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दक्षिण पूर्व एशिया पर प्रभुत्व नहीं चाहता चीन : शी

By भाषा | Updated: November 22, 2021 22:01 IST

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बीजिंग, 22 नवंबर (एपी) चीन के राष्ट्रपति शी चिनफिंग ने दक्षिण चीन सागर को लेकर चल रहे तनाव के बीच कहा कि उनका देश दक्षिण पूर्व एशिया पर प्रभुत्व हासिल नहीं करना चाहता और न ही अपने पड़ोसियों के साथ दबंगई करना चाहता है।

शी ने सोमवार को ‘दक्षिण पूर्व एशियाई राष्ट्र संघ’ (आसियान) के सदस्यों के साथ एक ऑनलाइन सम्मेलन के दौरान यह टिप्पणी की। यह सम्मेलन दोनों पक्षों के बीच संबंधों की 30वीं वर्षगांठ मनाने के उपलक्ष्य में आयोजित किया गया था।

चीन ने अपनी बढ़ती शक्ति और प्रभाव के बारे में चिंताओं को दूर करने की बार-बार कोशिश की है, विशेष रूप से पूरे दक्षिण चीन सागर पर अपने दावे को लेकर, जिसपर आसियान के सदस्य मलेशिया, वियतनाम, ब्रुनेई और फिलीपीन भी दावा करते हैं।

आधिकारिक समाचार एजेंसी ‘शिन्हुआ’ के मुताबिक शी ने कहा, ‘‘चीन प्रभुत्ववाद और सत्ता की राजनीति का दृढ़ता से विरोध करता है, अपने पड़ोसियों के साथ मैत्रीपूर्ण संबंध बनाए रखना चाहता है, संयुक्त रूप से इस क्षेत्र में स्थायी शांति बनाए रखना चाहता है और निश्चित तौर पर वर्चस्व नहीं जमाएगा या छोटे देशों पर दबंगई नहीं करेगा।’’

शिखर सम्मेलन को संबोधित करते हुए शी ने एक व्यापक रणनीतिक साझेदारी की स्थापना की घोषणा की, जो संबंधों को उच्च स्तर तक ले जाने के लिए एक राजनयिक शब्दजाल है।

उन्होंने यह भी कहा, "दक्षिण चीन सागर में स्थिरता की रक्षा करने और इसे शांति, मित्रता और सहयोग का समुद्र बनाने के लिए संयुक्त प्रयासों की आवश्यकता है।"

शी ने कहा, "हम आसियान के साथ उच्च गुणवत्ता वाले बेल्ट एंड रोड सहयोग और बेल्ट एंड रोड पहल तथा हिन्द-प्रशांत में आसियान आउटलुक के बीच सहयोग चाहते हैं।"

बीजिंग आसियान देशों ब्रुनेई, कंबोडिया, इंडोनेशिया, लाओस, मलेशिया, म्यांमा, फिलीपीन, सिंगापुर, थाईलैंड और वियतनाम के साथ विशेष संबंध स्थापित करने वाला पहला देश था, जिसने बड़े लाभ प्राप्त किए क्योंकि ब्लॉक के साथ उसका व्यापार 732 अरब अमेरिकी डॉलर से अधिक हो गया और बीजिंग सबसे बड़ा व्यापारिक भागीदार बनकर उभरा।

भारत के भी आसियान देशों के साथ विशेष संबंध हैं। नयी दिल्ली ने भी पिछले महीने भारत-आसियान शिखर सम्मेलन आयोजित किया था, जिसमें प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा था कि 2022 को साझेदारी के 30 वर्ष होने के उपलक्ष्य में 'आसियान-भारत मैत्री वर्ष' के रूप में मनाया जाएगा।

शी की टिप्पणी चीनी तटरक्षक पोतों द्वारा विवादित दक्षिण चीन सागर तट पर सैनिकों को आपूर्ति करने वाली दो फिलीपीनी नौकाओं को अवरुद्ध करने और उनपर पानी की तेज बौछार करने के कुछ दिनों बाद आई है।

