Blog: बेटा पीरियड्स शुरू हो गए हैं किसी को बताना नहीं
By ऐश्वर्य अवस्थी | Updated: January 16, 2018 16:00 IST2018-01-16T15:55:15+5:302018-01-16T16:00:53+5:30
अक्षय कुमार की फिल्म पैडमैन 25 जनवरी को पर्दे पर रिलीज हो रही है। क्या एक फिल्म पीरियड्स और सैनेट्रीपैड की उपयोगिता पर लोगों की सोच को बदलेंगी?

Blog: बेटा पीरियड्स शुरू हो गए हैं किसी को बताना नहीं
बेटा पीरियड्स शुरूहो गए हैं किसी को बताना नहीं खास कर घर के मर्दों को।ये बात हर लड़की को तब उसकी मां बोलती है जब उसको पहली बार पीरियड्स होते हैं और वह इन सब चीजों से अंजान इस बात की गांठ बांध लेती है कि चाहें अब तो दुनिया इधर की उधर हो जाए हमें ये बात किसी को नहीं बतानी है। भारत की 90 फीसदी महिलाएं जीवन के अंतिम पड़ाव तक इस बात को छुपाना ही सही समझती हैं, इसका कारण मां की शिक्षा के साथ-साथ मर्दों की सोच भी आड़े आती है। महिलाओं की प्राकृतिक चीज को समस्या तक कहा जाता है।
तो जनाब इन शर्म के ठेकेदारों को कोई ये बताए अगर महिलाओं के अंदर ये प्राकृतिक अवस्था नहीं होगी तो ये दुनिया रूक जाएगी। मैं या हजारों महिलाएं आज भी खुलकर उन मुद्दों पर बात करते हैं जिनके बारे में हर कोई जानता है पर कभी उन बातों पर चर्चा क्यों नहीं करते जो हमारी जरूर हैं। खैर ये बात आज दिमाग में इसलिए कौतूहल कर रही है क्योंकि अक्षय कुमार की फिल्म पैडमैन 25 जनवरी को पर्दे पर रिलीज हो रही है। क्या एक फिल्म पीरियड्स और सैनेट्रीपैड की उपयोगिता पर लोगों की सोच को बदलेंगी? हमारे देश में 85 फीसदी महिलाएं सैनेट्रीपैड का प्रयोग नहीं करती हैं, इसका एक कारण ये भी है कि वो किसी दुकानदार के पास जाकर उसको खरीदने में हिचक महसूस करती हैं क्योंकि उनको तो बताया गया है ना कि मर्दों से ये बात नहीं कहना है।
इसका एक कारण ये भी है कि भाई और पिता तो दूर की बात है लड़के दोस्त तक लड़कियों के पीरियड्स पर नहीं बोल पाते वो इस पर बोलने में झिझक महसूस करते हैं। कभी-कभी लगता है कि अगर कोई लड़की पारियड्स के दौरान बेहोश हो जाती है तो ये जनाब ये भी ना बता पाएंगे कि लड़की को हुआ क्या है। पता नहीं सैनेट्रीपैड की उपयोगिता को लेकर बनाई गई अक्षय की ये फिल्म कितना प्रभाव डालती है। जहां पीरियड पर महिलाएं बोल तक नहीं पाती वो इसको कितना समझेंगी और कितने फीसदी लड़कियां अपने भाई और पिता के साथ फिल्म देख पाएंगी।
हम मैट्रो सिटी में रह रहे हैं तो बेहद आसान है किसी के सामने भी बेबाक तरीके से अपनी बात रखना लेकिन ये देश गांवों में बसता है जहां महिलाओं के पीरियड्स को आज भी छूत माना जाता है। तो क्या वहां के मर्द अपनी बहन-मां से इस पर बात कर पाएंगे। पता नहीं एक साथ कितने सवाल हैं जिसके जवाब हम सबके पास ही हैं, मुझे नहीं पता कि कितनी फीसदी पढे़ लिखे लड़के लड़कियो की इस अवस्था को समझते हैं, उसको बेझिझक स्वीकार करते हैं। बस उम्मीद है अक्षय की फिल्म जरूर लोगों की सोच बदलने का काम करेगी।