फ्रीडम हाउस की रिपोर्ट में तिब्बत को सबसे कम स्वतंत्रता वाला देश बताया गया, दक्षिण सूडान और सीरिया के साथ रखा
By शिवेन्द्र कुमार राय | Published: April 10, 2023 08:14 PM2023-04-10T20:14:18+5:302023-04-10T20:17:30+5:30
चीन ने तिब्बत को साल 1951 में अपने नियंत्रण में ले लिया था। 'संसार की छत' के नाम से विख्यात इस क्षेत्र में बौद्ध धर्म को मानने वालों की बहुतायत है। चीन में तिब्बत का दर्जा एक स्वायत्तशासी क्षेत्र के तौर पर है। चीन का कहना है कि इस इलाके पर सदियों से उसकी संप्रभुता रही है।
नई दिल्ली: अंतरराष्ट्रीय संस्था और दुनिया भर के देशों में नागरिक स्वतंत्रता का सर्वेक्षण करने वाली फ्रीडम हाउस ने 2023 के लिए अपना 'फ्रीडम इन द वर्ल्ड इंडेक्स' जारी किया है। इसमें बताया गया है कि चीनी नियंत्रण वाला तिब्बत दुनिया में सबसे कम स्वतंत्रता वाला देश है। फ्रीडम हाउस अपनी रिपोर्ट में दक्षिण सूडान और सीरिया के साथ तिब्बत को दुनिया के सबसे कम-मुक्त देश के रूप में जगह दी है।
ये तीसरा साल है जब फ्रीडम हाउस ने ऐसी रिपोर्ट जारी की है। फ्रीडम हाउस ने अपनी रिपोर्ट में कहा कि तिब्बत में रहने वाले चीनी और तिब्बती दोनों के पास बुनियादी अधिकारों का अभाव है। रिपोर्ट में ये भी बताया गया है कि चीनी अधिकारी तिब्बतियों के बीच असंतोष के किसी भी संकेत को कठोरता से दबाते हैं।
इस बीच आर्थिक, सामाजिक और सांस्कृतिक अधिकारों पर संयुक्त राष्ट्र की समिति ने 6 मार्च को अपनी तीसरी आवधिक समीक्षा रिपोर्ट में कहा कि तिब्बती लोगों के मानवाधिकारों से संबंधित कई मुद्दों पर अंतर्राष्ट्रीय समुदाय से गंभीर और तत्काल ध्यान देने की आवश्यकता है। संयुक्त राष्ट्र की समिति द्वारा कहा गया है कि तिब्बत का चीनीकरण करने के लिए उठाए गए हर कदम पर शेष विश्व द्वारा कड़ी नजर रखी जा रही है। सीपीसी द्वारा ( संयुक्त राष्ट्र की समिति) की तरफ से ये भी कहा गया है कि तिब्बती संस्कृति और पहचान के खिलाफ हमले को रोकने के लिए किस हद तक कार्रवाई की जाती है, यह मायने रखता है।
बता दें कि चीन ने तिब्बत को साल 1951 में अपने नियंत्रण में ले लिया था। 'संसार की छत' के नाम से विख्यात इस क्षेत्र में बौद्ध धर्म को मानने वालों की बहुतायत है। चीन में तिब्बत का दर्जा एक स्वायत्तशासी क्षेत्र के तौर पर है। चीन का कहना है कि इस इलाके पर सदियों से उसकी संप्रभुता रही है। हालांकि तिब्बती चीन के कब्जे को अवैध मानते हैं और भारत में निर्वासित जीवन बिता रहे दलाई लामा को अपना सर्वोच्च राजनीतिक और आध्यात्मिक नेता मानते हैं।
1912 में तिब्बत के 13वें धर्मगुरु दलाई लामा ने तिब्बत को स्वतंत्र घोषित कर दिया। उस समय चीन ने कोई आपत्ति नहीं जताई, लेकिन करीब 40 सालों बाद चीन में कम्युनिस्ट सरकार आ गई। इस सरकार की विस्तारवादी नीतियों के चलते 1950 में चीन ने हजारों सैनिकों के साथ तिब्बत पर हमला कर दिया। 1959 में दलाई लामा तिब्बत की राजधानी ल्हासा से भागकर भारत पहुंचे। तब से ये क्षेत्र चीनी कब्जे में रहते हुए भी आजादी के लिए संघर्ष कर रहा है।