राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालयः घटती महंगाई से अर्थव्यवस्था में मजबूती आने की उम्मीद?
By डॉ जयंती लाल भण्डारी | Updated: March 28, 2025 05:16 IST2025-03-28T05:16:33+5:302025-03-28T05:16:33+5:30
National Statistical Office: विगत 7 फरवरी को आरबीआई के गवर्नर संजय मल्होत्रा ने रेपो रेट में 0.25 फीसदी की कटौती कर इसे 6.25 फीसदी किया है.

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National Statistical Office: हाल ही में राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय (एनएसओ) के द्वारा जारी आंकड़ों के अनुसार, भारत की खुदरा मुद्रास्फीति फरवरी 2025 में घटकर सात महीने के निचले स्तर 3.61 प्रतिशत पर आ गई, जबकि खाद्य मुद्रास्फीति लगभग दो वर्षों में पहली बार 4 प्रतिशत से नीचे आ गई है. यह महत्वपूर्ण है कि खुदरा मुद्राफीति में पिछले साल अक्तूबर के बाद से ही गिरावट आ रही है. अक्तूबर महीने में यह 10.87 फीसदी के स्तर पर थी. ऐसे में समग्र मुद्रास्फीति दर भी कुछ समय तक ऊंची बनी रही और भारतीय रिजर्व बैंक के लिए नीतिगत जटिलताओं का परिदृश्य निर्मित हुआ था.
उल्लेखनीय है कि रिजर्व बैंक महंगाई और ब्याज दर में संतुलन बनाए रखने की नीति पर लगातार आगे बढ़ा और फिर उपयुक्त पाए जाने पर विगत 7 फरवरी को आरबीआई के गवर्नर संजय मल्होत्रा ने रेपो रेट में 0.25 फीसदी की कटौती कर इसे 6.25 फीसदी किया है. अब महंगाई और घटने से भारतीय रिजर्व बैंक की आगामी अप्रैल 2025 की बैठक में ब्याज दरों में अधिक कटौती की उम्मीदें मजबूत हो गई हैं.
इतना ही नहीं, इस समय इस बात के भी संकेत उभरकर दिखाई दे रहे हैं कि अर्थव्यवस्था में मांग और खपत बढ़ाने के लिए वित्त मंत्रालय इसी वर्ष 2025 में लघु बचत योजनाओं की ब्याज दरों को घटा सकता है. बचत योजनाओं की ब्याज दरों में कटौती से लोग धन खर्च करने के लिए आगे बढ़ेंगे.
इसमें दो मत नहीं कि ब्याज दरें अधिक होने से उपभोक्ता कर्ज लेने से पीछे हट रहे थे और कर्ज की अधिक लागत से उद्यमी भी विस्तार की योजनाओं के लिए तत्परता नहीं दिखा रहे थे. ऐसे में नए फैसलों से लोगों की क्रयशक्ति और खपत बढ़ने से विकास दर को गति दी जा सकेगी.
लंबे समय तक ऊंचे स्तर पर रहने के बाद देश में खुदरा मुद्रास्फीति के काफी नीचे आने के पीछे एक प्रमुख कारण बेहतर कृषि उत्पादन भी है. हाल ही में जारी 2024-25 में प्रमुख फसलों के उत्पादन के दूसरे अग्रिम अनुमान के मुताबिक खरीफ में पिछले साल से 7.9 फीसदी अधिक खाद्यान्न उत्पादन होने का अनुमान है और रबी की खाद्यान्न उपज में भी 6 फीसदी बढ़ोतरी की संभावना है.
इससे गेहूं, चावल और मक्के की फसल का उत्पादन रिकॉर्ड स्तर पर पहुंच सकता है. साथ ही अन्य खाद्यान्नों तथा मोटे अनाज, तुअर और चना का उत्पादन भी रिकॉर्ड ऊंचाई पर पहुंच सकता है. इसी तरह फल और सब्जी उत्पादन में भी तेज वृद्धि होगी. यद्यपि खाद्य कीमतों में तेज गिरावट के कारण नीतिगत दरों में कटौती की गुंजाइश बनती है, किंतु घटती महंगाई और बढ़ते खाद्य उत्पादन को देखकर सरकार को कृषि क्षेत्र में लंबे समय से पसरी हुई चुनौतियों से नजर हटाने से बचना होगा. मौसम की अति तथा जलवायु परिवर्तन से निर्मित होने वाली समस्याओं पर लगातार ध्यान देना होगा.
किसानों को मिलने वाली कीमत और उपभोक्ताओं द्वारा चुकाए जाने वाले मूल्य में भारी अंतर, भंडारण तथा गोदामों की कमी से फसलों की बरबादी, खेत और मंडियों के बीच दूरी और खस्ताहाल सड़कों जैसी रुकावटों को दूर करने पर निरंतर ध्यान देना होगा.