'सब तख्त गिराए जाएंगे, बस नाम रहेगा अल्लाह का', IIT कानपुर के छात्रों द्वारा गाए गए फैज अहमद फैज की नज्म पर विवाद, दो गुट में बंटे लोग

By पल्लवी कुमारी | Published: January 2, 2020 03:32 PM2020-01-02T15:32:39+5:302020-01-02T15:32:39+5:30

प्रदर्शन के दौरान एक छात्र ने फैजै की कविता 'हम देखेंगे' गायी जिसके खिलाफ वासी कांत मिश्रा और 16 से 17 लोगों ने आईआईटी निदेशक के पास लिखित शिकायत दी है। उनका कहना था कि कविता में कुछ दिक्कत वाले शब्द हैं जो हिंदुओं की भावनाओं को प्रभावित कर सकते हैं।

iit kanpur inquiry on Faiz Ahmed Faiz poem hum dekhenge anti hindu CAA protest | 'सब तख्त गिराए जाएंगे, बस नाम रहेगा अल्लाह का', IIT कानपुर के छात्रों द्वारा गाए गए फैज अहमद फैज की नज्म पर विवाद, दो गुट में बंटे लोग

'सब तख्त गिराए जाएंगे, बस नाम रहेगा अल्लाह का', IIT कानपुर के छात्रों द्वारा गाए गए फैज अहमद फैज की नज्म पर विवाद, दो गुट में बंटे लोग

Highlightsफैज अहमद फैज को भारत विरोधी बताने पर जावेद अख्तर ने कहा है, फैज अहमद फैज को 'हिंदू विरोधी' कहना इतना बेतुका है।गठित समिति से 15 दिनों के भीतर इस पूरे मामले पर रिपोर्ट मांगी गई है।

आईआईटी कानपुर के छात्रों द्वारा जामिया मिलिया इस्लामिया के छात्रों के समर्थन में परिसर में 17 दिसंबर को मशहूर शायर फैज अहमद फैज की कविता 'हम देखेंगे' गाए जाने के प्रकरण में जांच के लिए एक समिति का गठन किया गया है। इस गठित समिति से 15 दिनों के भीतर जवाब मांगा गया है। जिसके बाद ट्विटर पर #IITKanpur ट्विटर पर ट्रेंड करने लगा है। इस ट्रेंड के साथ लोग IIT कानपुर के छात्रों के लगाए गए नारे को लेकर दो गुट में बंट गए हैं। एक तबका इनके नारेबाजी के लिए सही ठहरा रहा है तो वहीं एक समूह इनकी आलोचना कर रहा है। वहीं कई लोग ऐसे भी हैं जो फैज अहमद फैज को भारत विरोधी बता रहे हैं। हालांकि इसपर विवाद हो गया है। 

आइए जानते है कि  IIT कानपुर में ''हम देखेंगे, लाजिम है हम भी देखेंग'' गाने पर क्यों विवाद हुआ? 

17 दिसंबर 2019 को IIT कानपुर के कैंपस में नागरिकता संशोधन कानून (CAA) के विरोध के नाम पर जामिया मिल्लिया इस्लामिया यूनिवर्सिटी में छात्रों पर हुई कार्रवाई को लेकर विरोध प्रदर्शन हुए। संस्थान के कई प्रोफेसरों ने कुछ दिनों पहले यह शिकायत की थी कि 17 दिसंबर को हुए विरोध प्रदर्शन में शामिल छात्रों ने पाकिस्तानी शायर फैज अहमद फैज की नज्म ‘हम देखेंगे, लाजिम है हम भी देखेंगे…’ गाई। 

शायर फैज अहमद फैज की नज्म ‘हम देखेंगे, लाजिम है हम भी देखेंगे…’ के बोल जिसपर विवाद हुआ है वह इस प्रकार हैं- ''लाजिम है कि हम भी देखेंगे, जब अर्ज-ए-खुदा के काबे से, सब बुत उठाए जाएँगे, हम अहल-ए-वफा मरदूद-ए-हरम, मसनद पे बिठाए जाएँगे। सब ताज उछाले जाएँगे, सब तख्त गिराए जाएँगे। बस नाम रहेगा अल्लाह का। हम देखेंगे।'' हालांकि ये शायर फैज अहमद फैज की पूरी नज्म नहीं है। ये उनके कविता की कुछ लाइने हैं। (पूरी कविता आप आर्टिकल के अंत में पढ़ सकते हैं।)

IIT कानपुर का यह वीडियो वायरल हो गया है। वीडियो को शेयर कर महिला पत्रकार स्वाति गोयल शर्मा ने लिखा है, ''IIT कानपुर के एक फैकल्टी ने 'जमिया के साथ एकजुटता' और हाल ही में बिना अनुमति के आयोजित एक कार्यक्रम में भारत विरोधी और सांप्रदायिक बयान देने का आरोप लगाते हुए इस वीडियो और निर्देशक देकर को एक शिकायत की है।  "जब सभी मूर्तियों को हटाया जाएगा  केवल अल्लाह का नाम रहेगा''

