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महिलाओं में बांझपन की समस्या से जुड़े जहरीले रसायन

By भाषा | Updated: June 3, 2021 17:19 IST

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जैस्मीन हसन, करोलिंस्का इंस्टिट्यूट, पॉलिना दामदिमोपोलू, करोलिंस्का इंस्टिट्यूट और रिचेल ड्यूक ब्योर्वंग, करोलिंस्का इंस्टिट्यूट

सोलनावेगेन (स्वीडन), तीन जून (द कन्वरसेशन) दुनिया भर में जन्म दर घट रही है।

सभी यूरोपीय देशों में यह जनसंख्या प्रतिस्थापन स्तर, जो जनसंख्या को स्थिर रखने के लिए प्रति महिला द्वारा आवश्यक रूप से पैदा किए जाने वाले बच्चों की संख्या को दर्शाता है, से भी नीचे गिर रही है। हालांकि इस कमी का कारण कई वयस्कों पहला बच्चा होने के बाद दूसरे बच्चे की पैदाइश को जानबूझकर स्थगित करना हो सकता है, या इसलिए भी क्योंकि कुछ लोग बच्चे पैदा न करने का विकल्प चुनते हैं - अध्ययनों की बढ़ती संख्या से पता चलता है कि ये जन्म दर के घटने के कारणों को पूरी तरह से स्पष्ट नहीं करते हैं।

कुछ शोध यह भी बताते हैं कि घटती प्रजनन क्षमता इस गिरावट में योगदान देने वाला एक प्रमुख कारक है।

घटती प्रजनन क्षमता से जुड़ा एक कारक हमारे पर्यावरण में औद्योगिक रसायनों की उपस्थिति है। पुरुष प्रजनन क्षमता पर इन रसायनों के प्रभाव के बारे में बहुत कुछ जाना जाता है, लेकिन बहुत कम शोध में यह देखा गया है कि ये महिलाओं को कैसे प्रभावित करते हैं। हमारे हालिया अध्ययन में यही करने की कोशिश की गई है।

हमने पाया कि सामान्य रासायनिक प्रदूषकों के संपर्क में आने से प्रजनन योग्य आयु की महिलाओं के अंडाशय में अंडे की संख्या कम हो जाती है। हालांकि इन रसायनों पर प्रतिबंध लगा दिया गया है, लेकिन इन्हें कभी घरेलू उत्पादों जैसे आग बुझाने में काम आने वाले उपकरण और मच्छर स्प्रे में इस्तेमाल किया जाता था, और ये अभी भी पर्यावरण में और वसायुक्त मछली जैसे खाद्य पदार्थों में मौजूद हैं।

कम अंडे

हमने 60 महिलाओं के खून में 31 सामान्य औद्योगिक रसायनों, जैसे एचसीबी (एक कृषि फंगसनाशी) और डीडीटी (एक कीटनाशक) के स्तर को मापा। उनकी प्रजनन क्षमता को मापने के लिए, हमने उनके अंडाशय में अपरिपक्व अंडों की संख्या को माइक्रोस्कोप का उपयोग करके डिम्बग्रंथि ऊतक के नमूनों में गिनकर मापा। चूंकि अंडाशय शरीर के अंदर स्थित होते हैं और उन तक पहुंचने के लिए सर्जरी की आवश्यकता होती है, इसलिए हमने उन गर्भवती महिलाओं को चुना, जिनका प्रसव आपरेशन से हुआ था। इससे अतिरिक्त सर्जरी के बिना ऊतक के नमूनों तक पहुंचना संभव हो गया।

हमने पाया कि जिन महिलाओं के रक्त के नमूने में रसायनों के उच्च स्तर थे, उनके अंडाशय में भी कम अपरिपक्व अंडे बचे थे। हमने कम अंडों की संख्या और कुछ रसायनों के बीच महत्वपूर्ण संबंध पाया, जिनमें पीसीबी (कूलेंट में प्रयुक्त), डीडीई (डीडीटी का उप-उत्पाद) और पीबीडीई (आग बुझाने में काम आने वाला रसायन) शामिल हैं। चूंकि महिला प्रजनन क्षमता उम्र पर निर्भर है, इसलिए हमने अपनी गणना में महिलाओं को उनकी उम्र के आधार पर समायोजित करना सुनिश्चित किया। इससे हमें पता चला कि इन रसायनों के संपर्क में आने से सभी उम्र की महिलाओं के अंडे कम हो गए।

हमने यह भी पाया कि जिन महिलाओं के रक्त में रासायनिक स्तर अधिक होता है उन्हें गर्भवती होने के लिए अधिक समय तक प्रयास करना पड़ता है। जिन महिलाओं के रक्त में रसायनों का उच्चतम स्तर पाया गया, उन्हें एक वर्ष से अधिक समय लगा।

