सदी के अंत तक भारत के 60 करोड़ से ज्यादा की आबादी होगी भीषण गर्मी की चपेट में, इन देशों में रहना हो जाएगा मुश्किल- अध्ययन

By भाषा | Published: May 23, 2023 07:34 AM2023-05-23T07:34:16+5:302023-05-23T08:08:56+5:30

अध्ययन के मुताबिक 2.7 डिग्री सेल्सियस तापमान बढ़ने पर, बुर्किना फासो और माली सहित कुछ देशों में रहना मनुष्यों के लिए खतरनाक होगा। ऑस्ट्रेलिया और भारत भी गर्म क्षेत्र (लगभग 40 प्रतिशत) में भारी वृद्धि का सामना करेंगे। ब

By the end of the century more than 60 crore population of India will be in the grip of severe heat study | सदी के अंत तक भारत के 60 करोड़ से ज्यादा की आबादी होगी भीषण गर्मी की चपेट में, इन देशों में रहना हो जाएगा मुश्किल- अध्ययन

फोटो सोर्स: ANI (प्रतिकात्मक फोटो)

Highlightsभारत में भीषण गर्मी को लेकर एक नई स्टडी सामने आई है। स्टडी के अनुसार, सदी के अंत तक भारत के 60 करोड़ से ज्यादा की आबादी भीषण गर्मी की चपेट में होगी। यही नहीं भारत के बाद नाइजीरिया दूसरा सबसे ज्यादा प्रभावित देश होगा।

नई दिल्ली:  अगर सभी देश उत्सर्जन में कटौती के अपने वादे को पूरा कर भी लें तब भी भारत की 60 करोड़ से अधिक आबादी समेत दुनिया भर में 200 करोड़ से अधिक लोगों को खतरनाक रूप से भीषण गर्मी का सामना करना पड़ेगा। और यह गर्मी इतनी भयानक होगी कि ‘अस्तित्व का संकट’ तक पैदा हो सकता है। 

एक नए अध्ययन में यह दावा किया गया है। अध्ययन में यह भी कहा गया है कि आज औसतन 3.5 वैश्विक नागरिकों या सिर्फ 1.2 अमेरिकी नागरिकों का आजीवन उत्सर्जन भविष्य के एक व्यक्ति के लिए खतरनाक गर्मी की स्थिति पैदा करेंगे। 

स्टडी में क्या खुलासा हुआ है

शोधकर्ताओं के मुताबिक वैश्विक स्तर पर 4.4 डिग्री सेल्सियस बढ़ने की ‘‘सबसे बदतर स्थिति’’ में दुनिया की 50 प्रतिशत आबादी अभूतपूर्व चरम तापमान के संपर्क में आ सकती है, जो अस्तित्व संबंधी खतरा पैदा कर सकता है। जलवायु वैज्ञानिकों के अनुसार, वर्तमान जलवायु नीतियों के परिणामस्वरूप सदी के अंत (2080-2100) तक तापमान में 2.7 डिग्री सेल्सियस वृद्धि होगी। तापमान में इतनी वृद्धि से विश्व स्तर पर लू की घातक लहरें, चक्रवात और बाढ़ तथा समुद्र के स्तर में वृद्धि की आशंका है। 

ग्लोबल सिस्टम्स इंस्टीट्यूट, एक्सेटर विश्वविद्यालय, अर्थ कमीशन से संबद्ध और नानजिंग विश्वविद्यालय के शोधकर्ताओं ने 2.7 डिग्री सेल्सियस तापमान बढ़ने की स्थिति का आकलन किया है। एक्सेटर विश्वविद्यालय में ग्लोबल सिस्टम्स इंस्टीट्यूट के निदेशक प्रोफेसर टिम लेंटन ने कहा, ‘‘जलवायु परिवर्तन की लागत अक्सर वित्तीय शर्तों में व्यक्त की जाती है, लेकिन हमारा अध्ययन जलवायु आपातकाल से निपटने में असफल होने की अभूतपूर्व मानवीय लागत को रेखांकित करता है।’’ 

सदी के अंत तक 39 फीसदी आबादी होगा खतरनाक गर्मी के चपेट में

शोधकर्ताओं ने कहा कि सदी के अंत की अनुमानित आबादी (950 करोड़) का 22 प्रतिशत से 39 प्रतिशत हिस्सा खतरनाक गर्मी (औसत तापमान 29 डिग्री सेल्सियस या अधिक) के संपर्क में होगा। उन्होंने कहा कि तापमान को 2.7 डिग्री सेल्सियस से घटाकर 1.5 डिग्री सेल्सियस करने से अभूतपूर्व गर्मी के संपर्क में आने वाली आबादी (210 करोड़ से 40 करोड़) में पांच गुना कमी (22 प्रतिशत से 5 प्रतिशत) होगी। अध्ययन में कहा गया है कि 60 करोड़ से अधिक लोग (वैश्विक आबादी का लगभग 9 प्रतिशत) पहले से ही खतरनाक गर्मी के संपर्क में हैं। 

भारत की भी आबादी होगी इससे प्रभावित

तापमान 2.7 डिग्री सेल्सियस बढ़ने पर सबसे ज्यादा भारत में 60 करोड़ से अधिक की आबादी प्रभावित होगी। वहीं 1.5 डिग्री सेल्सियस की स्थिति में यह आंकड़ा बहुत कम, लगभग नौ करोड़ होगा। तापमान 2.7 डिग्री बढ़ने पर दूसरा सबसे ज्यादा प्रभावित होने वाला देश नाइजीरिया होगा जहां ऐसे लोगों की संख्या 30 करोड़ से अधिक होगी। वहीं 1.5 डिग्री सेल्सियस तापमान बढ़ने पर यह आंकड़ा चार करोड़ से कम होगा। 

इन देशों में रहना हो जाएगा मुश्किल

अध्ययन के मुताबिक 2.7 डिग्री सेल्सियस तापमान बढ़ने पर, बुर्किना फासो और माली सहित कुछ देशों में रहना मनुष्यों के लिए खतरनाक होगा। ऑस्ट्रेलिया और भारत भी गर्म क्षेत्र (लगभग 40 प्रतिशत) में भारी वृद्धि का सामना करेंगे। बता दें कि पेरिस समझौते के तहत, 190 से अधिक देशों ने इस सदी के अंत तक वैश्विक तापमान में वृद्धि को 2 डिग्री सेल्सियस (पूर्व-औद्योगिक स्तरों की तुलना में) और मुख्य रूप से 1.5 डिग्री सेल्सियस तक सीमित करने का संकल्प लिया था। 
 

Web Title: By the end of the century more than 60 crore population of India will be in the grip of severe heat study

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