रूसी हमले के बाद से यूक्रेन में 65 लाख विस्थापित, 32 लाख ने छोड़े देश, यूक्रेनी राष्ट्रपति ने कहा- यह बात करने का समय है
By अनिल शर्मा | Published: March 19, 2022 09:16 AM2022-03-19T09:16:28+5:302022-03-19T09:20:10+5:30
संयुक्त राष्ट्र की शरणार्थी संबंधी एजेंसी के अनुमान के अनुसार यूक्रेन में अब तक कुल 65 लाख लोग विस्थापित हो चुके हैं, जबकि 32 लाख लोग पहले ही देश छोड़कर जा चुके हैं।
जिनेवाः यूक्रेन पर रूसी युद्ध को 24 दिन हो चुके हैं। संयुक्त राष्ट्र की शरणार्थी संबंधी एजेंसी के अनुमान के अनुसार यूक्रेन में अब तक कुल 65 लाख लोग विस्थापित हो चुके हैं, जबकि 32 लाख लोग पहले ही देश छोड़कर जा चुके हैं। अंतरराष्ट्रीय प्रवास संगठन (आईओएम) के अनुमान से पता चलता है कि यूक्रेन विस्थापन के मामले में पिछले तीन सप्ताह में ही सीरिया से आगे निकल चुका है, जहां साल 2010 में भीषण युद्ध की शुरुआत हुई थी।
सीरिया में अब तक 1 करोड़ 30 लाख से अधिक लोग या तो विस्थापित हो चुके हैं या फिर देश छोड़कर चले गए हैं। संयुक्त राष्ट्र एजेंसी का यह अनुमान शुक्रवार को प्रकाशित एक दस्तावेज में सामने आया है। वहीं समाचार एजेंसी रॉयटर्स के मुताबिक, शनिवार तड़के जारी एक वीडियो संबोधन में, यूक्रेनी राष्ट्रपति वोलोदिमीर जेलेंस्की ने मॉस्को के साथ सार्थक शांति और सुरक्षा वार्ता का आह्वान किया। जेलेंस्की ने कहा, बैठक का समय आ गया है, यह बात करने का समय है।
यूक्रेन के अधिकारियों से वार्ता कर रहे रूसी प्रतिनिधिमंडल के प्रमुख ने कहा है कि यूक्रेन के तटस्थ दर्जे को लेकर दोनों पक्ष समझौते के करीब पहुंच गए हैं। यूक्रेन के साथ कई दौर की वार्ता करने वाले रूसी प्रतिनिधिमंडल के अध्यक्ष व्लादिमीर मेदिंस्की ने शुक्रवार को कहा कि दोनों पक्ष यूक्रेन के नाटो में शामिल होने की कोशिश को छोड़ने और तटस्थ रुख अख्तियार करने को लेकर उत्पन्न मदभेदों को पाटने के करीब पहुंच रहे हैं। मेदिंस्की की टिप्पणी को रूसी समाचार एजेंसियों ने इस प्रकार उद्धृत किया, ‘‘तटस्थ दर्जा और यूक्रेन की नाटो की सदस्यता से दूरी वार्ता का मुख्य बिंदु है और इस मामले में दोनों पक्षों का रुख एक-दूसरे के करीब पहुंच रहा है।’’
उन्होंने कहा कि अब यूक्रेन के विसैन्यीकरण के लिए दोनों पक्षों ने ‘‘करीब आधा रास्ता’’ तय कर लिया है। मेदिंस्की ने रेखांकित किया कि कीव जोर दे रहा है कि यूक्रेन के रूस-समर्थित पूर्वी अलगाववादी क्षेत्र को उसके अधीन लाया जाए, जबकि रूस का मानना है कि इलाके के लोगों को स्वयं अपनी किस्मत का फैसला करने की अनुमति दी जाए।