टीवी स्क्रीन पर वापसी से होगा राजनीतिक पुनरुत्थान?, ईरानी का पुनर्जागरण, यह वापसी नहीं, पुन: प्रवेश

By लोकमत न्यूज़ डेस्क | Updated: July 18, 2025 05:25 IST2025-07-18T05:25:32+5:302025-07-18T05:25:32+5:30

तुलसी- ईरानी को छोटे पर्दे पर फिर से लाए जाने को नॉस्टैल्जिया नहीं कह सकते, यह विमर्श का द्वंद्व है.

smriti irani Kyunki Saas Bhi Kabhi Bahu Thi reboot return TV screen lead political revival? blog Prabhu Chawla | टीवी स्क्रीन पर वापसी से होगा राजनीतिक पुनरुत्थान?, ईरानी का पुनर्जागरण, यह वापसी नहीं, पुन: प्रवेश

file photo

Highlightsकभी तुलसी भारतीय टेलीविजन पर संस्कारी संप्रभु थीं. ईरानी का राजनीतिक उत्थान किसी की कृपा का नतीजा नहीं था.ईरानी को दूसरी टेलीविजन शख्सियतों की तरह खत्म हुआ मान लिया था.

प्रभु चावला

इस देश के सार्वजनिक जीवन में स्मृति ईरानी की तरह कठिन लड़ाई लड़ने, चमक भरी लपट के साथ जल उठने या तेजी से गिरने के दूसरे उदाहरण कम ही होंगे. ‘क्योंकि सास भी कभी बहू थी’ की आगामी 29 जुलाई से दोबारा शुरुआत दरअसल ईरानी का पुनर्जागरण है. यह वापसी नहीं, पुन: प्रवेश है. यह ईरानी की सुचिंतित सांस्कृतिक विजय है. राजनीति में वापसी अक्सर प्रतीकात्मकता, निहितार्थ और प्रतिध्वनि में दिखाई पड़ती है. इस कारण तुलसी- ईरानी को छोटे पर्दे पर फिर से लाए जाने को नॉस्टैल्जिया नहीं कह सकते, यह विमर्श का द्वंद्व है.

कभी तुलसी भारतीय टेलीविजन पर संस्कारी संप्रभु थीं. अब दोबारा तुलसी की भूमिका में ईरानी शक्ति, उपस्थिति और व्यक्तित्व के समायोजन को चतुराई के साथ पेश करेंगी. वर्ष 1976 में दिल्ली के एक सामान्य परिवार में पैदा हुईं ईरानी का राजनीतिक उत्थान किसी की कृपा का नतीजा नहीं था. उन्होंने शून्य से शुरुआत की.

मैक्डोनाल्ड्स में नौकरी करने से लेकर तुलसी वीरानी की भूमिका के जरिये प्राइम टाइम में राज करने तक उन्होंने मध्यवर्गीय जीवन बोध को उसकी संपूर्ण प्रामाणिकता के साथ पेश किया. पर महत्वाकांक्षा भूखे पशु की तरह होती है. शुरू में भाजपा पर नजर रखने वालों ने ईरानी को दूसरी टेलीविजन शख्सियतों की तरह खत्म हुआ मान लिया था.

पर ईरानी ने अपनी वक्तृत्व कला को अपनी ताकत बना लिया. पहला चुनाव हार जाने के बाद भी उन्होंने हिम्मत नहीं हारी और 2019 के लोकसभा चुनाव में वह कर दिखाया, जिसे बहुतेरे लोग असंभव समझते थे- उन्होंने कांग्रेस के वंशवादी किले अमेठी में राहुल गांधी को हरा दिया. मतपेटी के एक निर्मम प्रहार से उन्हें ‘जायंट किलर’ का तमगा मिल गया.

इस उपलब्धि पर तालियों की गूंज भारतीय राजनीति में दूर तक सुनी गई. वर्ष 2014 से 2024 तक उन्होंने केंद्र में शिक्षा, वस्त्र, अल्पसंख्यक मामले और बाल विकास जैसे महत्वपूर्ण मंत्रालयों की जिम्मेदारी संभाली. पर राजनीति जिस उदारता से पुरस्कृत करती है, उससे अधिक कठोरता से दंड देती है.

वर्ष 2024 में गांधी परिवार के एक निष्ठावान कार्यकर्ता किशोरीलाल शर्मा ने अमेठी में स्मृति ईरानी को 1.67 लाख वोटों से हरा दिया. नरेंद्र मोदी के तीसरे कार्यकाल में हालांकि कुछ पराजितों को समायोजित किया गया, पर ईरानी को किनारे कर दिया गया. पर ईरानी हार नहीं मानतीं, नया रास्ता बनाती हैं.

ईरानी यह भी जानती हैं कि भारत जैसे देश में, जहां राजनीति रंगमंच और टेलीविजन धर्मशास्त्र है, छोटा पर्दा ही असली जगह है. तुलसी के किरदार की वापसी की उनकी घोषणा रिरियाहट नहीं, सिंहनाद थी. ईरानी ने इसे ‘साइड प्रोजेक्ट’ कहा, लेकिन यह 2029 के लोकसभा चुनाव के पहले आ रही है. क्या यह महज संयोग है?

या सुनियोजित सांस्कृतिक पहल? डिजाइनर गौरांग शाह के साथ मिलकर, खुद को फिर से भारतीय वेशभूषा में पेश कर और तुलसी के किरदार को दोबारा रचते हुए उसे जलवायु, लैंगिक न्याय और सामाजिक हिस्सेदारी की योद्धा के रूप में पेश कर पूर्व केंद्रीय मंत्री फैशन को फंक्शन, नाटक को कूटनीति और टेलीविजन को रूपांतरण से जोड़ रही हैं.

इसका असर होता है. ईरानी पांच भाषाएं जानती हैं. पांच तरह के पेशों- संस्कृतियों से उनका जुड़ाव है- बॉलीवुड, नौकरशाही, भारतीयता, कारोबार और बड़ी तकनीकी कंपनियां. जब भाजपा के कई कद्दावर नेता रिटायर या अप्रासंगिक होने के कगार पर हैं, तब ईरानी रोमांचक, भाषणपटु और अप्रत्याशित बनी हुई हैं.

आखिर भाजपा ने, जिसे करिश्माई महिला नेत्रियों की अत्यंत आवश्यकता है, अपनी चमकदार नेत्री को बैठाकर क्यों रखा है? क्या ईरानी को थोड़े समय के लिए छुट्टी दी गई है? या तुलसी 2.0 ईरानी को वापस लोगों के लिविंग रूम में ले आएगी? क्या ईरानी का सांस्कृतिक पुनरुत्थान उनका राजनीतिक पुनरुत्थान भी साबित होगा?

जब 2029 तक अनेक वरिष्ठ भाजपा नेता ढलान पर चले जाएंगे, तब भाजपा की विचारधारा का प्रतिनिधित्व ईरानी से बेहतर भला कौन कर पाएगा, जो महिला नेतृत्व को परिभाषित करती हैं, जो राहुल गांधी से मुकाबला कर सकती हैं. जिस पार्टी में गंभीर महिला नेत्रियों का अभाव है, वहां ईरानी सुषमा स्वराज की प्रभावशाली उत्तराधिकारी साबित हो सकती हैं.

Web Title: smriti irani Kyunki Saas Bhi Kabhi Bahu Thi reboot return TV screen lead political revival? blog Prabhu Chawla

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