हैं), तो भय होता है कि कहीं दिन के उजाले में भलेमानस नजर आने वाले हम सफेदपोशों में से ही तो नहीं कुछ लोग रात के अंधेरे में निशाचर बन जाते हैं?

टॅग्स :कोलकाताKolkata Policeरेपहत्याडॉक्टरक्राइमपश्चिम बंगाल
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