शिव की इस 'दीवानी' के नाम पर है भारत यह शहर, जानें उस देवी की कहानी
By लोकमत समाचार हिंदी ब्यूरो | Published: December 21, 2017 06:56 PM2017-12-21T18:56:45+5:302017-12-21T19:02:31+5:30
मंदिर तीनों समुद्रों के संगम स्थल पर बना हुआ है। यहां सागर की लहरों की आपको मंत्रमुग्ध कर देंगी।
कन्याकुमारी मंदिर भारत के सबसे रहस्यमयी मंदिरों में से एक है। यह अपनी अपनी मान्यताओं और रहस्यों के लिए जाना जाता है। समुद्र तट पर बना यह मंदिर देश का एकमात्र ऐसा मंदिर है जहां प्रवेश करने के लिए पुरूषों को कमर के ऊपर के कपड़े निकालने पड़ते हैं। इस मंदिर में माता पार्वती को कन्या के रूप में पूजा जाता है। मंदिर तीनों समुद्रों के संगम स्थल पर बना हुआ है। यहां सागर की लहरों की आपको मंत्रमुग्ध कर देंगी। भक्तगण मंदिर में प्रवेश करने से पहले त्रिवेणी संगम में डुबकी लगाते हैं जो मंदिर के बाई ओर 500 मीटर की दूरी पर है।
कौन थी देवी कन्या
देवी कुमारी पांड्य राजाओं की अधिष्ठात्री देवी थीं। पौराणिक कथाओं के अनुसार शक्ति की देवी जन्म वाणासुर का अंत करने के लिए हुआ था। वाणासुर के अत्याचारों से जब धर्म का नाश होने लगा तो सारे देवता भगवान विष्णु की शरण में पहुंचे। उन्होंने देवताओं को बताया कि उस असुर का अंत केवल देवी पराशक्ति कर सकती हैं। भगवान विष्णु ने बताया कि वाणासुर ने इतने वरदान पा लिए हैं कि उसे कोई नहीं मार सकता। लेकिन उसने यह वरदान नहीं मांगा कि एक कुंवारी कन्या उसका अंत नहीं कर सकती। देवताओं ने अपने तप से पराशक्ति को प्रसन्न किया और वाणासुर से मुक्ति दिलाने का वचन भी ले लिया। तब देवी ने एक कन्या के रूप में अवतार लिया। तभी से कहा जाता है इस राज्य का नाम कन्याकुमारी पड़ा।
पौराणिक कथा
देवी कन्या जब युवा हुई तो उनका विवाह भगवान शिव से होना निश्चित हुआ। लेकिन उनका जन्म तो वाणासुर का वध करने के लिए हुआ था अगर वह शादी कर लेंती तो वाणासुर का वध होना असंभव था। अंतत: कन्या की शादी शिव से नहीं हो पाई। जिससे नाराज होकर कन्या ने आजीवन कुंवारी रहने का प्रण ले लिया। कन्या इतनी सुंदर थी कि राक्षस वाणासुर उनपर मोहित हो गया और वह कन्या के सामने विवाह का प्रस्ताव रख दिया। कन्या क्रोध में आकर वाणासुर का अंत कर दिया। तब देवताओं ने समुद्र तट पर पराशक्ति के कन्याकुमारी स्वरूप का मंदिर स्थापित किया। इसी आधार पर यह स्थान भी कन्याकुमारी कहलाया तथा मंदिर को कुमारी अम्मन यानी कुमारी देवी का मंदिर कहा जाने लगा।
दाल-चावल स्वरूप वाले कंकड़
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार इस स्थान पर देवी का विवाह संपन्न न हो पाने के कारण बचे हुए दाल-चावन बाद में कंकड़-पत्थर बन गए। इसलिए कन्याकुमारी के रेत में दाल और चावल के रंग-रूप वाले कंकड़ बहुत मिलते हैं।