संयुक्त राष्ट्र: हर साल 29 मई को अंतरराष्ट्रीय संयुक्त राष्ट्र शांति रक्षक दिवस (International day of United Nations Peacekeepers) मनाया जाता है। इस साल संयुक्त राष्ट्र शांति रक्षा अभियानों में सेवा देते हुए पिछले साल अपनी जान न्योछावर करने वाले पांच भारतीय शांति रक्षकों समेत 83 सैन्य, पुलिस और असैन्य कर्मियों को मरणोपरांत प्रतिष्ठित संयुक्त राष्ट्र पदक से इस हफ्ते सम्मानित किया जाएगा।
दक्षिण सूडान में संयुक्त राष्ट्र के मिशन में सेवा देने वाले मेजर रवि इंदर सिंह संधू और सर्जेंट लाल मनोत्रा तारसेम, लेबनान में संयुक्त राष्ट्र अंतरिम बल में सर्जेंट रमेश सिंह, यूएन डिसएंगेजमेंट ऑर्ब्जवर फोर्स में काम करने वाले पी। जॉनसन बेक और कांगो में संयुक्त राष्ट्र के मिशन में काम करने वाले एडवर्ड ए। पिंटो को 29 मई को अंतरराष्ट्रीय संयुक्त राष्ट्र शांति रक्षक दिवस पर मरणोपरांत ‘दैग हैमरस्कोल्द पदक’ दिया जाएगा।
संयुक्त राष्ट्र महासचिव 1948 के बाद अपनी जान गंवाने वाले सभी संयुक्त राष्ट्र शांति रक्षकों को पुष्पांजलि अर्पित करेंगे। इसके बाद वह एक समारोह की अध्यक्षता करेंगे जिसमें 2019 में ड्यूटी करते हुए अपनी जान गंवाने वाले 83 सैन्य, पुलिस और असैन्य शांति रक्षकों को मरणोपरांत प्रतिष्ठित पदक से सम्मानित किया जाएगा।
विश्व संगठन ने कहा कि इस साल शांति रक्षकों की चुनौतियां और खतरे पहले के मुकाबले कहीं अधिक हैं क्योंकि न केवल वे कोविड-19 वैश्विक महामारी का सामना कर रहे हैं बल्कि अपनी तैनाती वाले देशों में लोगों की रक्षा भी कर रहे हैं। उसने कहा कि कोविड-19 के खतरे के बावजूद वे पूरी क्षमता के साथ अपना अभियान चलाए हुए हैं और सरकारों तथा स्थानीय आबादी का सहयोग कर रहे हैं।
1948 में पहली बार बहाल किए गए थे शांतिसैनिक
संयुक्त राष्ट्रसंघ की वेबसाइट के मुताबिक वर्ष 1948 में पहली बार संयुक्त राष्ट्रसंघ ने शांति अभियान की शुरुआत की थी। इसके तहत इजरायल और अरब देशों के बीच फैली अशांति को दूर करने के लिए संयुक्त राष्ट्र ने शांति सैनिकों की तैनाती की थी।
कठिन से कठिन परिस्थितियों में भी शांति स्थापना के लिए काम करने वाले संयुक्त राष्ट्र के ये सैनिक पिछले कई वर्षों से अनवरत अपनी सेवाएं दे रहे हैं। इस दौरान इन शांतिसैनिकों को अपनी जान की कीमत भी चुकानी पड़ती है।
संयुक्त राष्ट्र के मुताबिक वर्ष 2013 से लेकर 2018 के बीच शांति स्थापना के प्रयासों में लगे 195 शांतसैनिकों को अपनी जान गंवानी पड़ी है। पांच वर्षों में शांतसैनिकों की मौत का यह आंकड़ा संयुक्त राष्ट्र के इतिहास में सबसे बड़ा है।