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कोविड-जीरो को छोड़ देना चाहिए? सबके टीकाकरण तक, हम वायरस के साथ नहीं रह सकते

By भाषा | Updated: August 20, 2021 15:59 IST

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हसन वैली, एसोसिएट प्रोफेसर, ला ट्रोब यूनिवर्सिटी मेलबर्न, 20 अगस्त (द कन्वरसेशन) हम वर्तमान में आस्ट्रेलिया में महामारी के सबसे चुनौतीपूर्ण समय में से एक के बीच में हैं। और हम सब संघर्ष कर रहे हैं।हालात की वजह से निराशा अपने चरम पर है और महामारी के प्रति हमारी प्रतिक्रिया के सभी पहलुओं पर सवाल उठाए जा रहे हैं।जिन क्षेत्रों पर बहुत अधिक ध्यान दिया गया है, उनमें से एक ‘‘कोविड-शून्य’’ दृष्टिकोण है जिसने महामारी के प्रति ऑस्ट्रेलिया की प्रतिक्रिया को परिभाषित किया है। खासतौर पर इस रणनीति की स्थिरता को लेकर सवाल उठाए गए हैं।इस कमेंट्री के कुछ हिस्से को समझना थोड़ा कठिन है, और इसमें इन बातों को मिला दिया गया है कि हम कहाँ थे, हम अभी कहाँ हैं और हम कहाँ जा रहे हैं।कुछ लोगों को लगता है कि हम संचरण पर नियंत्रण खोए बिना और संक्रमणों की बढ़ती संख्या, आईसीयू में प्रवेश और मौतों के बीच वायरस के साथ अधिक स्वतंत्र रूप से रह सकते हैं। लेकिन हमारे पास तब तक यह सही विकल्प नहीं है जब तक कि हममें से पर्याप्त का टीकाकरण न हो जाए।मत भूलिए कि कोविड-शून्य को जबरदस्त सफलता मिली हैजहां तक ​​हम गए हैं, उसके संदर्भ में, यह स्पष्ट है कि कोविड-शून्य दृष्टिकोण एक जबरदस्त सफलता रही है।इस रणनीति को अपनाने से, हम दुनिया के अन्य हिस्सों में होने वाली बीमारी के बोझ और मौतों से बचने में सक्षम हुए हैं। देश के कई हिस्से अपेक्षाकृत सामान्य जीवन का लंबे समय तक आनंद ले पा रहे हैं, आज के समय में यह एक ऐसी विलासिता है जो कई जगहों पर नहीं है।यहां तक ​​कि हमारी अर्थव्‍यवस्‍था भी उससे कहीं बेहतर स्थिति में है, जिसकी अधिकांश लोगों ने आशा की थी और निश्‍चित रूप से यह दुनिया भर के कई अन्‍य देशों की तुलना में बेहतर कर रही है।यह सब इसलिए हासिल हुआ क्योंकि हमने ट्रांसमिशन को इतनी प्रभावी ढंग से कुचल दिया।यदि एक वैकल्पिक रणनीति अपनाई गई होती, तो परिणाम ऐसे नहीं होते और जैसे होते उसकी आप कल्पना कर सकते हैं। यहां क्या हुआ होता उस दुखद और कठोर वास्तविकता को देखने के लिए आपको केवल ब्रिटेन और अमेरिका की तरफ देखना होगा।हालांकि यह स्पष्ट रूप से हम सभी के लिए कठिन समय रहा है, लेकिन यह और भी बुरा हो सकता था।कोविड-शून्य दृष्टिकोण पर सवाल उठाने वालों में से कई को लगता है कि अधिक स्वतंत्र रूप से जीना एक विकल्प हो सकता है, जिसमें वायरस अनियंत्रित रूप से न फैले और व्यापक बीमारी और मौतों का कारण नहीं बने। लेकिन कोविड के फैलने के तरीके के आधार पर हमारी समझ यह कहती है कि यह सच नहीं है, खासकर डेल्टा वेरिएंट के साथ। यह वायरस इतना संक्रामक है कि समुदाय में इसके प्रसार पर नियंत्रण संभव नहीं है।