आर के स्टूडियो: एक कलाकार की स्मृति का बिकना
By लोकमत समाचार हिंदी ब्यूरो | Updated: August 28, 2018 12:16 IST2018-08-28T12:16:31+5:302018-08-28T12:16:31+5:30
हिंदी सिनेमा की अनेक क्लासिक व कल्ट फिल्मों का गवाह व आदर्श रहे आरके स्टूडियो का बिकना कलाप्रेमियों के मन को नहीं भा रहा है।

आर के स्टूडियो: एक कलाकार की स्मृति का बिकना
प्रमोद भार्गव
हिंदी सिनेमा के महान शोमैन राज कपूर की सुनहरी स्मृतियों से जुड़ा आर के स्टूडियो बिकने जा रहा है। हिंदी सिनेमा की अनेक क्लासिक व कल्ट फिल्मों का गवाह व आदर्श रहे आर। के। स्टूडियो का बिकना कलाप्रेमियों के मन को नहीं भा रहा है।
लेकिन इसके बिकने की खबर कोई अफवाह न होकर एक हकीकत है। दरअसल राजकपूर के मंझले पुत्र और मशहूर अभिनेता ऋषि कपूर ने स्वयं यह जानकारी देते हुए कहा है कि ‘‘हमारे पिता का सपना अब परिवार के लिए सफेद हाथी बन गया है। इससे हमारी यादें जरूर जुड़ी हैं, लेकिन परिवार में झगड़े का कारण बने, इससे पहले ही हमने इसे बेचने का फैसला ले लिया है। ’’
यह स्टूडियो मुंबई के चेंबूर इलाके में दो एकड़ में फैला हुआ है। सितंबर 2017 में आग लग जाने के कारण स्टूडियो को भारी क्षति पहुंची थी। नतीजतन बॉलीवुड की यादों से जुड़ी तमाम बहुमूल्य धरोहरें राख हो गईं।
कई भवन और उनमें रखे उपकरण, पोशाकें और आभूषण भी नष्ट हो गए। राजकपूर ने मेरा नाम जोकर में जिस मुखौटे को पहनकर अद्भुत अभिनय किया था, वह भी जल गया। इस अग्निकांड के बाद से ही स्टूडियो में शूटिंग बंद है।
गोया, आमदनी का जरिया खत्म हो जाने के कारण राजकपूर की संतानें इसे बेचने को विवश हुई हैं। यह धरोहर न बिके इस नाते दो ही विकल्प शेष हैं, एक तो महाराष्ट्र सरकार इस संपत्ति का अधिग्रहण कर इसे फिल्मों का संग्रहालय बनाए, दूसरे कपूर परिवार के लोग ही अपने निर्णय पर पुनर्विचार करते हुए उन विश्वनाथ डी।
कराड से प्रेरणा लें, जिन्होंने अपने बूते पुणो में राजकपूर की स्मृति में शानदार संग्रहालय बनाया हुआ है। क्योंकि राजकपूर ने फिल्मों के जरिए भारतीय कला और संस्कृति के साथ सामाजिक मूल्यों की स्थापना में भी अहम योगदान दिया है।
हिंदी सिनेमा के पहले शो-मैन राजकपूर ने 70 साल पहले 1948 में आर। के। स्टूडियो की नींव रखी थी। आर के स्टूडियो सिने जगत की एक ऐसी पहचान है, जो बदलते सांस्कृतिक मूल्य, रीति-रिवाज, पहनावा और फिल्म निर्माण की तकनीक से जुड़े कैमरे और अन्य उपकरणों का ऐतिहासिक गवाह रहा है। लिहाजा फिल्मों का यह श्रेष्ठ संग्रहालय बन सकता है। केंद्र सरकार भी इसके निर्माण में आर्थिक मदद करे तो यह पहल सोने में सुहागा सिद्ध होगी।