फिल्म निर्माण की चुनौतियों के बारे में फिल्मकार अनुराग कश्यप कहते हैं, 'यह लोकसभा चुनाव लड़ने जैसा होता है।' जिस किसी ने जिंदगी में कोई दो मिनट का वीडियो प्रोडक्शन किया होगा वह इसकी चुनौतियों को समझता है। ऐसे में एक अदद फिल्म बनाकर तैयार करना फिर उसे लोगों के मनमाफिक काटते-छांटते रहने से बेहतर यह ना हो कि फिल्मकार स्क्रिप्ट तय करते ही सार्वजनिक कर लें। सबकी शिकायतों, सुझावों पर समझौता कर के ही आगे बढ़े। बहुत बड़े पैमाने पर सुधार हो जाएगा। बहुत सारा पैसा, मेहनत, लोगों की संवेदनाएं आहत होने से बच जाएंगी।
ये बातें मैं संजय लीला भंसाली की फिल्म पद्मावती की रिलीज तय होने के सिलसिले में कह रहा हूं। अब देखिए ना, भारत के पहले प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू ने एक किताब लिखी, 'डिस्कवरी ऑफ इंडिया'। इतिहास को प्रमाणित करने के लिए इस किताब का उल्लेख किया जाता है। इसमें उन्होंने राजा पद्मावत और आलाउद्दीन खिलजी के बारे में पूरा अध्याय लिखा है।
उसी को आधार बनाकर निर्माता-निर्देशक श्याम बेनेगल ने दूरदर्शन के धारावाहिक 'भारत एक खोज' में दो एपिसोड बनाए। तब एक युवक जो फिल्म डायरेक्टर बनने का ख्वाब देखता था उनका असिस्टेंट डायरेक्टर था। साल 1988-1989 में प्रसारित हुए इन धारावाहिकों को जिसने भी देखा होगा वह जानते होंगे कि आलाउद्दीन खिलजी को दिल्ली में शराब पर बैन करने, टैक्स जमा कराने के लिए कड़ा नियम बनाने, बाजार मूल्य को नियंत्रण में लाने वाले शासक के तौर दिखाया गया था।
उस युवा डायरेक्टर के मन में यह घर कर गया। उसने ठानी कि एक दिन वह इस विषय को बड़े पर्दे पर उतारेगा। उसे ऐसा करने में 28 साल लग गए। 28 साल अगर आप किसी काम करना चाह रहे हों और जब करें तो आपको थप्पड़ मारा जाए। आपके काम लिए बनाए सेट को उखाड़ के फेंक दिया जाए। अच्छा ना होता कि भारत सरकार नियम बना देती कि इस 28 साल तक किसी फिल्म के बारे में सोचना गलत है। सोचने से पहले परमिशन ले लें।
अब संजय लीला भंसाली तर्क दे सकते हैं कि श्याम बेनेगल को थप्पड़ नहीं मारा गया। ओमपुरी ने भी आलाउद्दीन खिलजी का किरदार निभाया। उनके सिर काटने पर इनाम घोषित नहीं किया गया। दो फिल्में रानी पद्मनी पर भी बनी तब उनके रिलीज पर किसी ने जान दे देने की धमकी नहीं दी। वह संविधान के 19 (a) का भी हवाला दे सकते हैं।
उनको कौन बताए फिल्म रिलीज के लिए हमारे यहां संसदीय समिति बनाई जाती है। बोर्ड एडवाइजरी पैनल बनाता है। रिव्यू कमेटी बनती है। इनमें राजे-रजवाड़े शामिल किए जाते हैं। पद्मावती बनानी है तो पहले उदयपुर पूर्व राजपरिवार के सदस्य अरविंद सिंह मेवाड़, जयपुर यूनिवर्सिटी के डॉ चंद्रमणी सिंह और प्रोफेसर केके सिंह से परमिशन लेनी पड़ती है। जब तक इनके सुझाव, शिकायतें नहीं मानेंगे फिल्म रिलीज नहीं करनी दी जाएगी।
करणी सेना और गुजरात चुनाव दोनों देश हैं तो उन्हें उस प्रमुख समय पर फिल्म रिलीज के बारे में तो भूल ही जाना चाहिए। बेहतर होगा कि वह करणी सेना से बात कर के उनक उत्थान पर एक फिल्म प्लान करते। देश को विकास के रास्ते पर आगे बढ़ाने में मदद करते। रानी पद्मावती के वंशज विश्वराज सिंह से पूछ लेते। विश्वराज ने सवाल उठाया कि जब फिल्म के 5 मिनट के सीन को ठीक नहीं किया जा सका तो दो घंटे की फिल्म को सेंसर कैसे ठीक करेगा? सेंसर बोर्ड को भी सोचना चाहिए नियम ही बना लें कि-
आप अपनी स्क्रिप्ट लिखने के बाद इसे सबको पढ़ा दें और उनकी आपत्तियों के हिसाब से उसमे फेरबदल करते जाएं और अंत में जो बचे उस पर फिल्म बना सकें तो बना लें।