जलवायु परिवर्तन के दुष्परिणाम झेल रहे बांग्लादेश के गांव

By भाषा | Updated: November 3, 2021 16:24 IST2021-11-03T16:24:48+5:302021-11-03T16:24:48+5:30

Villages in Bangladesh facing the effects of climate change | जलवायु परिवर्तन के दुष्परिणाम झेल रहे बांग्लादेश के गांव

जलवायु परिवर्तन के दुष्परिणाम झेल रहे बांग्लादेश के गांव

श्यामनगर(बांग्लादेश), तीन नवंबर (एपी) दक्षिण-पश्चिम बांग्लादेश के बोन्नोतोला गांव में कभी दो हजार से भी अधिक लोग रहते थे और ज्यादातर लोग खेती करते थे। लेकिन उफनते समुद्र में बढ़ते जलस्तर के साथ यहां की मिट्टी में नमक जहर की तरह घुलता गया। बीते दो साल में यहां आए चक्रवातों ने मिट्टी के उन तटबंधों को नष्ट कर दिया जो समुद्र की ऊंची ऊंची लहरों से गांव की रक्षा करते थे।

अब इस गांव में महज 480 लोग रह गए हैं।

यह ग्लोबल वार्मिंग का परिणाम है जिसके कारण अधिक चक्रवात आने लगे और तटीय एवं ज्वारीय बाढ़, नमक के पानी को क्षेत्र के और भीतर तक ले आती हैं और यह सब बांग्लादेश को, वहां के लाखों लोगों की आजीविका को तबाह कर रहे हैं।

गैर सरकारी संगठन सेंटर फॉर पार्टीसिपेटरी रिसर्च डेवलपमेंट में मुख्य कार्यकारी मोहम्मद शम्सुद्दोहा कहते हैं, ‘‘यह बांग्लादेश जैसे देश के लिए गंभीर चिंता का विषय है।’’ उन्होंने एक अनुमान के हवाले से बताया कि देश के तटीय क्षेत्रों से संभवत: करीब तीन करोड़ लोग विस्थापित हुए हैं।

संयुक्त राष्ट्र के जलवायु सम्मेलन के लिए स्कॉटलैंड के ग्लासगो में दुनिया भर के नेता एकत्रित हुए हैं। ऐसे में बांग्लादेश जैसे राष्ट्र ग्लोबल वार्मिंग से निबटने और वित्तीय मदद के लिए दबाव बना रहे हैं।

करीब एक दशक पहले एक समझौता हुआ था जिसके मुताबिक जलवायु परिवर्तन से निबटने और स्वच्छ ऊर्जा को अपनाने के लिए अमीर देशों द्वारा गरीब देशों को प्रतिवर्ष 100 अरब डॉलर दिए जाने थे। यह वादा अभी तक पूरा नहीं हुआ है। बल्कि 2016 तक जो 80 अरब डॉलर दिए गए हैं वह भी जमीनी स्तर पर अधिक बदलाव लाने के लिहाज से बहुत कम है।

बंगाल रिवर डेल्टा के एक अन्य गांव गाबुरा में 43 वर्षीय नज्मा खातून कहती हैं, ‘‘हमारे हर ओर पानी है लेकिन पोखरों और कुओं में पीने लायक पानी नहीं है।’’ यह भूमि भी कभी उपजाऊ हुआ करती थी, फलों के पेड़ होते थे और लोग अपने घरों के आंगन में सब्जियां उगाया करते थे। पानी के लिए जलाशयों, नदियों और कुओं पर निर्भर रहते थे।

वह कहती हैं, ‘‘अब यह संभव नहीं। देखिए पोखर में ताजा पानी नहीं है।’’

बार-बार आने वाले चक्रवात, ज्वार भाटा में उठने वाली ऊंची ऊंची लहरों के कारण वर्ष 1973 में 8,33,000 हेक्टेयर भूमि समुद्री पानी से प्रभावित हो गई। बीते 35 वर्ष में मिट्टी में खारापन 26 फीसदी बढ़ गया।

सोमवार को प्रधानमंत्री शेख हसीना ने अन्य विश्व नेताओं के समक्ष प्रमुख प्रदूषक देशों द्वारा ग्लोबल वार्मिंग से होने वाली तबाही के लिए मुआवजा देने का मुद्दा उठाया था।

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Web Title: Villages in Bangladesh facing the effects of climate change

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