इस गाने के बाद रफी साहब कई दिनों तक गाना नहीं गा पाए थे
By खबरीलाल जनार्दन | Published: December 24, 2017 05:24 PM2017-12-24T17:24:30+5:302017-12-24T20:41:45+5:30
एक शख्स को फांसी हुई। उसने आखिरी इच्छा इस गाने को सुनने की जताई। अधिकारियों ने ऐसा किया। पहले उसे रफी साहब का ये गाना सुनाया गया फिर फांसी चढ़ाई गई।
23 दिसंबर की रात गूगल ने एक डूडल बनाया। डूडल में मोहम्मद रफी को केंद्र में रखकर एक आकर्षक कैरिकेचर बना है। कैरिकेचर पर क्लिक करने से गूगल सर्च पेजेज खुलते हैं। पता चलता है कि Mohammed Rafi सर्च के 5,37,000 रिजल्ट हमारे सामने हैं। ऊपर दिख रही कुछ न्यूज वेबसाइट बताती हैं कि 24 दिसंबर को उनका 93वीं जयंती है। हालांकि इससे पहले मैंने कभी यह जानने के लिए गूगल सर्च नहीं किया कि रफी साहब की जयंती कब है। हां, हजारों बार उनके गाने तलाशे होंगे।
आज भी जब कभी किसी ऐसी जगह फंसता हूं जहां से गाए बगैर नहीं निकला जा सकता तो गुनगुनाने के बाद अहसास होता है, "ये भी तो रफी साहब का ही था।" मैंने अपने टेप रिकॉर्डर में रील वाले कैसेट सुनते कई-कई दिन बिताए हैं। मेरे पास जो कैसेट थे उसके 90 फीसदी गाने रफी साहब के थे। शायद 9वीं की बात होगी, जब रफी ने टेप रिकॉर्डर के स्पीकर से आवाज लगाई, "तू ना जागी तो मैं आंसुओं में सारे जग को बहा के रहूंगा, तू अगर उस जहां से ना आई इस जहां को जला के रहूंगा", और मेरे हाथ-पैर में अजीब सी सरसराहट के साथ सारे रोंगटे खड़े हो गए। मुझे बड़ा मजा आया, ये क्या हो रहा है? मैंने दोबारा वैसा ही महसूस करने के लिए फिर से गाना प्ले किया। फिर वैसा ही हुआ। महुआ फिल्म मैंने नहीं देखी थी। इस गाने का वीडियो मैं अभी भी जानबूझकर नहीं देखता। मुझे डर है कि मैंने जो महसूस किया था उस रोज गाना सुनकर दृश्य देखने के बाद उसका प्रभाव कम न हो जाए।
मेरा पालन-पोषण यूपी के जिस गांव में हुआ है, उसमें अपने ही गांव में शादी करने की अनुमति नहीं है। लेकिन सारे लड़के-लड़कियों को चोरी-चुपके प्यार करने की अनुमति है। जाहिर, एक भी जोड़े की आपस में शादी नहीं हो पाती। जब मैं इलाहाबाद पढ़ने आया तो अपने गांव के एक भइया के साथ रहता था। एक शाम वो बड़े उदास हुए, काफी समय बाद पता चला कि गांव में जिस लड़की को चाहते हैं आज उसकी शादी है। मैंने उन्हें मनाने के कई पैतरे अपनाए, गलती से मुंह से निकल गया, "तुझको पुकारे मेरा प्यार, हो..."। फिर आनंद भवन सटी चर्चलेन वाली उस बिल्डिंग (इसमें आजकल राजीव गांधी कंप्यूटर इंस्टीट्यूट चला करता है) की छत पर पूरी रात मुझे ये गाना गाते रहना पड़ा।
