अयाज मेमन का कॉलम: धोनी ने खुद लिखी अपनी पटकथा
By अयाज मेमन | Updated: August 23, 2020 09:01 IST2020-08-23T09:01:10+5:302020-08-23T09:01:10+5:30
झारखंड जैसे पिछड़े राज्य से ताल्लुक रखने वाले इस दिग्गज क्रिकेटर ने जो हासिल किया उसमें प्रतिष्ठा भी अहम रही. धोनी की अपारंपरिक तकनीक और रणनीति चर्चा में बनी रही.

अयाज मेमन का कॉलम: धोनी ने खुद लिखी अपनी पटकथा
पिछले सप्ताह महेंद्र सिंह धोनी का संन्यास सुर्खियों में रहा. स्वतंत्रता दिवस के मौके पर उन्होंने शाम 7 बजकर 29 मिनट पर इंस्टाग्राम से संन्यास की घोषणा करते ही पूरी दुनिया में हलचल मच गई. उन्हें भविष्य की शुभकामनाएं भेजे जाने लगे. धोनी ने जब करियर समाप्ति की घोषणा की तो उनके पिछले 15 वर्षों के शानदार करियर की भी याद ताजा हो गई. उनका कृतित्व और नेतृत्व की चर्चा होने लगी.
उन्होंने रन बनाने के साथ-साथ विकेट के पीछे भी कमाल का प्रदर्शन किया. सच कहा जाए तो धोनी के करियर से जुड़े आंकड़े उनके कारनामे के लिए पर्याप्त हैं. 2007 में कप्तानी संभालने वाले इस दिग्गज ने आईसीसी की सभी बड़ी स्पर्धाएं जीतीं. भारतीय टेस्ट टीम को नंबर रैंकिंग भी दिलाई. भारतीय क्रिकेट में अनेक धुरंधरों का जिक्र किया जा सकता है.
मेरे हिसाब से मंसूर अली खान पटौदी और सचिन तेंदुलकर के बाद खुद की पटकथा लिखने वाले वह तीसरे भारतीय हैं. पटौदी 15 साल अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट में केवल एक आंख से खेले. वह कमाल के स्ट्रोकप्लेयर थे. उनके सामने तमाम तेज गेंदबाज हतप्रभ रह गए. साथ ही उनके आकर्षक क्षेत्ररक्षक के कारण उन्हें 'टाइगर' कहा गया था. महज 21 वर्ष की आयु में पटौदी कप्तान बने. टीम में टीम भावना जगाने में उनका कोई सानी नहीं था.
गेंदबाजों और क्षेत्ररक्षकों में टीम भावना जगाकर ही उन्होंने भारत को पहली विदेशी यात्रा सफलता दिलाई थी. पटौदी के पहले और बाद में ऐसा रणनीतिकार नहीं देखा. सचिन तेंदुलकर क्रिकेट इतिहास के महान बल्लेबाज माने जाते हैं. सचिन का करियर क्रिकेट जगत के लिए बेमिसाल रहा. बल्लेबाजी में निरंतरता के बल उन्होंने शतकों का शतक जड़ा, जो अपने आप में अनूठा कारनामा है.
एक अरब से अधिक भारतीयों की उम्मीदों के बोझ के बीच क्रिकेट की लंबी यात्रा करना सचिन की सबसे बड़ी कामयाबी रही. शायद ब्रैडमन भी इतने लंबे समय तक दबाव के साथ नहीं खेल सकते थे. धोनी का करियर शानदार रहने के साथ-साथ रोमांचक भी रहा. बगैर कोई विरासत के एक छोटे शहर से उन्होंने करियर का आगाज किया था. स्कूली जीवन की शुरुआत में उनके सामने क्रिकेट और फुटबॉल के रूप में दो विकल्प थे.
आखिर उन्होंने रोजगार को देखते हुए क्रिकेट को पसंद किया. हालांकि रेलवे में टिकट कलेक्टर बनने के बाद भी उनमें आगे बढ़ने की चाहत थी और झारखंड जैसे पिछड़े राज्य से ताल्लुक रखने वाले इस दिग्गज क्रिकेटर ने जो हासिल किया उसमें प्रतिष्ठा भी अहम रही. धोनी की अपारंपरिक तकनीक और रणनीति चर्चा में बनी रही. उन्होंने हमेशा हटके करने की कोशिश की. आलोचना की अनदेखी कर आगे बढ़ने पर ध्यान दिया.
प्रत्येक अवसर को भुनाया और लुत्फ उठाया. फ्रैंक सिनात्रा की चर्चित कहावत है- 'आई डिड इट इन माई वे' इसी तर्ज पर धोनी निरंतर सफलता की सीढि़यां चढ़ते चले गए.