नई दिल्ली: दुनियाभर में इस समय कोरोना वायरस संक्रमण के मामले तेजी से बढ़ रहे हैं। ऐसे में कई बड़ी दवा कंपनी जल्द से जल्द बाजार में वैक्सीन उतारने के लिए रिसर्च में लगी हुई है। लेकिन, इस बीच दुनियाभर के इस्लामिक धर्मगुरुओं के बीच इस बात को लेकर असमंजस है कि सुअर के मांस का इस्तेमाल कर बनाए गए कोविड-19 टीके इस्लामिक कानून के तहत जायज हैं या नहीं।
इंडियन एक्सप्रेस के मुताबिक, एक ओर कई कंपनियां कोविड-19 टीका तैयार करने में जुटी हैं और कई देश टीकों की खुराक हासिल करने की तैयारियां कर रहे हैं। वहीं, दूसरी ओर कुछ धार्मिक समूहों द्वारा प्रतिबंधित सुअर के मांस से बने उत्पादों को लेकर सवाल उठाए जा रहे हैं।
टीकाकरण अभियान बाधित होने की आशंका-
माना जा रहा है कि मुस्लिम धर्मगुरुओं द्वारा उठाए जा रहे सवाल की वजह से टीकाकरण अभियान के बाधित होने की आशंका जताई जा रही है। टीकों के भंडारण और ढुलाई के दौरान उनकी सुरक्षा और प्रभाव बनाए रखने के लिये सुअर के मांस (पोर्क) से बने जिलेटिन का बड़े पैमाने पर इस्तेमाल किया जा रहा है।
स्विटजरलैंड की दवा कंपनी ने पोर्क मांस इस्तेमाल किए बिना टीका तैयार किया था-
कुछ कंपनियां पोर्क के मांस के बिना टीका विकसित करने पर कई साल तक काम कर चुकी हैं। स्विटजरलैंड की दवा कंपनी 'नोवारटिस' ने पोर्क का मांस इस्तेमाल किए बिना मैनिंजाइटिस टीका तैयार किया था जबकि सऊदी और मलेशिया स्थित कंपनी एजे फार्मा भी ऐसा ही टीका बनाने का प्रयास कर रही हैं।
फाइजर, मॉडर्न, और एस्ट्राजेनेका ने पोर्क के मांस के इस्तेमाल को नाकार दिया है-
हालांकि, फाइजर, मॉडर्न, और एस्ट्राजेनेका के प्रवक्ताओं ने कहा है कि उनके कोविड-19 टीकों में सुअर के मांस से बने उत्पादों का इस्तेमाल नहीं किया गया है, लेकिन कई कंपनियां ऐसी हैं जिन्होंने यह स्पष्ट नहीं किया है कि उनके टीकों में सुअर के मांस से बने उत्पादों का इस्तेमाल किया गया है या नहीं।
ऐसे में जो टीके मिलेंगे वो अभी तक जिलेटिन मुक्त होने के लिए प्रमाणित नहीं हुए हैं। यही वजह है कि इंडोनेशिया जैसे बड़ी मुस्लिम आबादी वाले देशों में चिंता पसर गई है।