दक्षिण अफ्रीका के रंगभेद संघर्ष के प्रतीक और नोबेल पुरस्कार विजेता डेसमंड टूटू का निधन

By भाषा | Updated: December 26, 2021 17:51 IST2021-12-26T17:51:30+5:302021-12-26T17:51:30+5:30

Nobel laureate Desmond Tutu, a symbol of South Africa's apartheid struggle, dies | दक्षिण अफ्रीका के रंगभेद संघर्ष के प्रतीक और नोबेल पुरस्कार विजेता डेसमंड टूटू का निधन

दक्षिण अफ्रीका के रंगभेद संघर्ष के प्रतीक और नोबेल पुरस्कार विजेता डेसमंड टूटू का निधन

(फाकिर हसन)

जोहानिसबर्ग, 26 दिसंबर देश में नस्ली भेदभाव से लड़ने के लिए नोबेल शांति पुरस्कार प्राप्त करनेवाले दक्षिण अफ्रीका के रंगभेद संघर्ष के प्रतीक आर्चबिशप डेसमंड टूटू का निधन हो गया। वह 90 वर्ष के थे।

राष्ट्रपति सिरिल रामफोसा ने घोषणा की कि टूटू का रविवार तड़के केपटाउन में निधन हो गया। वह नोबेल शांति पुरस्कार प्राप्त करनेवाले अंतिम जीवित दक्षिण अफ्रीकी थे।

पूर्व में तपेदिक को मात दे चुके टूटू ने 1997 में प्रोस्टेट कैंसर की सर्जरी कराई थी। हाल के वर्षों में उन्हें अलग-अलग बीमारियों के चलते कई बार अस्पताल में भर्ती कराया गया।

रामफोसा ने टूटू के परिवार और मित्रों के प्रति संवेदना व्यक्त करते हुए कहा, "हमें एक मुक्त दक्षिण अफ्रीका देने वाले आर्चबिशप एमेरिटस डेसमंड टूटू का निधन उत्कृष्ट दक्षिण अफ्रीकियों की पीढ़ी को हमारे देश की विदाई में शोक का एक और अध्याय है।"

उन्होंने कहा, “डेसमंड टूटू बड़े देशभक्त थे; सिद्धांत और व्यावहारिकता के नेता जिन्होंने बाइबिल की अंतर्दृष्टि को अर्थ दिया कि कर्म के बिना धर्म मर जाता है।”

रामफोसा ने कहा, "असाधारण बुद्धि, ईमानदारी और रंगभेद की ताकतों के खिलाफ एक अजेय व्यक्ति, वह उन लोगों के प्रति दयालु थे, जिन्होंने रंगभेद के तहत उत्पीड़न, अन्याय और हिंसा का सामना किया।"

राष्ट्रपति ने सत्य और सुलह आयोग में टूटू की भूमिका के लिए भी उनकी सराहना की, जहां रंगभेद के शिकार लोगों द्वारा सुरक्षाबलों के अमानवीय व्यवहार की बातें साझा किए जाने के दौरान वह भावुक हो जाते थे।

वर्ष 1995 में तत्कालीन राष्ट्रपति नेल्सन मंडेला ने टूटू को आयोग का नेतृत्व करने के लिए नियुक्त किया था।

रामाफोसा ने अपने बयान के अंत में कहा, “हम प्रार्थना करते हैं कि आर्चबिशप टूटू की आत्मा को शांति मिले लेकिन उनकी आत्मा हमारे देश के भविष्य के लिए प्रहरी बनकर खड़ी रहे।”

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी टूटू के निधन पर शोक व्यक्त किया और श्रद्धांजलि देते हुए कहा कि वह विश्व स्तर पर अनगिनत लोगों के लिए एक मार्गदर्शक थे और मानवीय गरिमा एवं समानता के लिए प्रति भूमिका को हमेशा याद रखा जाएगा।

मोदी ने कहा, “आर्चबिशप एमेरिटस डेसमंड टूटू दुनिया भर में अनगिनत लोगों के लिए एक मार्गदर्शक थे। मानवीय गरिमा एवं समानता के प्रति उनकी भूमिका को हमेशा याद रखा जाएगा। मैं उनके निधन से बहुत दुखी हूं और उनके सभी प्रशंसकों के प्रति हार्दिक संवेदना व्यक्त करता हूं। भगवान उनकी आत्मा को शांति दें।”

टूटू को 1984 में नोबेल शांति पुरस्कार मिला था। उस समय वह जोहानिसबर्ग के बिशप थे।

उन्हें "अफ्रीका के शांति बिशप" के रूप में संदर्भित करते हुए, नॉर्वेजियन नोबेल संस्थान ने कहा कि टूटू को पुरस्कार "दक्षिण अफ्रीका में रंगभेद की समस्या को हल करने के लिए अहिंसक अभियान में एक एकीकृत नेता के रूप में उनकी भूमिका के लिए" दिया गया था।

नेल्सन मंडेला फाउंडेशन (एनएमएफ) ने 1950 के दशक की शुरुआत में एक वाद-विवाद प्रतियोगिता में पहली मुलाकात के बाद टूटू के मंडेला के साथ संबंधों को याद किया। इसके पश्चात, दोनों 11 फरवरी, 1990 को एक राजनीतिक कैदी के रूप में 27 साल बाद मंडेला की रिहाई के बाद ही दोबारा मिल पाए थे।

एनएमएफ के मुख्य कार्यकारी सेलो हटंग ने एक बयान में कहा "तब से 2013 में मंडेला के निधन तक वे नियमित संपर्क में थे और समय के साथ उनकी दोस्ती गहरी होती गई।"

टूटू हाल के वर्षों में राज्य के उद्यमों की लूटपाट के भी मुखर आलोचक रहे। उन्होंने सत्तारूढ़ अफ्रीकी राष्ट्रीय कांग्रेस (एएनसी) को भी नहीं बख्शा जिसके वह पूरी जिंदगी एक गौरवान्वित सदस्य रहे।

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Web Title: Nobel laureate Desmond Tutu, a symbol of South Africa's apartheid struggle, dies

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