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ब्लॉग: मुक्त व्यापार समझौतों की बनती नई संभावनाएं

By डॉ जयंती लाल भण्डारी | Updated: December 17, 2021 15:22 IST

निश्चित रूप से कोरोना संक्रमण और आरसेप के कारण बदली हुई वैश्विक व्यापार व कारोबार की पृष्ठभूमि में एफटीए को लेकर भारत की रणनीति में बदलाव का स्वागत किया जाना चाहिए।

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इस समय भारत दुनिया के कई प्रमुख देशों अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया, ब्रिटेन, संयुक्त अरब अमीरात (यूएई), कनाडा, दक्षिण अफ्रीका आदि के साथ मुक्त व्यापार समझौते (एफटीए) को तेजी से अंजाम देने की डगर पर आगे बढ़ रहा है। ये ऐसे देश हैं, जिन्हें भारत जैसे बड़े बाजार की जरूरत है और ये देश बदले में भारत के विशेष उत्पादों के लिए अपने बाजार के दरवाजे भी खोलने के लिए उत्सुक हैं। इससे घरेलू सामानों की पहुंच एक बहुत बड़े बाजार तक हो सकेगी।

गौरतलब है कि विगत् 23 नवंबर को वाणिज्य और उद्योग मंत्री पीयूष गोयल ने कहा कि भारत अमेरिका व्यापार नीति मंच के तहत जहां दोनों देशों के बीच महत्वपूर्ण व्यापार समझौता हुआ है, वहीं दोनों देशों के बीच सीमित दायरे वाले मुक्त व्यापार समझौते की संभावनाएं बढ़ी हैं। पिछले एक दशक के बाद अब भारत के द्वारा बड़े एफटीए पर हस्ताक्षर के लिए तैयारी सुकूनदेह है।

भारत ने अपना पिछला व्यापार समझौता प्रमुख रूप से वर्ष 2011 में मलेशिया के साथ किया था। उसके बाद विगत 22 फरवरी 2021 को मॉरिशस के साथ सीमित दायरे वाले एफटीए पर हस्ताक्षर हुए हैं। वस्तुत: हाल के वर्षों में विश्व व्यापार संगठन (डब्ल्यूटीओ) के तहत विश्व व्यापार वार्ताओं में जितनी उलझनें खड़ी हुई हैं, उतनी ही तेजी से विभिन्न देशों के बीच एफटीए बढ़ते गए हैं।

इस समय दुनियाभर में लागू एफटीए की संख्या 300 के पार हो चुकी है। यह एक अच्छी बात है कि डब्ल्यूटीओ कुछ शर्तों के साथ सीमित दायरे वाले एफटीए की इजाजत भी देता है। एफटीए ऐसे समझौते हैं जिनमें दो या दो से ज्यादा देश वस्तुओं एवं सेवाओं के आयात-निर्यात पर सीमा शुल्क, नियामक कानून, सब्सिडी और कोटा आदि संबंधी प्रावधानों में एक-दूसरे को तरजीह देने पर सहमत होते हैं। पिछले वर्ष 15 नवंबर 2020 को दुनिया के सबसे बड़े ट्रेड समझौते रीजनल कांप्रिहेंसिव इकोनॉमिक पार्टनरशिप (आरसेप) ने 15 देशों के हस्ताक्षर के बाद जो मूर्तरूप लिया है, भारत उस समझौते में शामिल नहीं हुआ है। इस बार फिर 28 अक्तूबर को आसियान देशों के शिखर सम्मेलन में आसियान सदस्यों के साथ वार्ताओं में प्रधानमंत्री मोदी ने स्पष्ट किया कि मौजूदा स्वरूप में भारत आरसेप का सदस्य होने का इच्छुक नहीं है।

आरसेप समझौते में अब तक भारत की चिंताओं का भी निदान नहीं किया गया है। ऐसे में आरसेप से दूरी के बाद सरकार एफटीए को लेकर नई सोच के साथ आगे बढ़ी है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के द्वारा 30 और 31 अक्तूबर को जी-20 के शिखर सम्मेलन के दौरान जी-20 के विभिन्न राष्ट्र प्रमुखों के साथ की गई प्रभावी बातचीत के बाद सरकार यूरोपीय संघ, ऑस्ट्रेलिया, यूएई और ब्रिटेन के साथ सीमित दायरे वाले व्यापार समझौते के लिए तेजी से आगे बढ़ते हुए दिखाई दे रही है।

