फर्जी दस्तावेज से नौकरियों के मामलों में सभी स्तरों पर हो जांच
By लोकमत समाचार ब्यूरो | Updated: March 4, 2025 06:44 IST2025-03-04T06:44:20+5:302025-03-04T06:44:57+5:30
यह बात समझ में आती है कि अभ्यर्थियों के दस्तावेजों की जांच में कुछ दिन, सप्ताह या महीने लग जाएं, लेकिन कई मामले तो ऐसे भी सामने आए हैं जब कर्मचारी की सेवानिवृत्ति का समय नजदीक आने पर पता चला कि वह फर्जी दस्तावेजों के आधार पर नौकरी करता रहा

फर्जी दस्तावेज से नौकरियों के मामलों में सभी स्तरों पर हो जांच
उत्तरप्रदेश में फर्जी दस्तावेजों के जरिये नौकरी पाने वाले शिक्षकों को बर्खास्त करने का योगी सरकार का फैसला निश्चित रूप से सही दिशा में उठाया गया कदम है, किंतु सवाल यह है कि फर्जी दस्तावेजों वाले शिक्षक सालों-साल तक नौकरी कैसे करते रहे? ऐसा भी नहीं कि प्रदेश में ऐसे शिक्षकों की संख्या दस-बीस या सौ-दो सौ ही हो. वर्ष 2019 में ही एसआईटी ने प्रदेश भर में 4000 से अधिक फर्जी शिक्षकों को चिन्हित किया था.
फर्जी दस्तावेजों की जांच क्या इतना कठिन काम है कि फर्जी शिक्षकों को चिन्हित किए जाने के पांच-छह साल बाद भी उन्हें नौकरी से नहीं निकाला जा सका? अब कहा जा रहा है कि इन शिक्षकों को न सिर्फ बर्खास्त किया जाएगा बल्कि उनसे वेतन भी वसूला जाएगा.
बेशक, जिन शिक्षकों ने धोखाधड़ी से नौकरी हासिल की है, उनसे वसूली होनी चाहिए, लेकिन दस-दस वर्षों से जो शिक्षक पढ़ाते आ रहे हैं, उनके पास अगर इतनी जमा-पूंजी न हुई तो वसूली कैसे की जाएगी? क्या उन्हें जेल भेजा जाएगा? ऐसे में उनके ऊपर आश्रित परिजनों का क्या होगा? शिक्षकों की जांच तो होनी ही चाहिए, उन्हें जिन लोगों ने फर्जी दस्तावेज उपलब्ध कराए और जिनकी लापरवाही या वरदहस्त से ऐसे शिक्षक इतने साल तक नौकरी करते रहे, उनकी भी जांच होनी चाहिए.
फर्जी दस्तावेजों के जरिये नौकरी हासिल करने के मामले सिर्फ शिक्षा विभाग में ही सामने नहीं आ रहे हैं, बल्कि शायद ही ऐसा कोई विभाग हो, जो इस तरह के फर्जीवाड़े से बचा हो. रेलवे में तो कुछ कर्मचारियों की फर्जी दस्तावेजों के आधार पर नियुक्ति को लेकर पिछले साल सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट तक ने आश्चर्य जताते हुए पूछा था कि दस्तावेजों की उचित जांच और सत्यापन के बिना किसी को सरकारी नौकरी पर कैसे नियुक्त किया जा सकता है?
सारी समस्याओं की जड़ शायद यह उचित जांच नहीं होना ही है, वरना किसी को फर्जी दस्तावेजों के सहारे नौकरी मिलने का सवाल ही नहीं उठता. यह बात समझ में आती है कि अभ्यर्थियों के दस्तावेजों की जांच में कुछ दिन, सप्ताह या महीने लग जाएं, लेकिन कई मामले तो ऐसे भी सामने आए हैं जब कर्मचारी की सेवानिवृत्ति का समय नजदीक आने पर पता चला कि वह फर्जी दस्तावेजों के आधार पर नौकरी करता रहा! ऐसे मामलों में जीवन भर कमाई गई संपत्ति की वसूली करना भी आसान नहीं होता और न ही व्यावहारिक.
इसलिए व्यवस्था ऐसी बनाई जानी चाहिए कि नौकरी मिलने के पहले ही या मिलने के एक-दो माह के भीतर ही संबंधित कर्मचारी के दस्तावेजों की समुचित जांच कर ली जाए और उसके बाद भी अगर किसी के फर्जी दस्तावेजों के आधार पर नौकरी करने की बात पता चले तो सिर्फ उस कर्मचारी ही नहीं बल्कि संबंधित पूरे तंत्र की जांच हो कि उस अनियमितता में कौन-कौन शामिल है.