भारतीय प्रतिभाओं को नकारना अमेरिका को ही पड़ेगा भारी, ‘एच-1बी’ वीजा की दीवार?

By रहीस सिंह | Updated: October 27, 2025 05:21 IST2025-10-27T05:21:50+5:302025-10-27T05:21:50+5:30

ट्रम्प प्रशासन को अपने लोगों के रोजगार को बचाने के लिए ‘एच-1बी’ वीजा की एक दीवार खड़ी करने की आवश्यकता आज पड़ रही है.

usa donald trump Rejecting Indian talent cost America dearly Today need build wall 'H-1B' visas blog Rahees Singh | भारतीय प्रतिभाओं को नकारना अमेरिका को ही पड़ेगा भारी, ‘एच-1बी’ वीजा की दीवार?

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Highlights प्रतिभाओं और भारत के लिए प्रतिकूल है लेकिन क्या अमेरिका के लिए अनुकूल है? अमेरिकी थिंक टैंक्स ने पहले पहल भारतीय प्रतिभाओं को उदारीकरण की संतानें कहा था.यह ऐसा वर्ग था जो यथास्थितिवादी नहीं था बल्कि इनोवेटिव और सदैव कुछ नया करते हुए आगे बढ़ने वाला था.

अमेरिकी पत्रकार थॉमस फ्रीडमैन ने अपनी एक पुस्तक में बिल गेट्स के एक कथन को बड़ा महत्व दिया है.  कथन है- ‘पैदाइशी किस्मत बदल चुकी है-जिस तरह भूगोल और प्रतिभा का पूरा संबंध बदल चुका है.  ...प्राकृतिक प्रतिभा भूगोल पर भारी पड़ने लगी है.’’ मेरी दृष्टि से यह कथन भारतीय प्रतिभाओं पर बिल्कुल सटीक बैठता है. भारतीय प्रतिभाएं तो हमेशा से दुनिया को अपनी कुशलता का लोहा मनवाती रही हैं और आज भी वे सबसे आगे हैं.  यही कारण है कि ट्रम्प प्रशासन को अपने लोगों के रोजगार को बचाने के लिए ‘एच-1बी’ वीजा की एक दीवार खड़ी करने की आवश्यकता आज पड़ रही है.

निःसंदेह यह भारतीय प्रतिभाओं और भारत के लिए प्रतिकूल है लेकिन क्या अमेरिका के लिए अनुकूल है? अमेरिकी थिंक टैंक्स ने पहले पहल भारतीय प्रतिभाओं को उदारीकरण की संतानें कहा था.यह ऐसा वर्ग था जो यथास्थितिवादी नहीं था बल्कि इनोवेटिव और सदैव कुछ नया करते हुए आगे बढ़ने वाला था.

थामस फ्रीडमैन ने अपनी एक पुस्तक (वर्ल्ड इज फ्लैट) में इनके लिए ‘जिप्पी’ शब्द का प्रयोग किया है, जो सूचना प्रौद्योगिकी, वैश्वीकरण और आर्थिक उदारीकरण के बीच बड़े हुए. उन्होंने 21वीं सदी के पहले दशक में किसी गौरवपूर्ण तरीके से नहीं बल्कि नई पैदा हो रही भारतीय प्रतिभाओं से भय खाते हुए कहा था- ‘द जिप्पीज आर हियर’ यानी ‘जिप्पी आ गए.’

क्योंकि ये ‘गोल दुनिया’ को ‘फ्लैट वर्ल्ड’ में बदलने की क्षमता रखते थे. आज से 20-22 साल पहले जिससे थॉमस फ्रीडमैन डर रहे थे उससे उस समय जॉर्ज डब्ल्यू बुश जूनियर सहित कई अमेरिकी नेता और सीनेटर भी डर रहे थे क्योंकि वे यह कहते हुए देखे गए थे कि ‘‘भारतीय इंजीनियर्स आपसे (अमेरिकयों से) नौकरी छीन लेंगे.’’ यही डर ट्रम्प में भी घर कर गया.

बाजार एक्सपर्ट्स के अनुसार कुछ समय के लिए तो अमेरिका की अप्रत्याशित तौर पर काफी अच्छी कमाई होगी लेकिन लंबे समय में उसे नुकसान उठाना पड़ सकता है. इससे वह इनोवेशन पर अपनी बढ़त खो देगा. नई वीजा फीस से अमेरिका अब दुनिया की सबसे अच्छी प्रतिभाओं को बुलाने में दिक्कत महसूस करेगा.

रही बात भारतीय प्रतिभाओं की तो उनके लिए अभी ‘मानइस अमेरिका’ वाली दुनिया एक अच्छा विकल्प हो सकती है. भारतीय कौशल के चहेते तो कनाडा, ऑस्ट्रेलिया, यूरोप और मध्य पूर्व के देश जैसे कतर, सऊदी अरब और यूएई में भी हो सकते हैं. यूरोप के आर्थिक इंजन के तौर पर जाने जाने वाले जर्मनी में भारतीयों के लिए बहुत सारे अवसर हैं. जापान भारत के आईटी इंजीनियरों और कुशल कामगारों की तलाश में है. उधर ब्रेक्जिट के बाद ब्रिटेन में नई जरूरतें पैदा हुई हैं जो स्किल्ड प्रोफेशनल्स की मांग कर रही हैं.

फ्रांस का एयरोस्पेस और डिफेंस उद्योग भारतीय इंजीनियरों को आकर्षित कर रहा है.  ऑस्ट्रेलिया में हेल्थकेयर, आईटी और कंस्ट्रक्शन सेक्टर में भारतीय प्रोफेशनल्स के लिए पर्याप्त अवसर हैं. बहरहाल, भारतीय प्रतिभाओं के लिए अमेरिका अब भी श्रेष्ठ गंतव्य है, लेकिन दुनिया विकल्पहीन कभी नहीं होती. हां, भारतीय प्रतिभाओं को अपना मनोविज्ञान बदलने की जरूरत होगी. भारतीय प्रतिभाओं को अमेरिकी अहं को यह चुनौती देनी होगी कि, ‘‘योर वर्ल्ड इज सिंक्रोनाइज्ड.’’

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