वैज्ञानिकों को लगता है कि यह इंग्लैंड में उत्पन्न होने वाले अल्फा संस्करण, जो मूल स्ट्रेन से अधिक संक्रामक था, की तुलना में लगभग 50% अधिक संक्रामक है। यह कॉन्टैक्ट ट्रेसिंग को अधिक मुश्किल बना देता है।इस समय एनएसडब्ल्यू में जो हो रहा है, उससे बेहतर कोई सबूत नहीं है कि वायरस के संचरण को नियंत्रित करना कितना मुश्किल है।हम अभी भी डांवाडोल हालत में हैंपूरी तरह से टीकाकृत लोगों की संख्या संचरण को कम करने के लिए आवश्यक स्तरों के करीब भी नहीं है। 16 वर्ष से अधिक उम्र के केवल 28% लोगों को ही पूरी तरह से टीका लगाया गया है।हाल ही में डोहर्टी इंस्टीट्यूट के मॉडल से पता चलता है कि पात्र आबादी के 70-80% के ऊपर पूरी तरह से टीकाकरण हो जाने के बाद लॉकडाउन की संभावना बहुत कम हो जाती है।फिलहाल, हमारे आसपास अभी भी एक बहुत ही संक्रामक वायरस है जो ज्यादातर गैर-प्रतिरक्षा आबादी में फैल रहा है।ऐसे में यह कहना ज्यादा ठीक होगा कि भरी गर्मी में हम एक सूखी झाड़ी पर बैठे हैं और एक चिंगारी सब कुछ खत्म कर सकती है।जब तक यह हालत रहती है, वायरस के साथ रहना कोई विकल्प नहीं है।उच्च टीकाकरण कवरेज प्राप्त करना गेम चेंजर होगा। जब टीकाकरण का स्तर बढ़ता है, तो वर्तमान में हम जिस अस्थिर स्थिति में हैं, वह संतुलन की ओर अधिक बढ़ जाती है। फिर, जनसंख्या में प्रतिरक्षा बीमारी के संक्रमण के चक्र को तोड़ सकती है।जब हमें बड़े पैमाने पर टीका कवरेज मिलता है और अधिकांश कमजोर आबादी को प्रतिरक्षित कर दिया जाता है, तो हम अधिक विश्वास के साथ कह सकते हैं कि हम किसी भी सामुदायिक संचरण को रोकने में समर्थ हैं और ऐसा होने पर हम वायरस के साथ जीने पर विचार कर सकते हैं। सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि यह वह समय है जब हम सभी को कोविड का इलाज एक महामारी की तरह करने की बजाय इसे एन्फलूएंजा जैसा एक अन्य स्थानिक संक्रमण मानकर इसका इलाज करने का मन बनाना होगा।जैसे ही बंदिशें हटेंगी, कोविड के संपर्क में आने का अधिक जोखिम होगा, अभी भी कुछ जगह संक्रमण फैल सकता है। लेकिन इस बिंदु पर, अधिक लक्षित सार्वजनिक स्वास्थ्य प्रतिक्रियाएं प्रकोपों ​​​​को थामने में सक्षम होंगी और लॉकडाउन के क्रूर दौर में लौटने की नौबत नहीं आएंगी।इसलिए, जबकि प्रतिबंधों में ढील देने और वायरस के साथ रहने की बात समय से पहले है, हमें आश्वस्त होना चाहिए कि इसके लिए समय बहुत दूर नहीं है।लोगों तक टीके पहुंचाना प्राथमिकता है और जितनी तेजी से हम ऐसा करते हैं, उतनी ही तेजी से हम इस देश में महामारी के अंतिम चरण की ओर बढ़ते हैं। अगर हम आगे बढ़ते हैं और 70% तक टीकाकरण कवरेज प्राप्त करते हैं, तो इसका खात्मा नजर के सामने है।

Disclaimer: लोकमत हिन्दी ने इस ख़बर को संपादित नहीं किया है। यह ख़बर पीटीआई-भाषा की फीड से प्रकाशित की गयी है।

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