चेन्नई सुपर किंग्स के आईपीएल से इस तरह की विदाई की किसी ने भी सोचा नहीं होगा। पिछले तेरह संस्करणों में टीम का यह सबसे निराशाजनक प्रदर्शन रहा। बेशक, इस तरह के प्रदर्शन को लेकर हैरतअंगेज, घटिया, खराब जैसे विशेषण लाजिमी हो जाते हैं।पिछली बार की उपविजेता टीम का आगाज तो अच्छा रहा। शुरुआती मुकाबले में उसने मुंबई इंडियंस को मात दी लेकिन उसके बाद वह महज दो ही जीत दर्ज कर पाई।
शुक्रवार को मुंबई के हाथों दस विकेट की करारी हार ने तो टीम की योग्यता पर ही सवाल खड़े कर दिए। स्पर्धा में कुछ टीमें भी अच्छा प्रदर्शन नहीं कर पाई लेकिन उनके खिलाडि़यों ने वापसी की उम्मीदें जीवित रखी, इसके ठीक विपरीत सीएसके के खिलाडि़यों का हाल रहा है। इसकी वजह निर्णायक मौकों पर खिलाड़ी व्यक्तिगत और टीम भावना जगाने में नाकाम रहे।
गेंदबाजी और बल्लेबाजी के साथ-साथ टीम का क्षेत्ररक्षण भी अच्छा नहीं रहा। संभव है कि कई मर्तबा टीम के मुख्य खिलाड़ी चोटिल अथवा अच्छा प्रदर्शन करने में नाकाम रह सकते हैं लेकिन उनकी जगह शामिल युवाओं को अपनी क्षमता का परिचय देने का मौका मिलता है। लेकिन सीएसके के साथ ऐसा भी नहीं हो पाया। सफलता और विफलता में काफी कुछ छिपा होता है।
इसमें चयन प्रक्रिया, खिलाडि़यों के बीच तालमेल, रणनीति, कप्तानी आदि चीजे अहम होती हैं जिन्हें सीएसके की विफलता की मुख्य वजह मानी जा सकती है। उम्रदराज खिलाड़ी भी टीम के लिए समस्या रही। वर्ष 2018 के सत्र में टीम विजेता रही और वर्ष 2019 में वह उपविजेता रही। टीम प्रबंधन ने युवाओं को जिम्मेदारी सौंपने में देरी कर दी। टीम के ज्यादातर खिलाड़ी केवल टी-20 लीग का हिस्सा हैं। इनमें कप्तान धोनी समेत वॉटसन, रायुडू, ब्रावो, ताहिर का नाम लिया जा सकता है। साथ ही कोविड ने अभ्यास का मौका हीं नहीं दिया। ऐसे में रैना और भज्जी की अनुपस्थिति भी महंगी पड़ी। स्पिनर्स टीम की ताकत रही है, लेकिन इस बार पीयूष चावला, कर्ण शर्मा और रविंद्र जडेजा ने भी निराश किया।