सार्स-कोव-2 की उत्पत्ति : चीन की लैब से रिसाव के विचार पर फिर चर्चा क्यों
By भाषा | Published: June 7, 2021 03:43 PM2021-06-07T15:43:23+5:302021-06-07T15:43:23+5:30
बेनोइट बारब्यू एसोसिएट प्रोफेसर, यूनीवर्सिटी डु क्यूबेक मॉन्ट्रियल (UQAM)
मॉन्ट्रियल (कनाडा), सात जून (द कन्वरसेशन) कोविड-19 महामारी की शुरुआत के बाद से, सार्स-कोव-2 की उत्पत्ति को लेकर तरह तरह के कयास लगाए गए हैं।
अब तक, इनमें से कोई भी विचार किसी ठोस नतीजे तक नहीं पहुंच पाया है। पहले कहा गया था कि वुहान सीफूड बाजार की वजह से यह वायरस तेजी से फैला। हालांकि अब इस बात में ज्यादा दम नहीं लगता। एक साल के गहन शोध के बाद भी अब तक किसी जानवर में इस वायरस की पहचान नहीं हो पाई है।
इस वायरस के पशु से मानव में फैलने की व्याख्या देने वाली परिकल्पना को अब तक सबसे मजबूत माना जा रहा है: कोरोनावायरस एक तीसरे माध्यम के जरिए चमगादड़ से मनुष्यों में पहुंचा। ऐसा भी नहीं है कि यह पहली बार हुआ है।
मर्स-कोव (मिडिल ईस्ट रेस्पिरेटरी सिंड्रोम) के मामले में, ऊंटों को इसके प्रसार के संभावित माध्यम के तौर पर देखा जाता है। इसी तरह सार्स-कोव-2 के मामले में वुहान बाजार में अवैध रूप से बेचे जाने वाले पैंगोलिन, माध्यम हो सकते हैं, हालांकि इस विचार को सही ठहराने के लिए अधिक ठोस सबूत की आवश्यकता है।
मैं मॉन्ट्रियल में यूनीवर्सिटी डु क्यूबेक में जैविक विज्ञान विभाग में प्रोफेसर हूं, विषाणु विज्ञान में एक विशेषज्ञ, विशेष रूप से मानव रेट्रोवायरस में, और मानव कोरोनावायरस में।
सार्स-कोव-2 के गलती से एक अधिकतम सुरक्षा वाली जैव प्रयोगशाला, जिसका जैव सुरक्षा स्तर- 4 है, वुहान इंस्टीट्यूट ऑफ वायरोलॉजी (डब्ल्यूआईवाई) से लीक होने की बात महामारी की शुरूआत से ही कही जा रही है।
हाल के हफ्तों में यह संभावना फिर से सामने आई, जिसने नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ एलर्जी एंड इंफेक्शियस डिजीज (एनआईएआईडी) के निदेशक डॉ. एंथनी फौसी को शर्मिंदा कर दिया, कुछ समाचार पत्रों का दावा है कि अमेरिका इस शोध प्रयोगशाला को वित्त पोषित कर रहा था और यह दावा भी किया गया कि वहां लाभ के लिए होने वाले अध्ययन से संबंधित परियोजनाओं का वित्त पोषण किया जाता है। वॉल स्ट्रीट जर्नल में प्रकाशित एक विचार का दावा है कि इस एनआईएआईडी ने डब्ल्यूआईवाई में चल रहे इनमें से कुछ प्रयोगों का समर्थन किया होगा।
यद्यपि लाभ के प्रयोगों के फायदे हो सकते हैं, लेकिन जोखिम भी हैं।
तो, गेन-ऑफ-फंक्शन या लाभ के कार्य संबंधी यह अध्ययन क्या हैं? चिकित्सा की दृष्टि से, यह वायरस पर शोध से जुड़ा है। गेन-ऑफ़-फंक्शन अनुसंधान का लक्ष्य नए गुणों वाला एक वायरस बनाना है जो इसे मनुष्यों के लिए अधिक रोगजनक या अधिक संक्रमणीय बनाता है।
परंपरागत रूप से, इस प्रकार का परिवर्तन पशु या मानव कोशिकाओं में वायरस के बढ़ने पर केंद्रित था। हाल ही में, वायरल जीन में कुछ सटीक और वांछित परिवर्तन करने के लिए पशु मॉडल और आणविक जीव विज्ञान तकनीकों में महत्वपूर्ण प्रगति हुई है। इस प्रक्रिया से नए वायरस तेजी से उत्पन्न हो सकते हैं (वायरस के प्राकृतिक विकास के विपरीत, जिसमें कई साल लगते हैं) जो मनुष्यों के लिए बेहतर रूप से अनुकूलित होते हैं और मनुष्यों के बीच संचरित होने की उनकी क्षमता को बदल सकते हैं।