IIT कानपुर के  16 से 17 लोगों ने लिखित शिकायत दी है 

पीटीआई-भाषा के मुताबिक, आईआईटी कानपुर के उपनिदेशक मनिंद्र अग्रवाल ने बताया कि आईआईटी के लगभग 300 छात्रों ने परिसर के भीतर शांतिपूर्ण प्रदर्शन किया था क्योंकि उन्हें धारा 144 लागू होने के चलते बाहर जाने की इजाजत नहीं थी। 

प्रदर्शन के दौरान एक छात्र ने फैज की कविता 'हम देखेंगे' गायी जिसके खिलाफ वासी कांत मिश्रा और 16 से 17 लोगों ने आईआईटी निदेशक के पास लिखित शिकायत दी है। उनका कहना था कि कविता में कुछ दिक्कत वाले शब्द हैं जो हिंदुओं की भावनाओं को प्रभावित कर सकते हैं। अग्रवाल ने बताया कि उनके नेतृत्व में छह सदस्यों की एक समिति का गठन किया गया है जो प्रकरण की जांच करेगी।

कुछ छात्रों से पूछताछ की गई है जबकि कुछ अन्य से तब पूछताछ की जाएगी जब वे अवकाश के बाद वापस संस्थान आएंगे। उन्होंने कहा कि सोशल मीडिया की जंग में स्थिति खराब हो रही है। इसलिए उन्होंने लोगों से इसे बंद करने को कहा है और उन्होंने उनकी बात मान ली है।

देखें #IITKanpur पर लोगों की प्रतिक्रिया

फैज अहमद फैज को भारत विरोधी बताने पर जावेद अख्तर ने कहा है, फैज अहमद फैज को 'हिंदू विरोधी' कहना इतना बेतुका और मजेदार है कि इसके बारे में गंभीरता से बात करना मुश्किल है। उन्होंने अपना आधा जीवन पाकिस्तान के बाहर बिताया, उन्हें वहां पाकिस्तान विरोधी कहा गया था। 

जावेद अख्तर के इस ट्वीट की भी आलोचना हो रही है। कई यूजर्स का कहना है कि ये क्या कहना चाहते हैं इनका खुद ही नहीं पता है और उनका दिया हुआ लॉजिक भी बहुत खराब है। 

पत्रकार और न्यूज एंकर समीर अब्बास ने लिखा है, ''फैज अहमद फैज ने ये नज़्म 1977 में पाकिस्तानी तानाशाह ज़िया उल हक के तख़्ता पलट से दुखी हो कर लिखी थी. किसी शायर के बोल पर हल्ला बोलने से पहले उसकी शायरी का संदर्भ तो समझ लीजिए... "जब अर्ज़-ए-ख़ुदा के काबे से सब बुत उठवाए जाएँगे सब ताज उछाले जाएँगे सब तख़्त गिराए जाएंगे"

यहां पढ़ें  फ़ैज़ अहमद फ़ैज़ की कविता 'हम देखेंगे' के बोल

''हम देखेंगे 
लाज़िम है कि हम भी देखेंगे 
वो दिन कि जिस का वादा है 
जो लौह-ए-अज़ल में लिखा है 
जब ज़ुल्म-ओ-सितम के कोह-ए-गिराँ 
रूई की तरह उड़ जाएँगे 
हम महकूमों के पाँव-तले 
जब धरती धड़-धड़ धड़केगी 
और अहल-ए-हकम के सर-ऊपर 
जब बिजली कड़-कड़ कड़केगी 
जब अर्ज़-ए-ख़ुदा के काबे से 
सब बुत उठवाए जाएँगे 
हम अहल-ए-सफ़ा मरदूद-ए-हरम 
मसनद पे बिठाए जाएँगे 
सब ताज उछाले जाएँगे 
सब तख़्त गिराए जाएँगे 
बस नाम रहेगा अल्लाह का 
जो ग़ाएब भी है हाज़िर भी 
जो मंज़र भी है नाज़िर भी 
उठोगा अनल-हक़ का नारा 
जो मैं भी हूँ और तुम भी हो 
और राज करेगी ख़ल्क़-ए-ख़ुदा 
जो मैं भी हूँ और तुम भी हो''

English summary :
A committee has been constituted to investigate the case of famous poet Faiz Ahmed Faiz poem 'Hum Dekhenge' sung by iit students on December 17 in the campus in support of the students of jamia Millia Islamia.


Web Title: iit kanpur inquiry on Faiz Ahmed Faiz poem hum dekhenge anti hindu CAA protest

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