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श्रीलंका: दवाओं के बिना अस्पताल में भर्ती मरीज बढ़ रहे हैं मौत की ओर, सरकार ने दुनिया से की मदद की अपील

By आशीष कुमार पाण्डेय | Updated: May 23, 2022 22:49 IST

श्रीलंका सरकार के पास विदेशी मुद्रा नहीं है, इसलिए वो देश में जरूरी दवाईयों तक को आयात नहीं कर पा रही है। वहीं डॉक्‍टरों का कहना है कि अगर हालात जल्‍द नहीं सुधरे तो अस्पताल में भर्ती मरीजों की मौत होने लगेगी और हम चाह कर भी कुछ नहीं कर पाएंगे।

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ठळक मुद्देहालात इतने बदतर हो गये हैं कि डॉक्‍टर्स जरूरी दवाओं के बिना मरीजों की सर्जरी नहीं कर पा रहे हैंश्रीलंका अपनी 80 फीसदी से अधिक चिकित्सा जरूरतों को आयात करता हैलेकिन विदेशी मुद्रा भंडार खत्म होने के कारण श्रीलंका आवश्यक दवाएं नहीं मंगा पा रहा है

कोलंबो: श्रीलंका के खराब आर्थिक हालात का प्रभाव अब उन गंभीर मरीजों की सेहत पर भी पड़ने लगा है, जो कैंसर, हार्ट और अन्य गंभीर बीमारियों के इलाज के लिए अस्‍पताल में भर्ती हैं।

हालात इतने बदतर हो गये हैं कि डॉक्‍टर्स चाहकर भी मरीजों की जरूरी सर्जरी को अंजाम नहीं दे पा रहे हैं। पड़ोसी मुल्क की बदहाली का आंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि रसाई गैस की दुकानों के सामने सिलेंडर लिये हुए लोगों की लंबी कतारें लगी हैं।

किसानों के पास खेते में डालने के लिए खाद नहीं है, पेट्रोल की टंकियां सूख चुकी हैं और हजारों-लाखों की संख्या में लोग सड़कों पर गोटबाया राजपक्षे सरकार के खिलाफ विरोध-प्रदर्शन कर रहे हैं।

श्रीलंका सरकार को सबसे बड़ी समस्या आ रही है जरूरी दवाइयों की सप्लाई में। आर्थिक संकट के कारण श्रीलंका में ऐसे हालात हो गये हैं कि गंभीर बीमारी के कारण अस्पताल में एडमिट मरीजों को जरूरी दवाइयां तक नहीं मिल पा रही है।

सरकार के पास विदेशी मुद्रा नहीं है, इसलिए वो देश में जरूरी दवाईयों तक को आयात नहीं कर पा रही है। वहीं डॉक्‍टरों का कहना है कि अगर सरकार की ओर से हालात जल्‍द नहीं सुधरे तो, दवाओं की किल्‍लत के कारण अस्पताल में भर्ती लोगों की मौत होने लगेगी और हम चाह कर भी कुछ नहीं कर पाएंगे।

श्रीलंका के एक अस्‍पताल में काम करने वाले डॉक्‍टर ने बताया, "अस्पताल के हालात बेहद खराब हैं। जरूरी दवाइयों की कमी के कारण हम गंभीर मरीजों का इलाज भी नहीं कर पा रहे हैं। हम मजबूरी में गंभीर रोगियों की इलाज प्रक्रिया को अन्य मौजूद दवाईयों से आगे बढ़ा रहे हैं लेकिन हम ऐसा ज्यादा दिनों तक नहीं कर सकते हैं क्योंकि बीमारी का इलाज न होने से रोगियों का शरीर कमजोर होता जा रहा है।"

जानकारी के मुताबिक श्रीलंका अपनी 80 फीसदी से अधिक चिकित्सा जरूरतों को आयात करता है। आर्थिक संकट के कारण और विदेशी मुद्रा भंडार खत्म होने के कारण आवश्यक दवाएं मरीजों तक नहीं पहुंच पा रही हैं।

कोलंबो के बाहरी इलाके में 950 बिस्तरों वाले अपेक्षा कैंसर अस्पताल में मरीजों, उनके प्रियजन और डॉक्टर इस समस्या के आगे खुद को असहाय महसूस कर रहे हैं, क्‍योंकि दवाओं के अभाव में वो मरीजों को अन्य दवाओं के सहारे इलाज कर रहे हैं, लेकिन उसका कोई फायदा नहीं है।

इस मामले में डॉक्टर रोशन अमरतुंगा ने कहा, "हालात कैंसर रोगियों के लिए सबसे बुरे हैं। हम हर सुबह किसी न किसी मरीज की सर्जरी को प्लान करते हैं लेकिन दवाओं के न होने से वो सर्जरी टाल दी जाती है। अगर स्थितियां जल्‍द नहीं सुधरी तो कई मरीजों को वर्चुअल मौत की सजा भुगतनी होगी और ये मरीजों के साथ हम सभी के पीड़ादायक होगी।"

मालूम हो कि साल 1948 में अपनी आजादी के बाद से श्रीलंका सबसे भयावह आर्थिक संकट से गुजर रहा है, जो कोविड महामारी के कारण, पर्यटन उद्योग के खत्म होने का कारण, बढ़ती महंगाई और सरकार की लोकलुभावन कर कटौती के कारण पैदा हुई है।

चिकित्सा आपूर्ति की खरीद पर काम करने वाले एक सरकारी अधिकारी ने बताया कि कैंसर, हार्ट, गुर्दों के डायलिसिस सहित करीब 180 जरूरी चिकित्सा में काम आने वाली दवाइयां इस समय देश में मौजूद नहीं हैं।

इस मामले में स्‍वास्‍थ्‍य मंत्रालय से जुड़े अधिकारी समन रथनायके ने समाचार एजेंसी रायटर को बताया कि भारत, जापान समेत कई देश श्रीलंका की मदद कर रहे हैं लेकिन वहां से भी जरूरी वस्तुओं के आने में लगभग तीन-चार महीने का समय लग सकता है।

इस बीच श्रीलंका सरकार ने इस आर्थिक संकट से उबरने के लिए देश और विदेश के निजी दानदाताओं से मदद की गुहार लगाई है। वहीं श्रीलंका के विदेश मंत्री जीएल पेइरिसो ने कहा कि भारत ने रविवार को अन्य जरूरी सहायता के साथ 25 टन चिकित्सा आपूर्ति भी भेजी है। जिसके लिए श्रीलंका भारत का तहे दिल से आभारी है।

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