पुरुषों के विपरीत, महिलाएं अपने अंडाशय में केवल अपरिपक्व अंडों के एक निश्चित सेट के साथ पैदा होती हैं, और जन्म के बाद उनके शरीर में नए अंडे नहीं बनते हैं। एक महिला का ‘‘रिजर्व’’ (उसके अंडाशय में अंडों की संख्या) स्वाभाविक रूप से माहवारी और सामान्य रोम के समाप्त होने के साथ-साथ कम होता जाता है। जब यह एक विशिष्ट स्तर से कम हो जाता है, तो प्राकृतिक प्रजनन क्षमता समाप्त हो जाती है और रजोनिवृत्ति शुरू हो जाती है। हमारे निष्कर्षों का अर्थ है कि जहरीले रसायन डिम्बग्रंथि के रोम के गायब होने की गति को तेज कर सकते हैं, जिससे प्रजनन क्षमता कम हो सकती है और समय से पहले रजोनिवृत्ति हो सकती है।

रासायनिक मिश्रण

हम अपने भोजन के माध्यम से औद्योगिक रसायनों के संपर्क में आते हैं, बहुत बार उन उत्पादों के माध्यम से जिन्हें हम अपनी त्वचा पर लगाते हैं, और गर्भ में विकसित होने के दौरान माताओं के माध्यम से यह बच्चों तक पहुंचते हैं।

औद्योगिक रसायनों की संख्या, साथ ही पर्यावरण में उनकी प्रचुरता, 1940 के दशक से लगातार बढ़ी है - जिसका पारिस्थितिकी तंत्र, वन्य जीवन और यहां तक ​​कि मानव प्रजनन क्षमता पर विनाशकारी प्रभाव पड़ा। बहुत से रसायनों को सुरक्षा के लिए बहुत कम परीक्षण के साथ बाजार में पेश किया गया। इसने एक ऐसी स्थिति पैदा कर दी जहां मनुष्य और पर्यावरण औद्योगिक रसायनों के व्यापक मिश्रण के संपर्क में हैं।

अभी कुछ दशकों के उपभोक्ता उपयोग के बाद ही कई रसायनों को प्रजनन के लिए हानिकारक पाया गया है। इनमें पीएफएएस (टेफ्लॉन, स्कॉच गार्ड और फायरफाइटिंग फोम में प्रयुक्त रसायन), फाथेलेट्स (प्लास्टिक पैकेजिंग, चिकित्सा उपकरण और साबुन और शैंपू में प्रयुक्त), साथ ही कीटनाशक और पीसीबी जैसे अन्य औद्योगिक रसायन शामिल हैं।

इनके नकारात्मक प्रभावों में पुरुषों में शुक्राणुओं की संख्या में कमी और महिलाओं के गर्भवती होने की क्षमता में कमी शामिल है। हमारा अध्ययन अपनी तरह का पहला है, जो रासायनिक जोखिम और एक महिला के अंडों की संख्या के बीच की कड़ी की जांच करता है।

हमने जिन रसायनों का अध्ययन किया, वे सभी ‘‘सतत’’ थे, जिसका अर्थ है कि वे समय के साथ शरीर में बनते हैं। आश्चर्यजनक रूप से, जिन रसायनों को हमने अंडे की कम संख्या से संबद्ध पाया, उन्हें दशकों पहले एक अंतरराष्ट्रीय संधि द्वारा प्रतिबंधित कर दिया गया था। फिर भी अपने हठी अस्तित्व के कारण, वे अभी भी पारिस्थितिकी तंत्र और हमारे भोजन को दूषित करते हैं।

दिलचस्प बात यह है कि पीसीबी (हमारे द्वारा अध्ययन किए गए रसायनों में से एक) को पुरुषों में शुक्राणुओं की संख्या में कमी और बांझपन से भी जोड़ा गया है। पुरुष और महिला प्रजनन क्षमता में एक साथ कमी होने से जोड़ों के लिए संतान उत्पत्ति मुश्किल हो सकती है।

भविष्य में, शोधकर्ताओं को जांच करनी चाहिए कि क्या सभी महिलाओं की प्रजनन क्षमता- गर्भवती महिलाओं के विपरीत - इन रसायनों से समान रूप से प्रभावित होती है। लेकिन ये निष्कर्ष हमें सुरक्षा आकलन के दौरान प्रजनन क्षमता को ध्यान में रखते हुए रासायनिक सुरक्षा पर पुनर्विचार करने के लिए प्रोत्साहित कर सकते हैं।

कुछ खाद्य पदार्थों (जैसे समुद्री भोजन) और कुछ उत्पादों (जैसे कि जिन्हें हम अपनी त्वचा और बालों पर लगाते हैं) से बचना भी हमारे संतान उत्पन्न करने की संभावनाओं पर रसायनों के नकारात्मक प्रभावों को कम करने में मदद कर सकता है।

Disclaimer: लोकमत हिन्दी ने इस ख़बर को संपादित नहीं किया है। यह ख़बर पीटीआई-भाषा की फीड से प्रकाशित की गयी है।

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