जगजीत सिंह की आज 77वीं जयंती है। मतलब उनको सुनते हुए मुझे 27 वर्ष हो गए। लेकिन ये 27 साल पुरानी मोहब्बत आज भी नई जैसी ही है। कुछ ऐसा जादू है उनकी आवाज़ का बस वो गाते रहते हैं और हम सुनते रहते हैं।
कहते हैं शराब जितनी पुरानी हो जाती है उसका नशा उतना ही मज़ेदार हो जाता है। उनकी पहली ग़ज़ल जो याद है वो थी ये दौलत भी ले लो ये शोहरत भी लो… जब ये ग़ज़ल पहली बार सुनी थी तब इसका मतलब इतना समझ नहीं आया था। लेकिन उनकी आवाज़ पसंद आई थी।
धीरे धीरे उनके बाकी एल्बम भी सुने और एक रिश्ता से बनता गया। फिर आया उनका एल्बम Someone Somewhere। ये उनके बेटे विवेक के दुखद निधन के बाद रिलीज़ हुआ पहला एल्बम था। वो गायक जो दुखी दिलों की ज़बान था आज वो खुद बहुत बड़े दुख से गुज़र रहा था। एल्बम के ग़ज़लें सुनकर सिर्फ एक तसल्ली थी कि आप भी उनके दुख के सहभागी हैं।
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अगर मोहब्बत में अभी भी कोई शक़ था तो वो मिर्ज़ा ग़ालिब सीरियल में जगजीत सिंह की ग़ज़लों ने सारी ग़लतफहमी दूर कर दी। दरअसल मिर्ज़ा ग़ालिब से मिलवाने का श्रेय जगजीत सिंह को ही जाता है।
उन दिनों ग़ज़ल सुनने का चलन जैसा ही था और आपके आसपास भी सभी ग़ज़ल सुनते थे। इसका फायदा ये हुआ कि कैसेट का आदान प्रदान होता था और जगजीत सिंह के कई ऐसे एल्बम भी सुनने को मिले जो मेरे पास नहीं था।
जगजीत सिंह विदेशों में भी बहुत लोकप्रिय थे। उनकी लाइव रिकॉर्डिंग वाले एल्बम भी कमाल के होते हैं। लंदन के उनके शो की ग़ज़ल "हुज़ूर आपका भी एहतराम करता चलूँ" सुनने का अलग ही मज़ा है।
वैसे ही मैं नशे में हूँ। जब सुनने वाले साथ में मैं नशे में हूँ गाना शुरू करते हैं तो एक अलग ही समां बंध जाता है।
शायद मिर्ज़ा ग़ालिब का ये शेर जगजीत सिंह और मेरी मोहब्बत के लिए ही लिखा गया था
उनके देखे से जो आ जाती है मुंह पर रौनकवो समझते हैं बीमार का हाल अच्छा है।