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भारत के इस राज्य में शादी से पहले ही मना लेते हैं सुहागरात, सदियों से चली आ रही है परंपरा

By मेघना वर्मा | Updated: July 15, 2018 07:14 IST

इस परंपरा में लड़कों साथ लड़कियां भी शामिल होती हैं। घोटुल में आने वाले लड़के को चेलिक और लड़की को मोटियार कहा जाता है।

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देश में हमेशा ही पब में जाना या लड़कियों का लड़कों के साथ बाहर जाना रात भर रुकना जैसी चीजें गलत मानी जाती हैं। कुछ लोग ऐसे भी हैं जो इन सभी चीजों को भारत के खिलाफ और विदेशों से आया कल्चर बताते हैं। हम आपको बता दें कि यह कल्चर कहीं और से नहीं बल्कि भारत से ही आया है जिसकी झलक अभी भी भारत के छत्तीसगढ़ में देखने को मिलती है। छत्तीसगढ़ के बस्तर इलाके में एक जनजाती ऐसी भी रहती है जो शादी से पहले सुहागरात मना लेती है। जी हां यह प्रथा गोंड जनजाति से जुड़ी हुई एक पवित्र और शिक्षाप्रद प्रथा मानी जाती है। हैरानी की बात तो यह है कि लोगों का कहना है कि आज तक इस प्रथा के कारण ना कभी कोई अपराधिक घटना जैसे बलात्कार जैसा घटना भी इस इलाके में नहीं हुई है। क्या है यह प्रथा और क्या है यहां की मान्यता आप भी जानिए। 

मुरिया समुदाय की घोटुल परंपरा

बता दें कि यह परंपरा है घोटुल। गोंड जनजाति की छत्तीसगढ़ से झारखंड तक के जंगलों में उपजाति है मुरिया। मुरिया के लोगों की इस अजीबो-गरीब परंपरा को घोटुल का नाम दिया गया है। यह परंपरा दरअसल इस जनजाति के किशोरों को शिक्षा देने के उद्देश्य से शुरू किया गया है। इसमें दिन में बच्चे शिक्षा से लेकर घर–गृहस्थी तक के पाठ पढ़ते हैं तो शाम के समय मनोरंजन और रात के समय सेक्स का आनंद भी लेते हैं। इस परंपरा में लड़कों साथ लड़कियां भी शामिल होती हैं। घोंटुल में आने वाले लड़के को चेलिक और लड़की को मोटियार कहा जाता है।

घोटुल का निर्माण होता है जरूरी

आपको बता दें इस जनजाती के लोग जिस भी जगह पर होते हैं वहां घोटुल यानी बांस या मिट्टी की बनीं झोपड़ी का निर्माण जरूर करवाया जाता है। इसे इस जनजाती का विश्वविद्यालय भी कहा जा सकता है। दरअसल गोंड जनजाति के बच्चे पढ़ने के लिए स्कूल या कॉलेज नहीं जाते बल्कि उन्हें सभी तरह की शिक्षा इस घोटुल में ही दी जाती है। दिन के समय यहां पाठ पढ़ाया जाता है, जिसमें आरंभिक शिक्षा से लेकर सामाजिक रहन–सहन, आचार–व्यवहार और रिश्ते–नातों के संबंध में गहन जानकारी दी जाती है। इसी दौरान लड़कियों को घर को संभालने की दृष्टि से मानसिक रूप से तैयार करने की कोशिश होती है। घोटुल की पूरी साफ–सफाई और अन्य कामों का जिम्मा वहां रह रही बालिका पर होता है।

कैसे शुरू हुई यह प्रथा

दरअसल यह प्रथा लिंगो पेन यानी लिंगो देव ने शुरू की थी। समस्त गोंड समुदाय को पहांदी कुपार लिंगो ने कोया पुनेम के मध्यम से एक सूत्र में बंधने का काम किया। लिंगो देव को गोंड जनजाति का देवता माना जाता है। मान्यता है कि सदियों पहले जब लिंगो देव ने देखा कि गोंड जाति में किसी भी तरह की शिक्षा का कोई स्थान नहीं है तो उन्होंने एक अनोखी प्रथा शुरू की। उन्होंने बस्ती के बाहर बांस की कुछ झोंपडियां बनवाई और बच्चों को वहां पढ़ाना शुरू कर दिया। यही झोंपडियां बाद में 'घोंटुल' के नाम से प्रसिद्ध हुईं। इनमें बच्चों को जीवन से जुड़ी हर शिक्षा दी जाती थी।

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पसंद आने पर कंघी चुरा लेती हैं

घोंटुल में आई लड़की को जब कोई लड़का पसंद आता है तो वह उसकी कंघी चुरा लेती है। यह संकेत होता है कि वह उस लड़के को चाहती है। जैसे ही वह लड़की यह कंघी अपने बालों में लगाकर निकलती है, सबको पता चल जाता है कि वह किसी को चाहने लगी है ।

कैसे चुनते हैं प्रेमी-प्रेमिका

इस प्रथा में प्रेमी-प्रेमिका जो बाद में जीवनभर के लिए जीवनसाथी भी बनते हैं, उनके चयन का तरीका भी अनूठा है। दरअसल जैसे ही कोई लड़का घोंटुल में आता है और उसे लगता है कि वह शारीरिक रूप से मेच्योर हो गया है, उसे बांस की एक कंघी बनानी होती है। यह कंघी बनाने में वह अपनी पूरी ताकत और कला झोंक देता है। क्योंकि यही कंघी तय करती है कि वह किस लड़की को पसंद आएगा।

जैसे ही लड़के-लड़की की जोड़ी बन जाती है तो वे दोनों मिलकर अपनी घोंटुल यानी झोंपड़ी को सजाते-संवारते हैं और दोनों एक ही झोंपड़ी में रहने लगते हैं । इस दौरान वे वैवाहिक जीवन से जुड़ी तमाम सीख हासिल करते हैं। इसमें एक-दूसरे की भावनाओं से लेकर शारीरिक ज़रूरतों को संतुष्ट करना तक शामिल होता है।

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