फिलीपीन के राष्ट्रपति रोड्रिगो दुतेर्ते ने सम्मेलन में अपनी टिप्पणी में इस घटना पर प्रकाश डाला।

राष्ट्रपति कार्यालय की ओर से जारी बयान में दुतेर्ते ने कहा, ‘‘हम आयुंगिन (फिलीपीनी भाषा में तट का नाम) में हुई हाल की घटना की निंदा करते हैं और इसी तरह के अन्य घटनाक्रम को गंभीर चिंता के साथ देखते हैं। यह हमारे राष्ट्रों और हमारी साझेदारी के बीच संबंधों के बारे में अच्छे संकेत नहीं देता है।’’

दुतेर्ते ने चीन से समुद्री कानून पर 1982 के संयुक्त राष्ट्र समझौते का सम्मान करने का भी आह्वान किया, जो समुद्री क्षेत्रों पर समुद्री अधिकारों और संप्रभु अधिकारों को स्थापित करता है। उन्होंने साथ ही 2016 के हेग मध्यस्थता के फैसले का भी सम्मान करने का आह्वान किया, जिसमें चीन के दक्षिण चीन सागर पर दावों को अमान्य कर दिया गया था। चीन ने इस फैसले को मानने से इनकार कर दिया था।

सोमवार को दैनिक संवाददाता सम्मेलन में, चीनी विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता झाओ लिजियन ने 2016 के मध्यस्थता के फैसले को खारिज करने की चीन की स्थिति पर जोर दिया और दावा किया कि "दक्षिण चीन सागर में इसकी क्षेत्रीय संप्रभुता, समुद्री अधिकार और हित पर्याप्त ऐतिहासिक और कानूनी आधार द्वारा समर्थित हैं।’’

झाओ ने संवाददाताओं से कहा, ‘‘चीन की संप्रभुता एवं हितों को चुनौती देने का कोई भी प्रयास सफल नहीं होगा।’’

मलेशियाई प्रधानमंत्री इस्माइल साबरी याकूब ने भी सम्मेलन में अपने भाषण में सागर के मुद्दे को उठाया और कहा "एक दावेदार देश के रूप में, मलेशिया दृढ़ता से मानता है कि दक्षिण चीन सागर से संबंधित मामलों को अंतरराष्ट्रीय कानून के मान्यता प्राप्त सिद्धांतों के अनुसार शांतिपूर्ण और रचनात्मक रूप से हल किया जाना चाहिए।"

इंडोनेशियाई राष्ट्रपति जोको विडोडो ने उन आर्थिक संबंधों पर जोर दिया, जिन्होंने पिछले 12 वर्षों में चीन को आसियान का सबसे बड़ा व्यापारिक भागीदार बनाया है।

उन्होंने कहा, ‘‘परस्पर विश्वास तभी बरकरार रह सकता है जब हम सभी अंतरराष्ट्रीय कानून का सम्मान करें।’’

आसियान देशों ने शिखर सम्मेलन में मानवाधिकार उल्लंघन के आरोपों का सामना कर रहे म्यांमा के सैन्य शासक जनरल मिन आंग हलिंग को शामिल करने के चीन के प्रयासों को बाधित कर दिया और इस तरह शी द्वारा आयोजित यह शिखर सम्मेलन म्यांमा के प्रतिनिधि के बिना आयोजित हुआ।

इंडोनेशिया, मलेशिया, सिंगापुर और ब्रुनेई ने कथित तौर पर म्यांमा के सैन्य शासक को शामिल करने के चीन के प्रस्ताव का विरोध किया।

वहीं, म्यांमा के सूचना मंत्रालय ने बैठक में देश के प्रतिनिधि को आमंत्रित करने के लिए चीन को धन्यवाद दिया और शिकायत की कि ब्लॉक के कुछ सदस्यों ने "गैर-राजनीतिक" प्रतिनिधि के भाग लेने के लिए दबाव डाला था।

Disclaimer: लोकमत हिन्दी ने इस ख़बर को संपादित नहीं किया है। यह ख़बर पीटीआई-भाषा की फीड से प्रकाशित की गयी है।

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