वैश्विक अर्थव्यवस्था से जुड़ाव का सवाल, डॉ. एस.एस. मंठा का ब्लॉग
By डॉ एसएस मंठा | Updated: November 26, 2020 17:25 IST2020-11-26T17:23:36+5:302020-11-26T17:25:03+5:30
पहली बार 2012 में प्रस्तावित क्षेत्रीय व्यापक आर्थिक भागीदारी (आरसीईपी) में चीन, जापान, दक्षिण कोरिया, न्यूजीलैंड और ऑस्ट्रेलिया के साथ 10 आसियान अर्थव्यवस्थाएं शामिल हैं.

भारत ने कुछ स्थानीय और गंभीर व्यापार चिंताओं के चलते समझौते से बाहर रहने का विकल्प चुना है. (file photo)
पंद्रह एशिया-प्रशांत राष्ट्रों, जिनकी आबादी दुनिया की कुल आबादी का लगभग एक तिहाई है और जिनकी वैश्विक जीडीपी में लगभग 29 प्रतिशत हिस्सेदारी है, ने गत 15 नवंबर को एक व्यापक मुक्त व्यापार समझौते पर हस्ताक्षर किए.
इससे आने वाले वर्षो में कई क्षेत्रों में टैरिफ में कमी आने की उम्मीद है. पहली बार 2012 में प्रस्तावित क्षेत्रीय व्यापक आर्थिक भागीदारी (आरसीईपी) में चीन, जापान, दक्षिण कोरिया, न्यूजीलैंड और ऑस्ट्रेलिया के साथ 10 आसियान अर्थव्यवस्थाएं शामिल हैं. इसका उद्देश्य टैरिफ कम करना, सेवाओं में व्यापार का विस्तार करना और निवेश को बढ़ावा देना है.
भारत ने कुछ स्थानीय और गंभीर व्यापार चिंताओं के चलते समझौते से बाहर रहने का विकल्प चुना है. अमेरिका भी इस समझौते का हिस्सा नहीं है. हालांकि ऐसा करने के दोनों के कारण अलग-अलग हैं. यह समझौता चीन द्वारा समर्थित है, जिसकी क्षेत्र में व्यापक भू-राजनीतिक महत्वाकांक्षा एक चिंता का विषय है.
अब जबकि भारत ने समूह में शामिल नहीं होने का फैसला किया है, उसे आगे क्या करना चाहिए? पूरी तरह से वैश्वीकृत अर्थव्यवस्थाओं के संदर्भ में, क्या हमारे लिए इसका हिस्सा नहीं बनना हमें क्षति पहुंचाएगा? क्या समूह के भीतर छोटी अर्थव्यवस्था वाले देशों में स्थानीय नौकरियां और असंगठित अर्थव्यवस्था प्रभावित होगी? चीन की जीडीपी गरीब अर्थव्यवस्थाओं की कीमत पर बढ़ेगी?
अगर हम देश को एक महत्वपूर्ण अर्थव्यवस्था के रूप में उभरते देखना चाहते हैं तो विनिर्माण में जान फूंकनी चाहिए. वित्त वर्ष 2020 में, विनिर्माण का हिस्सा चीन की जीडीपी में 33.9 प्रतिशत है, जबकि भारत के जीडीपी में इसकी हिस्सेदारी केवल 17.4 प्रतिशत ही है. हम वैश्विक स्तर पर दूसरे सबसे कम लागत वाले विनिर्माण गंतव्य होने का शायद ही लाभ उठा पाते हैं.
‘आत्मनिर्भरता’ एक महान नारा है, लेकिन इसे उपभोग के नजरिये से भी देखा जाना चाहिए, क्योंकि इसमें वृद्धि से जीडीपी भी उतनी ही मात्र में बढ़ती है और अन्य चीजें भी. जब आंतरिक उत्पादन बढ़ता है तो आंतरिक खपत या निर्यात में वृद्धि भी बढ़नी चाहिए नहीं तो वास्तविक जीडीपी में और गिरावट आ सकती है. यही वह बिंदु है, जहां आरसीईपी में शामिल होने पर विचार की जरूरत है. वर्तमान वैश्विक संदर्भ में, क्या हम गुणवत्ता और मूल्य पर प्रतिस्पर्धा किए बिना उत्पादों और सेवाओं के साथ अलग-थलग रह सकते हैं?