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विनीत नारायण का ब्लॉगः आर्थिक मोर्चे पर सतर्कता जरूरी

By लोकमत समाचार ब्यूरो | Updated: August 20, 2019 05:51 IST

आर्थिक हालत अभी उतनी बुरी न सही लेकिन आगे के लिए सतर्कता बरतना हमेशा ही जरूरी माना जाता है.

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देश की आर्थिक स्थिति को लेकर मीडिया में चर्चाएं अचानक बढ़ गई हैं. पिछली तिमाही में कार और दोपहिया वाहनों की मांग में तेजी से आई गिरावट के बाद तो कुछ ज्यादा ही चिंता जताई जाने लगी है. उधर विश्व में सबसे बड़ी अर्थव्यवस्थाओं में भारत का ओहदा घट जाने की खबर ने भी ऐसी चर्चाओं को और हवा दे दी. अंदरूनी तौर पर वास्तविक स्थिति क्या है, इसका पता फौरन नहीं चलता. हकीकत बाद में पता चलेगी. लेकिन फिलहाल सरकार उतनी चिंतित नहीं दिखाई देती. उसके पास कुछ तर्क भी हैं. मसलन जीएसटी से कर संग्रह पर असर पड़ा नहीं दिख रहा है. दूसरा तर्क यह कि अपने देश में उत्पादन में सुस्ती का एक कारण वैश्विक मंदी है. बहरहाल, आर्थिक हालत अभी उतनी बुरी न सही लेकिन आगे के लिए सतर्कता बरतना हमेशा ही जरूरी माना जाता है.

सकल घरेलू उत्पाद में आधा पौन फीसदी की घट-बढ़ एक रुझान तो हो सकता है लेकिन यह किसी आफत का लक्षण नहीं कहा जा सकता. इसी आंकड़े से देश की अर्थव्यवस्था का आकार तय होता है. हाल ही में हम विश्व में पांचवें से खिसककर सातवें स्थान पर भले ही आ गए हों लेकिन यह उतनी चिंताजनक बात है नहीं. बल्कि यह आंकड़ा हमें उत्पादक कामकाज में सुधार के लिए प्रेरित कर सकता है.

पिछली तिमाही में वाहनों की बिक्र ी में फिलहाल कमी ही दिखी है, ये उद्योग खत्म नहीं हो गया है. विशेष प्रयासों से देश में आर्थिक गतिविधियां कभी भी बढ़ाई जा सकती हैं. देश में उपभोक्ता वस्तुओं की मांग बढ़ाने के कई उपाय किए जा सकते हैं और स्थिति को सुधारा जा सकता है. खबरें हैं कि वित्त मंत्नी इस काम पर लग भी गई हैं. फिर भी सावधानी के तौर पर यह समय देश की माली हालत के कई पहलुओं पर गौर करने का जरूर है.

आर्थिक मामलों के जानकार बताते रहते हैं कि अपने देश की अर्थव्यवस्था तीन क्षेत्नों में वृद्धि से तय होती है. ये क्षेत्न हैं विनिर्माण, सेवा और कृषि. मौजूदा चिंता विनिर्माण और सेवा क्षेत्न में सुस्ती से उपजी है.

टॅग्स :भारतीय अर्थव्यवस्था
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