मेरे किस्से तो बड़े आम हैं। चौंकाने वाला किस्सा रफी साहब संग ताल मिलाने वाले संगीतकार नौशाद साहब एक इंटरव्यू में सुनाते हैं। उन्होंने किसी अखबार में यह खबर पढ़ी थी। एक शख्स को फांसी की सजा हुई। फांसी के पहले उससे आखिरी इच्छा पूछी गई। शुरुआत में उसने कुछ नहीं बताया। अधिकारियों के बड़े जोर देने पर उसने कहा, 'हां एक तमन्ना है, मुझे फांसी से पहले वो गीत सुना दिया जाए- ओ दुनिया के रखवाले, सुन दर्द भरे मेरे नाले, जीवन अपना वापस ले ले जीवन देने वाले।' खास बात ये थी कि अधिकारियों ने ऐसा ही किया। टेप रिकॉर्डर फांसीघर में मंगाया गया। उस शख्स को फांसी चढ़ाने से पहले रफी साहब का ये गाना सुनाया गया। इस गाने की कहानी यही खत्म नहीं होती।
नौशाद साहब बताते हैं, 'इस गाने का रफी साहब ने पंद्रह-बीस दिन रिहर्सल किया था।' नौशाद साहब की नजर रफी की आवाज की 'रेंज' पर थी। वह रफी की आवाज की बुलंदी देखना चाहते थे। रफी कब पीछे हटने वाले थे। नतीजतन रिकॉर्डिंग के बाद रफी साहब काफी दिनों तक गाना नहीं गा सके। नौशाद साहब खुद ही बातते हैं कि इस गाने के बाद रफी साहब की आवाज बैठ गई थी। कुछ लोगों कहना था कि गाना रिकॉर्ड करते वक्त रफी साहब के गले से खून आ गया था।
हालांकि ऊपर के सारे उदाहरण टूटे दिल नगमों पर सिमटे हुए हैं। शायद ऐसा ही कुछ सोच कर पिछले साल करण जौहर ने अपनी फिल्म 'ऐ दिल है मुश्किल' में एक डायलॉग रखा, 'मोहम्मद रफी? वो गाते कम रोते ज्यादा थे ना?' डायलॉग ने रफी साहब की एक बड़ी फैन फॉलोइंग को ठेस पहुंचाया। मोहम्मद अजीज ने करण जौहर को जवाब दिया-
शम्मी कपूर भी इसी मिजाज के थे। फिल्मफेयर की रिपोर्ट के मुताबिक एक बार मोहम्मद रफी के कुछ चाहने वाले रफी साहब को याद करते हुए उनके दर्द भरे नगमे सुन रहे थे। तभी पीछे से उन्हें किसी के तेज-तेज चिल्लाने की आवाज सुनाई देने लगी। आवाज आ रही थी कि बंद करो ये। जिस आदमी ने दुनिया को मोहब्बत करना सिखाया उसके जाने पर ये गाने तो मत बजाओ। शम्मी के बारे में यह मशहूर है कि वह रफी की आवाज को अपनी आवाज समझते थे।
बहरहाल, मोहम्मद अजीज, शम्मी साहब दोनों सही हैं। और रफी साहब के दर्द के नगमें भी उतने ही सच हैं।
मोहम्मद अजीज ने एक गाना गाया था। फिल्म क्रोध में अमिताभ पर वह फिल्माया गया। गाना ऐसा था कि गाने शुरू करने से पहले अमिताभ को एक लंबा व्याख्यान देना पड़ा। व्याख्यान ये था, "मुझको मेरे बाद जमाना ढूंढ़ेगा, रफी साहब ने कहा है और ये भी कहा है कि कारवां गुजर गया गुबार देखते रहे। रफी साहब चले गए और अपने पीछे छोड़ गए यादों का गुबार। उनको चाहने वाला हर इंसान उनकी यादों के उस गुबार में उन्हें ढूंढ़ रहा है। और जब तक दुनिया रहेगी तब तक उन्हें ढूंढता ही रहेगा। क्योंकि ऐसा फनकार बड़ी मुश्किल से मिलता है। जो अपने फन से, अपनी कला से हर दिल में घर बना लिया। और जब वो घर छोड़कर जाता है तो अपनी जगह और यादों का एक दर्द एक जख्म छोड़ जाता है। और जब उस दर्द, उस जख्म में टीस उठती है तो दिल से बस यही आवाज उठती है।" इसके बाद जब आवाज आती है, 'ना फनकार तुझसा तेरे बाद आया, मोहम्मद रफी तू बहुत याद आया'। मैंने आज भी सुना तो रोंगटे खड़े हुए। आइए एक शाम फिर रफी के नाम करें-