ब्रिटिश उच्च न्यायालय ने नीरव मोदी को प्रत्यर्पण मामले में अपील करने की अनुमति दी
By भाषा | Updated: August 9, 2021 20:04 IST2021-08-09T20:04:22+5:302021-08-09T20:04:22+5:30

ब्रिटिश उच्च न्यायालय ने नीरव मोदी को प्रत्यर्पण मामले में अपील करने की अनुमति दी
(अदिति खन्ना)
लंदन, नौ अगस्त लंदन में उच्च न्यायालय के एक न्यायाधीश ने सोमवार को भगोड़े हीरा व्यापारी नीरव मोदी को भारतीय अदालतों के समक्ष धोखाधड़ी और धनशोधन के आरोपों का सामना करने के लिए भारत को प्रत्यर्पण के पक्ष में एक मजिस्ट्रेट अदालत के आदेश के खिलाफ मानसिक स्वास्थ्य और मानवाधिकारों के आधार पर अपील करने की सोमवार को अनुमति दे दी।
न्यायाधीश मार्टिन चेम्बरलेन ने कहा कि 50 वर्षीय हीरा व्यापारी की कानूनी टीम द्वारा उनके ‘‘गंभीर अवसाद’’ और ‘‘आत्महत्या के खतरे’’ के संबंध में प्रस्तुत तर्क सुनवाई में बहस योग्य थे। उन्होंने कहा कि मुंबई में आर्थर रोड जेल में ‘‘आत्महत्या के सफल प्रयासों’’ को रोकने में सक्षम उपायों की पर्याप्तता, जहां नीरव मोदी को प्रत्यर्पण पर हिरासत में लिया जाना है, भी बहस के दायरे में आती है।
न्यायमूर्ति चेम्बरलेन ने अपने आदेश में कहा, ‘‘इस स्तर पर, मेरे लिए सवाल बस इतना है कि क्या इन आधारों पर अपीलकर्ता का मामला उचित रूप से बहस योग्य है। मेरे फैसले में, यह है। मैं आधार तीन और चार पर अपील करने की अनुमति दूंगा।’’
आधार तीन और चार मानव अधिकारों के यूरोपीय सम्मेलन (ईसीएचआर) के अनुच्छेद तीन या जीवन, स्वतंत्रता और सुरक्षा के अधिकार, और ब्रिटेन के आपराधिक न्याय अधिनियम 2003 की धारा 91 से संबंधित है, जो स्वास्थ्य से संबंधित है।
न्यायाधीश ने कहा, ‘‘मैं उस आधार को प्रतिबंधित नहीं करूंगा जिस पर तर्क दिया जा सकता है, हालांकि मुझे ऐसा लगता है कि इस बात पर विशेष ध्यान दिया जाना चाहिए कि क्या न्यायाधीश ने अपने निष्कर्ष पर पहुंचने में गलती की जबकि उन्हें अपीलकर्ता (नीरव मोदी) के अवसाद की गंभीरता के सबूत दिये गये, आत्महत्या के जोखिम और आर्थर रोड जेल में आत्महत्या के सफल प्रयासों को रोकने में सक्षम किसी भी उपाय की पर्याप्तता के बारे में तर्क दिये गये थे।’’
अन्य सभी आधारों पर अपील करने की अनुमति को अस्वीकार कर दिया गया था और मामला अब आधार तीन और चार के तहत लंदन में उच्च न्यायालय के समक्ष एक ठोस सुनवाई के लिए आगे बढ़ेगा।
नीरव के वकील एडवर्ड फिजगेराल्ड ने 21 जुलाई की सुनवाई के दौरान दलील दी थी कि जिला न्यायाधीश सैम गूज ने फरवरी में उसके प्रत्यर्पण के पक्ष में आदेश देकर चूक की। न्यायाधीश इस निष्कर्ष पर पहुंचे थे कि नीरव का गंभीर अवसाद उसकी कैद को देखते हुए असामान्य नहीं था और आत्महत्या करने की कोई प्रवृत्ति नहीं दिखी।
फिजगेराल्ड ने कहा था, ‘‘जिला न्यायाधीश ने यह फैसला देकर गलती की कि याचिकाकर्ता (नीरव) की मानसिक स्थिति में कुछ भी असमान्य नहीं था और उसकी मौजूदा दशा के हिसाब से निष्कर्ष पर पहुंचना गलत था।’’
भारतीय प्राधिकारों की तरफ से क्राउन पॉसक्यूशन सर्विस (सीपीएस) की वकील हेलेन मैलकम ने अपील का विरोध करते हुए कहा था कि नीरव की मानसिक स्थिति पर कोई विवाद नहीं है और भारत सरकार से आश्वासन मिला है कि जरूरत हुई तो मुंबई में उसकी समुचित चिकित्सकीय देखभाल होगी।
न्यायमूर्ति चेम्बरलेन ने अपना फैसला सुनाते हुए इस बात पर गौर किया कि बचाव पक्ष ने अपील की सुनवाई के दौरान नीरव मोदी के वकील आनंद दूबे ने भारत में कोरोना वायरस की नई लहर, जो जेल में उसे उपलब्ध देखभाल को प्रभावित कर सकती है, जैसे सबूतों को आधार बनाया है।
गौरतलब है कि नीरव मोदी के खिलाफ पंजाब नेशनल बैंक (पीएनबी) से जुड़े दो अरब डॉलर के घोटाले के मामले में धनशोधन और धोखाधड़ी के आरोप में भारत में मुकद्दमा चलाया जाना है।
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