Maharashtra Tops foreign Capital Investment: महाराष्ट्र के उद्योग मंत्री उदय सामंत ने उत्साहवर्धक जानकारी दी कि तमाम बाधाओं तथा उथल-पुथल के बावजूद विदेशी पूंजी निवेश के मामले में महाराष्ट्र देश में अव्वल है. पिछले कई दशकों से महाराष्ट्र में औद्योगिक विकास तेजी से हुआ और इसमें विदेशी पूंजी निवेश का महत्वपूर्ण योगदान रहा. रविवार को लोकमत समूह के पत्रकारिता पुरस्कार वितरण कार्यक्रम को संबोधित करते हुए उदय सामंत ने भारतीय रिजर्व बैंक की रिपोर्ट का हवाला देते हुए कहा कि पिछले दो वर्षों से महाराष्ट्र में सबसे ज्यादा विदेशी पूंजी निवेश हुआ है.
राज्य पिछले कुछ वर्षों से राजनीतिक उथल-पुथल का सामना कर रहा है, खासकर 2019 के विधानसभा चुनाव के बाद राज्य के राजनीतिक घटनाक्रमों की चर्चा पूरे देश में रही. किसी भी राज्य के विकास के लिए औद्योगिक विकास बेहद आवश्यक होता है. यदि यह कहा जाए तो अतिशयोक्ति नहीं होगी कि पिछली दो सदियों से औद्योगिक विकास को ही तरक्की एवं खुशहाली का पैमाना माना जाता है.
घरेलू और विदेशी निवेश के बिना औद्योगिक विकास संभव नहीं है लेकिन कोई भी उद्यमी किसी राज्य में धन निवेश करने के पहले यह देखता है कि वहां राजनीतिक स्थिरता है या नहीं, कानून और व्यवस्था की हालत कैसी है, श्रमिकों की उपलब्धता और श्रमिक क्षेत्र का माहौल कैसा है, उस राज्य की सरकार तथा नौकरशाही का रवैया कैसा है, उद्योगों की स्थापना के लिए नियम कितने सख्त हैं.
बिजली आपूर्ति तथा सड़क, रेल और हवाई संपर्क कैसा है. महाराष्ट्र 64 वर्ष पहले अस्तित्व में आया था. उसके बाद राज्य में जिस किसी पार्टी ने शासन किया, औद्योगिक विकास के अनुकूल माहौल बनाया तथा बुनियादी ढांचे को मजबूत बनाने को सर्वोच्च प्राथमिकता दी. इसी कारण देश की आर्थिक राजधानी के रूप में मुंबई की छवि और निखरी तथा महाराष्ट्र में निवेश करने को देसी तथा विदेशी उद्यमियों ने प्राथमिकता दी. ऐसा नहीं है कि महाराष्ट्र में कोई समस्याएं ही नहीं हैं.
राज्य ने अस्सी के दशक में अस्थिरता देखी, कानून और व्यवस्था से जुड़ी समस्याएं देखीं, उग्र श्रमिक आंदोलन तथा आतंकवादी हमलों का दंश भी झेला लेकिन घरेलू तथा विदेशी निवेशकों का महाराष्ट्र पर भरोसा बना रहा. इसका सबसे बड़ा कारण यह रहा कि राज्य में पूंजी निवेश के नियम अपेक्षाकृत सरल हैं, उद्योगों की स्थापना की शर्तें बहुत जटिल नहीं हैं, देश के किसी भी हिस्से तथा दुनिया के प्रमुख देशों तक हवाई संपर्क का व्यापक जाल है. इसके अलावा औद्योगिक विकास के लिए महाराष्ट्र में सुनियोजित प्रशासनिक ढांचा मजबूत है.
पिछले दो-तीन वर्षों में कुछ बड़ी औद्योगिक परियोजनाएं महाराष्ट्र के हाथ से निकल गईं. इसके लिए महाराष्ट्र में राजनीतिक अस्थिरता को जिम्मेदार ठहराया गया. वेदांता की परियोजना गुजरात चले जाने के बाद विपक्ष ने शिंदे सरकार को आड़े हाथों लिया था और यह आरोप भी लगाया था कि महाराष्ट्र के प्रति घरेलू एवं विदेशी निवेशकों की दिलचस्पी कम हो रही है क्योंकि सत्तारूढ़ गठबंधन का सारा ध्यान सत्ता बचाने पर है. वैसे देखा जाए तो पिछले दस वर्षों में उदार आर्थिक नीतियों के कारण भारत में पूंजी निवेश के अनुकूल माहौल बना है.
इसका सबसे ज्यादा फायदा महाराष्ट्र को मिला है जबकि गुजरात, राजस्थान, ओडिशा, असम, कर्नाटक जैसे कई राज्यों में राजनीतिक स्थिरता और कुशल प्रशासनिक क्षमतावाला नेतृत्व रहा है. इसके बावजूद विदेशी पूंजी निवेश के लिए महाराष्ट्र सबसे पसंदीदा गंतव्य बना रहा. महाराष्ट्र की भौगोलिक स्थिति भी उसे निवेश के लिए उपयुक्त स्थल बनाती है.
दो साल पहले जरूर कर्नाटक शीर्ष पर आ गया था. कर्नाटक में 37.55 प्रतिशत विदेशी निवेश आया था. जबकि देश में कुल निवेश के 26.25 प्रतिशत हिस्से के साथ महाराष्ट्र दूसरे स्थान पर रहा. राज्य में उस वक्त राजनीतिक उथल-पुथल थी. शायद उसका असर राज्य में पूंजी निवेश पर पड़ा हो. लेकिन निवेशकों की आस्था जल्द ही महाराष्ट्र में फिर बहाल हो गई और यहां सबसे ज्यादा पूंजी निवेश होने लगा है.
इसके बावजूद चुनौतियां खत्म नहीं हुई हैं. राज्य में निकट भविष्य में विधानसभा के चुनाव होने हैं. शिवसेना तथा राकांपा के दोनों गुटों के बीच असली-नकली का विवाद सुप्रीम कोर्ट में चल रहा है. इन मुकदमों के फैसले पर राज्य में सत्तारूढ़ गठबंधन का अस्तित्व टिका है. विधानसभा चुनाव के परिणामों के अलावा मराठा आरक्षण आंदोलन के भविष्य पर भी विदेशी निवेशकों की नजर है.
एक बात अच्छी है कि बाहरी राज्यों से महाराष्ट्र में आकर बसे लोगों के विरुद्ध कुछ तत्वों के हमले कम हो गए हैं लेकिन समय-समय पर राजनीतिक हित साधने के लिए इस खतरे को जीवित कर दिया जाता है. इसके अलावा बुनियादी सुविधाओं के दायरे का विस्तार उन इलाकों तक किया जाना चाहिए जहां विकास के लिए जरूरी सभी तत्व मौजूद हैं लेकिन वे विकास के लिहाज से उपेक्षित रहे. इसी के साथ उन खामियों को दूर करना होगा जिनके कारण कुछ बड़े उद्योग महाराष्ट्र के हाथ से निकल गए.