ब्लॉग: मोटे अनाज पर जोर देकर भूख और कुपोषण की चुनौती का देश कर सकता है सामना

By डॉ जयंती लाल भण्डारी | Published: December 16, 2022 08:21 AM2022-12-16T08:21:48+5:302022-12-16T08:21:48+5:30

Growing place of coarse grains in the economy and its advantage | ब्लॉग: मोटे अनाज पर जोर देकर भूख और कुपोषण की चुनौती का देश कर सकता है सामना

ब्लॉग: मोटे अनाज पर जोर देकर भूख और कुपोषण की चुनौती का देश कर सकता है सामना

हाल ही में सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार से यह सुनिश्चित करने को कहा है कि देश में कोई व्यक्ति भूखा नहीं सोए तथा केंद्र सरकार ने कोरोना महामारी के दौरान लोगों तक जिस तरह मुफ्त अनाज पहुंचाया है, वह व्यवस्था जारी रहनी चाहिए. इस परिप्रेक्ष्य में अंतरराष्ट्रीय मोटा अनाज वर्ष 2023 के तहत मोटे अनाज का उत्पादन और वितरण बढ़ाकर देश में भूख और कुपोषण की चुनौती का सामना किया जा सकता है.

गौरतलब है कि 6 दिसंबर को इटली की राजधानी रोम में आयोजित ‘अंतरराष्ट्रीय मोटा अनाज वर्ष-2023’ के उद्घाटन समारोह में भेजे गए अपने संदेश में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने वर्ष 2023 को अंतरराष्ट्रीय मोटा अनाज वर्ष घोषित करने के लिए संयुक्त राष्ट्र की सराहना की और कहा कि आगामी वर्ष में भारत पौष्टिक अनाज की खेती एवं उपभोग को बढ़ावा देने के लिए विशेष अभियान चलाएगा. 

भारत में अंतरराष्ट्रीय मोटा अनाज वर्ष 2023 के दौरान वर्ष भर चलने वाले कार्यक्रमों के अग्रिम उद्घाटन के अवसर पर केंद्रीय कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने कहा कि अब सार्वजनिक वितरण प्रणाली में गेहूं-चावल की बजाय मोटे अनाज दिए जाने से भूख और कुपोषण की चुनौती से मुकाबला किया जा सकेगा.

उल्लेखनीय है कि मोटे अनाजों को पोषण का पावर हाउस कहा जाता है. पोषक अनाजों की श्रेणी में ज्वार, बाजरा, मक्का, रागी, चीना, कोदो, सावां, कुटकी, कुट्टू और चौलाई प्रमुख हैं. विभिन्न दृष्टिकोणों से मोटे अनाज की फसलें किसान हितैषी फसलें हैं. मोटे अनाज के उत्पादन में पानी की कम खपत होती है, कम कार्बन उत्सर्जन होता है. 

यह ऐसी जलवायु अनुकूल फसल है जो सूखे वाली स्थिति में भी उगाई जा सकती है. मोटा अनाज सूक्ष्म पोषक तत्वों, विटामिन और खनिजों का भंडार है. छोटे बच्चों और प्रजनन आयु वर्ग की महिलाओं के पोषण में विशेष लाभप्रद है. शाकाहारी खाद्य पदार्थों की बढ़ती मांग के दौर में मोटा अनाज वैकल्पिक खाद्य प्रणाली प्रदान करता है. 

उत्पादन के लिहाज से भी मोटे अनाज कई खूबियां रखते हैं. इनकी खेती सस्ती और कम चिंता वाली होती है. मोटे अनाजों का भंडारण आसान है और ये लंबे समय तक संग्रहण योग्य बने रहते हैं.

देश में कुछ दशक पहले तक सभी लोगों की थाली का एक प्रमुख भाग मोटे अनाज हुआ करते थे. फिर हरित क्रांति और गेहूं-चावल पर हुए व्यापक शोध के बाद गेहूं-चावल का हर तरफ अधिकतम उपभोग होने लगा. मोटे अनाजों पर ध्यान कम हो गया. यद्यपि तकनीक एवं अन्य सुविधाओं के दम पर पांच दशक पहले की तुलना में प्रति हेक्टेयर मोटे अनाजों की उत्पादकता बढ़ गई है, लेकिन इनका रकबा तेजी से घटा और इनकी पैदावार कम हो गई. इनका उपभोग लगातार कम होता गया. स्थिति यह है कि कभी हमारे खाद्यान्न उत्पादन में करीब 40 प्रतिशत हिस्सेदारी रखने वाले मोटे अनाज की हिस्सेदारी इस समय 10 प्रतिशत से भी कम हो गई है.

इसमें कोई दो मत नहीं है कि पिछले 8 वर्षों में सरकार ने मोटे अनाजों को लोगों की थाली में स्थान दिलाने को लेकर बहुस्तरीय प्रयास किए हैं. भारत के अधिकांश राज्य एक या अधिक मिलेट (मोटा अनाज) फसल प्रजातियों को उगाते हैं. खासतौर से अप्रैल 2018 से सरकार देश में मोटे अनाज का उत्पादन बढ़ाने के लिए मिशन मोड में काम कर रही है. 

सरकार ने मोटे अनाज के न्यूनतम समर्थन मूल्य में राहतकारी वृद्धि की है. राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा मिशन के तहत मिलेट के लिए पोषक अनाज घटक 14 राज्यों के 212 जिलों में क्रियान्वित किया जा रहा है. साथ ही राज्यों के जरिये किसानों को अनेक सहायता दी जाती है. देश में मिलेट मूल्यवर्धित श्रृंखला में 500 से अधिक स्टार्टअप काम कर रहे हैं. 

मोटे अनाजों के वैश्विक उत्पादन में भारत का हिस्सा करीब 40 फीसदी है. मोटे अनाजों के उत्पादन और निर्यात में पूरी दुनिया में भारत पहले क्रम पर है. देश में मोटा अनाज उत्पादन के शीर्ष राज्य राजस्थान, महाराष्ट्र, कर्नाटक, गुजरात और मध्यप्रदेश के द्वारा मोटा अनाज के उत्पादन के विशेष प्रयास किए जा रहे हैं. जरूरी है कि आगामी वर्ष 2023 में देश के विभिन्न प्रदेश अपने-अपने यहां उत्पादित होने वाले मोटे अनाजों के उत्पादन और उनके वितरण पर अधिक ध्यान दें.

हम उम्मीद करें कि भारत 2023 में जी-20 की अध्यक्षता करते हुए अंतरराष्ट्रीय मोटा अनाज वर्ष 2023 के उद्देश्यों व लक्ष्यों के मद्देनजर देश और दुनिया में मोटे अनाजों के लिए जागरुकता पैदा करने में सफल होगा और इससे मोटे अनाज का वैश्विक उत्पादन बढ़ेगा, मोटे अनाज का वैश्विक उपभोग बढ़ेगा. साथ ही कुशल प्रसंस्करण एवं फसल चक्र का बेहतर उपयोग सुनिश्चित होगा.

Web Title: Growing place of coarse grains in the economy and its advantage

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