टैरिफ से लेना होगा आत्मनिर्भरता की ओर बढ़ने का सबक

By लोकमत समाचार ब्यूरो | Updated: April 4, 2025 07:16 IST2025-04-04T07:15:45+5:302025-04-04T07:16:38+5:30

इसके बाद वैश्वीकरण बढ़ने के साथ ही टैरिफ का भी दुनिया में विस्तार होता चला गया.

Lessons to move towards self-reliance have to be learnt from tariffs | टैरिफ से लेना होगा आत्मनिर्भरता की ओर बढ़ने का सबक

टैरिफ से लेना होगा आत्मनिर्भरता की ओर बढ़ने का सबक

अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने 60 से अधिक देशों के लिए अपनी जिस बहुचर्चित टैरिफ योजना की घोषणा की है, कम से कम भारत में तो उसका बहुत ज्यादा असर नहीं दिखा है. भारत से अमेरिका को होने वाले निर्यात पर ट्रम्प प्रशासन ने लगभग 27 प्रतिशत का टैरिफ लगाया है, लेकिन इससे दवा कंपनियों को बाहर रखा गया है, जिससे भारत पर ट्रम्प के इस रिसिप्रोकल अर्थात जवाबी टैरिफ की बहुत ज्यादा मार नहीं पड़ेगी, क्योंकि भारत से अमेरिका को निर्यात होने वाली वस्तुओं में दवाओं का हिस्सा काफी बड़ा है.

शायद यही कारण है कि ट्रम्प के इस फैसले से भारत के बाजार में ज्यादा उथल-पुथल नहीं दिखी है. उल्लेखनीय है कि भारत अमेरिका से आयात होने वाले सामानों पर लगभग 52 प्रतिशत टैरिफ लगाता है. हालांकि भारत के साथ अमेरिका का व्यापार घाटा उसके कुल घाटे का लगभग 3.8 प्रतिशत ही है. उसका सबसे ज्यादा व्यापार घाटा चीन के साथ 24.7 प्रतिशत है. इसके बाद मेक्सिको के साथ 13.6 और वियतनाम के साथ 10 प्रतिशत है.

जर्मनी, आयरलैंड, कनाडा, जापान जैसे देशों के साथ भी अमेरिका को भारत की तुलना में ज्यादा व्यापार घाटा हो रहा है. इसलिए अमेरिका द्वारा लगाए जाने वाले जवाबी टैरिफ से अन्य देशों के मुकाबले भारत को बहुत ज्यादा नुकसान तो नहीं होगा, लेकिन अमेरिका की यह कार्रवाई संकेत देती है कि जिस आत्मनिर्भरता की बात महात्मा गांधी किया करते थे, आज भी वह अप्रासंगिक नहीं हुई है.

गांधीजी तो यहां तक कहते थे कि हर गांव को बुनियादी जरूरतों के मामले में आत्मनिर्भर होना चाहिए. दरअसल वैश्विक मुक्त अर्थव्यवस्था में हमेशा ताकतवर को ही फायदा होता है, इसलिए लगभग सारे देश अपने घरेलू उद्योगों की रक्षा के लिए कम-अधिक मात्रा में टैरिफ लगाते हैं. इसका इतिहास भी बहुत पुराना है. इंग्लैंड के साथ व्यापार असंतुलन के कारण अमेरिकी उद्योगों को नुकसान होने के चलते अमेरिका ने 1789 में इसे पहली बार लागू किया था.

इसके बाद वैश्वीकरण बढ़ने के साथ ही टैरिफ का भी दुनिया में विस्तार होता चला गया. चूंकि अमेरिका में क्षेत्रफल और प्राकृतिक संसाधनों के मुकाबले जनसंख्या कम है (भारत और चीन जैसे देशों की तुलना में), इसलिए वह भी अन्य देशों के बराबर ही अगर टैरिफ लगाए तो जाहिर है कि व्यापार का पलड़ा उसके पक्ष में ही झुकेगा.

उदाहरण के लिए जनसंख्या कम होने से अमेरिका में खेत मीलों लंबे होते हैं, इसलिए अत्याधुनिक संसाधनों के उपयोग के जरिये वहां खेती करना भारत जैसे जनसंख्या सघन देशों की तुलना में बहुत फायदेमंद है. ऐसे में अगर भारत आयातित कृषि उत्पादों पर टैरिफ न लगाए या अपने यहां कृषि क्षेत्र को सब्सिडी न दे तो विदेशी कृषि उत्पाद हमारे किसानों को तबाह कर डालेंगे.

यही बात अन्य क्षेत्रों के बारे में भी कही जा सकती है. लेकिन ट्रम्प अब अपने देश के फायदे के लिए सभी देशों पर बराबरी के स्तर पर टैरिफ लगाने पर अड़े हुए हैं. हालांकि इससे अमेरिका को भी कम नुकसान नहीं होगा. टैरिफ की वजह से आयातित वस्तुएं वहां महंगी हो जाएंगी.

लेकिन हमारे देश लिए इस टैरिफ का सबक यह है कि आत्मनिर्भरता की तरफ हम फिर ज्यादा से ज्यादा ध्यान देना शुरू करें, क्योंकि अब हर देश अपने फायदे के हिसाब से ही अपनी अर्थव्यवस्था की दिशा तय करेगा, जैसा कि ट्रम्प कर रहे हैं.

Web Title: Lessons to move towards self-reliance have to be learnt from tariffs

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