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कनाडा संघीय चुनाव 2021: हताशा और असफलता से भरी चुनाव प्रचार मुहिम

By भाषा | Updated: September 20, 2021 13:40 IST

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साइमन फ्रेजर विश्वविद्यालय के स्टीवर्ट प्रेस्ट

बर्नेबी (कनाडा), 20 सितंबर (द कन्वरसेशन) कनाडा की संघीय चुनाव मुहिम मतदाताओं और राजनीतिक दलों के लिए हताशा पैदा करने वाली रही है। मुख्यधारा के राजनीतिक दलों ने नए समर्थकों को लुभाने के लिए जो भी प्रचार रणनीति अपनाने की कोशिश की, वह विफल रही।

पहली असफलता चुनाव प्रचार शुरू होने से पहले ही मिल गई। ग्रीष्मकाल में चुनाव पूर्व सर्वेक्षणों में आगे चल रहे लिबरल नेताओं ने अंतिम मतदान से दो साल से भी कम समय के भीतर चुनाव कराने का जोखिम उठाया, ताकि वे उन्हें मिल रहे समर्थन का लाभ उठा सकें।

सैद्धांतिक रूप से यह उचित ठहराया जा सकने वाला जुआ था, क्योंकि कई कनाडाई प्रांतों समेत कई अन्य स्थानों पर निवर्तमान सरकारों ने वैश्विक महामारी के दौरान हुए चुनावों में जबरदस्त जीत हासिल की हैं, लेकिन कनाडाई संघीय चुनाव में चीजें योजना के अनुरूप नहीं हुईं। पूरी प्रचार मुहिम के दौरान लिबरल नेताओं से बार -बार यह सवाल किया गया कि इस समय चुनाव क्यों कराए जा रहे है और वे इस सवाल का जवाब नहीं दे पाए।

लिबरल नेताओं ने शुरुआत में कोविड-19 प्रबंधन को चुनावी मुद्दा बनाने की कोशिश की, लेकिन अगस्त के अंत तक इस मामले पर लिबरल की बढ़त समाप्त होती नजर आई।

न्यू डेमोक्रेटिक पार्टी (एनडीपी) की चुनाव प्रचार मुहिम सरल थी। उसने आम मुद्दों को उठाने और हर संभव समय पर ट्रूडो को हमला करने पर ध्यान केंद्रित किया। एनडीपी ने जगमीत सिंह की लोकप्रियता का पूरा इस्तेमाल करने की कोशिश की और उन्होंने एवं उनकी पार्टी ने विज्ञापनों में, प्रचार और नेताओं की बहस के दौरान प्रधानमंत्री पर लगातार हमला किया, लेकिन इससे पार्टी को कोई खास फायदा होता नजर नहीं आ रहा।

तीनों बड़ों दलों में एरिन ओ’टूले की कन्जर्वेटिव पार्टी ऑफ कनाडा (सीपीसी) ने राजनीतिक परिदृश्य के केंद्र में आने के लिए सबसे बड़ा जुआ खेला। यदि इस रणनीति ने काम किया होता तो ओ’टूले प्रधानमंत्री बनने के कगार पर होते, लेकिन उनकी रणनीति भी काम करती नजर नहीं आ रही।

2019 की चुनाव प्रचार मुहिम में सीपीसी को शहरी कनाडा का समर्थन नहीं मिला था। ऐसा प्रतीत होता है कि ओ’टूले ने निष्कर्ष निकाला है कि अपनी नीतियों को नरम बनाए बिना उनकी पार्टी कभी शहरी मतददाताओं का समर्थन जीत नहीं पाएगी। इसी के अनुरूप ओ’टूले ने अपने पूर्ववर्ती नेताओं की तुलना में जलवायु परिवर्तन को अधिक गंभीरता से लिया और उन्होंने कामकाजी कनाडाई नागरिकों को लुभाने वाली नीतियां प्रस्तावित की।

कई कनाडाई इस तरह के कदमों को सैद्धांतिक रूप में समर्थन दे सकते हैं, लेकिन नीति में अचानक बदलाव से यह पता लगाना मुश्किल हो रहा है कि कंजर्वेटिव पार्टी किन मुद्दों का समर्थन करती है। ओ’टूले की इस रणनीति के कारण पीपुल्स पार्टी ऑफ कनाडा (पीपीसी) का समर्थन बढ़ सकता है।

ओ’टूले ने टीका लगवाने को उम्मीदवारों की स्वास्थ्य संबंधी निजी फैसला बताया, लेकिन देश में टीका लगवाने वालों की लगातार बढ़ रही संख्या की पृष्ठभूमि में टीका नहीं लगवाने वालों के प्रति आक्रोश भी बढ़ रहा है। ट्रूडो हवाई और रेल यात्रा करने वाले कनाडावासियों के लिए टीकाकरण को अनिवार्य बनाने के पक्ष में हैं लेकिन कंजर्वेटिव इसका विरोध करते हैं। ट्रूडो ने इंगित किया कि अल्ब्रेटा में कंजर्वेटिव प्रांतीय सरकार चला रहे हैं और वहां संकट की स्थिति है।

ओ’टूले के समर्थक तथा अल्ब्रेटा के प्रीमियर जेसन केनी ने स्वीकार किया कि महामारी से निपटने की उनकी सरकार की नीतियां विफल रहीं और प्रांत की स्वास्थ्य देखभाल प्रणाली को चरमराने से बचाने के लिए तत्काल सुधार की आवश्यकता है। कोविड-19 से निपटने के केनी के तरीके की पहले सराहना कर चुके ओ’टूले को अब समझ नहीं आ रहा कि वह इस मामले में अब क्या सफाई दें।

ऐसा प्रतीत होता है कि लिबरल पार्टी फिर जीत हासिल करने की राह पर है और यदि ऐसा होता है कि इस श्रेय केनी को जाएगा, जिनके कारण लिबरल नेताओं की टीकाकरण संबंधी रणनीति काम कर पाई।

Disclaimer: लोकमत हिन्दी ने इस ख़बर को संपादित नहीं किया है। यह ख़बर पीटीआई-भाषा की फीड से प्रकाशित की गयी है।

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