उल्लेखनीय है कि 27 देशों की आर्थिक व राजनीतिक सहभागिता वाले यूरोपियन यूनियन के साथ भारत के द्वारा वर्ष 2013 से एफटीए पर कवायद चल रही है। यूरोपीय यूनियन भारतीय निर्यात का दूसरा सबसे बड़ा गंतव्य है। लेकिन कई मुद्दों पर मतभेद के कारण यूरोपीय संघ के साथ एफटीए को अंतिम रूप नहीं दिया जा सका। लेकिन मई 2021 के बाद बदले वैश्विक आर्थिक परिवेश में भारत और यूरोपीय संघ के बीच एफटीए की संभावनाएं बढ़ी हैं।

यद्यपि ऑस्ट्रेलिया, संयुक्त अरब अमीरात (यूएई) और ब्रिटेन सहित कुछ और देशों के साथ सीमित दायरे वाले एफटीए के लिए चर्चाएं संतोषजनक रूप में हैं, लेकिन कुछ चुनौतियां भी बनी हुई हैं। अब भारत मुक्त व्यापार समझौते से संबंधित अपनी रणनीति में देश की कारोबार जरूरतों और वैश्विक व्यापार परिदृश्य को ध्यान में रखते हुए जरूरी बदलाव के लिए तैयार है।

यहां यह भी उल्लेखनीय है कि विगत जुलाई 2020 में भारत और अमेरिका के बीच वर्चुअल वार्ता में यह विचार मंथन किया गया था कि दोनों देशों के बीच शुरुआत में सीमित कारोबारी समझौता किया जाए और फिर भारत व अमेरिका के बीच द्विपक्षीय कारोबार की मदों को चिह्नित करने के साथ एक प्रभावी एफटीए की संभावना को आगे बढ़ाया जाए।

अब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के द्वारा सितंबर 2021 में अमेरिका की यात्रा और अमेरिका में राष्ट्रपति जो बाइडेन के साथ वार्ता से भारत के अच्छे आर्थिक और कारोबारी संबंधों की नई संभावनाओं के परिदृश्य ने भारत और अमेरिका के बीच सीमित दायरे वाले कारोबारी समझौते की संभावनाएं बढ़ाई हैं। वस्तुत: भारत की विभिन्न देशों के साथ एफटीए वार्ताओं के लंबा खिंचने का एक बड़ा कारण विनिर्माण जैसे कुछ बेहद गतिशील व्यापार क्षेत्रों में ऊंचे घरेलू शुल्कों का होना है।

स्थिति यह है कि भारत अपने एफटीए समझौतों में लगभग सभी व्यापार को अधिक तरजीही शुल्क ढांचे के रूप में प्रस्तुत करने से हिचकिचाता रहा है। लिहाजा, अब एफटीए पर होने वाली वार्ताओं में तरजीही व्यापार उदारीकरण के समकक्ष स्तर और भारत में नियामकीय नीतिगत सुधारों की बात मानी जा रही है। निश्चित रूप से कोरोना संक्रमण और आरसेप के कारण बदली हुई वैश्विक व्यापार व कारोबार की पृष्ठभूमि में एफटीए को लेकर भारत की रणनीति में बदलाव का स्वागत किया जाना चाहिए।

अब भारत दुनिया के विभिन्न देशों के साथ नए सीमित दायरे वाले मुक्त व्यापार समझौतों की डगर पर और तेजी से आगे बढ़ेगा। हम उम्मीद करें कि अब यूरोपीय संघ, अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया, यूएई, ब्रिटेन, कनाडा और दक्षिण अफ्रीका के साथ सीमित दायरे वाले एफटीए को शीघ्रतापूर्वक अंतिम रूप दिया जा सकेगा और इससे भारत के विदेश-व्यापार के नए अध्याय लिखे जा सकेंगे।

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