इस प्रकार के शोध का औचित्य यह है कि इन नए विषाणुओं को अलग करके, शोधकर्ता जीनोम में उन विशिष्ट परिवर्तनों की पहचान करने में सक्षम होंगे जो नई विशेषताओं के लिए जिम्मेदार हैं। यह ज्ञान वैज्ञानिकों के लिए नई महामारियों के आगमन की बेहतर भविष्यवाणी करना संभव बना सकता है। यह वैज्ञानिकों को नए संक्रामक एजेंटों के अनुकूल टीके और उपचार विकसित करने में मदद कर सकता है।
हालांकि, पिछले एक दशक में गेन-ऑफ-फंक्शन अनुसंधान के सिद्धांत को व्यापक रूप से चुनौती दी गई है।
इस संबंध में बार बार दिया जाने वाला एक उदाहरण कई वैज्ञानिकों को चिंतित करता है, वह है रॉन फौचियर और योशीहिरो कावाओका का अत्यधिक खतरनाक एवियन एच5एन1 इन्फ्लूएंजा वायरस पर शोध। एक ऐसी तकनीक का उपयोग करते हुए जिसने वायरस को एक माध्यम से दूसरे में कई बार प्रसारित किया, अंतत: ये शोधकर्ता एक एच5एन1 इन्फ्लूएंजा वायरस बनाने में सक्षम थे जिसे हवा के द्वारा प्रजातियों में प्रेषित किया जा सकता था।
अध्ययन पर व्यापक रूप से बहस हुई और अंततः शोध को रोक दिया गया। अमेरिका सरकार ने विज्ञान पत्रिकाओं से इस अध्ययन के पूर्ण परिणामों को प्रकाशित नहीं करने का भी आग्रह किया, यह तर्क देते हुए कि सूचना का उपयोग जैव आतंकवादियों द्वारा किया जा सकता है। शोध 2013 में फिर से शुरू किया गया था।
गेन-ऑफ-फंक्शन रिसर्च में महामारी की क्षमता वाले वायरस के पशु-से-मानव संचरण को रोकने में मदद करने की क्षमता है। हालांकि, इस प्रकार के शोध को अत्यधिक सुरक्षित प्रयोगशाला में किया जाना चाहिए, जिसे बीएसएल -4 के रूप में जाना जाता है।
इन प्रयोगशालाओं को कर्मचारियों और शोधकर्ताओं को संक्रमित होने से बचाने और अन्य किसी भी तरह के रिसाव को रोकने के लिए बनाया गया है। हालांकि, अमेरिकी दूतावास के अधिकारियों के दस्तावेजों से पता चला है कि डब्ल्यूआईवी में बीएसएल-4 प्रयोगशाला में जैव सुरक्षा मानक पर्याप्त रूप से कठोर नहीं थे। इसके अलावा, कई शोधकर्ताओं ने सुझाव दिया था कि चमगादड़ कोरोनावायरसों पर संस्थान का गेन-ऑफ-फंक्शन अध्ययन जोखिम भरा था और अगर वह निकल गया तो मनुष्यों के लिए हानिकारक हो सकता है।
यही कारण है कि वुहान लैब से लीक के कारण सार्स-कोव-2 की उत्पत्ति की परिकल्पना को अब गंभीरता से लिया जा रहा है।
हालांकि, वुहान लैब का दौरा करने वाली डब्ल्यूएचओ द्वारा गठित समिति ने निष्कर्ष निकाला कि सार्स-कोव-2 वायरस की मानव-निर्मित उत्पत्ति का समर्थन करने के लिए कोई सबूत नहीं दिखाई दिया, कई प्रमुख वैज्ञानिकों ने सवाल किया कि क्या उस यात्रा के दौरान चीन पूरी तरह से पारदर्शी था। साइंस में मई में प्रकाशित एक खुले पत्र में, इन वैज्ञानिकों ने इस संबंध में और जांच का आह्वान किया है।
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