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Happy Birthday Jim Corbett: 500 लोगों को जिंदा चबाने वाली बाघिन को मार उत्तराखंड का मसीहा बना था यह शिकारी

By गुलनीत कौर | Updated: July 25, 2018 10:35 IST

जिम कॉर्बेट हमेशा कहते थे कि कोई भी जानवर खुद से आदमखोर नहीं बनता है। उसे किसी ना किसी कारण से उकसाया जाता है।

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यह 19वीं सदी की बात है, नेपाल और भारत के उत्तराखंड के कुमाऊं इलाके में लोगों के बीच दहशत की स्थिति थी। एक-एक करके करीब 436 लोगों की मौत हो चुकी थी। लेकिन इतनी मौतें किसी बीमारी या दुर्घटना के कारण नहीं, बल्कि एक बाघिन द्वारा शिकार बन जाने के कारण हो रहीं थी। 

गांव वालों में तो यह दहशत दशाता फैल गई थी कि हो ना हो यह किसी चुड़ैल का साया है, जिस वजह से एक-एक करके गांव में इतनी जानें जा चुकी हैं। गांव में हुई मौतों का सरसरे तौर पर आंकड़ा 500 तक बताया जाता है। लेकिन फिर एक दिन गांव वालों को मसीहा के रूप में एक शिकारी मिला, जिसका नाम था 'जिम कॉर्बेट'।

जिम कॉर्बेट एक मंझरे हुए शिकारी थे, जो आदमखोर जानवरों का आसानी से शिकार करना जानते थे। वे हमेशा कहते थे कि कोई भी जानवर खुद से आदमखोर नहीं बनता है। उसे किसी ना किसी कारण से उकसाया जाता है और फिर गुस्से में आकर वो दूसरों को नुकसान पहुंचाता है। 

नेपाल से शुरू हुआ मौत का किस्सा

मौतों का यह सिलसिला नेपाल की पहाड़ियों से शुरू हुआ जहां बेहद शातिर और चालाक बाघिन ने एक-एक करके लोगों को अपना शिकार बनाना शरू किया। वो हमेशा छिपकर वार करती थी। कुछ ही समय में इस बाघिन ने करीब 200 लोगों को अपना शिकार बनाया।

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भारत में दहशत

नेपाल के बाद बाघिन जंगलों से होते हुए भारत में दाखिल हुई। अब तक इस बाघिन में इंसानों का डर खत्म हो चुका था और अब ये सामने से वार करने लगी थी। इसका तरीका इतना खौफनाक हो चुका था कि अब आर्मी वाले भी इसे कंट्रोल करने में नाकाम हो रहे थे। आंकड़ों के मुताबिक भारत में बाघिन ने करीब 236 जानों को अपना शिकार बनाया था। 

भारत में कई बड़े-बड़े शिकार्यों को इस बाघिन को मारने का जिम्मा दिया गया। लेकिन किसी के लिए भी इसके पैंतरों को समझना आसान नहीं था। खुद जिम कॉर्बेट को भी इसका शिकार करने में काफी समय लगा।

ऐसे बचाई लोगों की जान

बाघिन हमेशा जिम कॉर्बेट के साथ लुकाछिपी का खेल खेलती। जिस गांव में वे उसे खोजने जाते, वो वहां से 10 गांव दूर निकल जाती और वहां किसी मासूम को अपना शिकार बनाती। ये बाघिन पहले से कई गुणा अधिक शातिर हो चुकी थी। 

जिम कॉर्बेट ने इस बाघिन को पकड़ने के लिए कई प्लान बनाए। लेकिन उनका हर प्लान नाकाम होता चला जाता था। लेकिन एक दिन बाघिन ने 16 साल की एक लड़की को जब अपना शिकार बनाया तो जिम कॉर्बेट ने बाघिन का पीछा किया। यह बाघिन का आख़िरी शिकार थी। 

बाघिन अपने शिकार को मारने के बाद घसीटते हुए जंगलों में ले जा रही थी। एक जगह पहुंचकर वो रुक गई। रात हो चुकी थी इसलिए जिम कॉर्बेट ने बाघिन पर हमला करने की बजाय सुबह होने का इन्तजार किया। और सुबह होते ही उसे गोली मारकर सभी को राहत की सांस दी।

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क्या कहते थे जिम कॉर्बेट

1907 से 1938 के बीच करीब 33 मैनईटर्स को मौत के घात उतारने वाले जिम कॉर्बेट का मानना था कोई भी जानवर अपनी मर्जी से आदमखोर नहीं बनता है। बाघ या कोई भी अन्य जानवर जब जख्मी हो जाए, बूढ़ा हो जाए या अपने इलाके से खदेड़ा जाए, तो अपना गुस्सा वो खुद से कमजोर लोगों पर निकालना शुरू कर देता है। 

शुरू में ऐसा हर जानवर इंसानों से भी डरता है लेकिन एक बार जब वह शिकार करने में सफल हो जाता है तब उसकी हिम्मत बढ़ जाती है। लेकिन अगर समय से उसका मुश्किल का हल कर दिया जाए तो यह जानवर कहर मचाना बंद कर सकता है। 

जिम कॉर्बेट ऐसे आदमखोर जानवरों को एक ही गोली के वार से ढेर कर देते थे। लेकिन यह भी सच है कि उन्हें मारने के बाद जिम कॉर्बेट को काफी दुःख होता था।

जिम कॉर्बेट नेशनल पार्क

साल 1957 में हैली नेशनल पार्क का नाम बदलकर जिम कॉर्बेट नेशनल पार्क रख दिया गया। लेकिन अफसोस है कि इस उपाधि के मिलने से ठीक 2 साल पहले ही जिम कॉर्बेट का देहांत हो चुका था। जिम कॉर्बेट ने कुमाऊं गांव के सी किस्से पर स्वयं एक किताब भी लिखी थी जिसका नाम था 'मैन ईटर्स ऑफ कुमाऊं'।

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