हिंदू त्योहारों के लिए क्यों होती हैं दो तिथियां, जानिए व्रत और त्योहार की दोहरी तिथियों पर पंचांग का प्रभाव
By मनाली रस्तोगी | Updated: October 24, 2024 07:14 IST2024-10-24T07:13:04+5:302024-10-24T07:14:09+5:30
दिवाली 2024 सहित हिंदू त्योहारों में अक्सर दोहरी तारीखें होती हैं, जिससे भ्रम की स्थिति पैदा होती है। इस वर्ष, दीपावली या तो 31 अक्टूबर या 1 नवंबर को है, जिससे कई लोग अनिश्चित हैं कि कौन सा दिन मनाया जाए।

हिंदू त्योहारों के लिए क्यों होती हैं दो तिथियां, जानिए व्रत और त्योहार की दोहरी तिथियों पर पंचांग का प्रभाव
क्या आपने कभी गौर किया है कि हिंदू त्योहारों की कभी-कभी दो तारीखें होती हैं? यह बात दिवाली 2024 पर भी लागू होती है, जिससे लोग भ्रमित रहते हैं कि दिवाली 31 अक्टूबर या 1 नवंबर को कब मनाई जाए। इस घटना का श्रेय अक्सर प्राचीन भारतीय कैलेंडर प्रणाली, पंचांग को दिया जाता है। हिंदू त्योहारों और व्रतों की तारीखें निर्धारित करने में हिंदू पंचांग महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
यह चंद्र चक्र, ग्रहों की स्थिति और सौर गति सहित विभिन्न खगोलीय कारकों पर विचार करता है। ये खगोलीय प्रभाव त्योहारों के समय में भिन्नता पैदा कर सकते हैं, जिसके परिणामस्वरूप दो संभावित तिथियां हो सकती हैं।
हिंदू त्योहारों की दो तिथियां क्यों होती हैं? जानिए पंचांग का प्रभाव
हिंदू त्योहारों की दोहरी तारीखें पंचांग गणना प्रणाली में भिन्नता के कारण होती हैं, जो पूरे भारत में क्षेत्रीय मतभेदों से प्रभावित होती हैं। चंद्र चक्र और सौर घटनाओं के आधार पर, हिंदू कैलेंडर की जटिल गणना के परिणामस्वरूप अलग-अलग त्योहारों की तारीखें अलग-अलग क्षेत्रों में दो अलग-अलग दिनों में मनाई जा सकती हैं।
-अमावस्या और पूर्णिमा कैलेंडर: भारत के त्योहार की तारीखों में क्षेत्रीय भिन्नताएं अलग-अलग कैलेंडर प्रणालियों से उत्पन्न होती हैं। दक्षिणी भारत और गुजरात अमावस्या कैलेंडर (अमावस्या से अमावस्या तक) का पालन करते हैं, जबकि उत्तरी भारत पूर्णिमांत कैलेंडर (पूर्णिमा से पूर्णिमा तक) का उपयोग करता है। इस विचलन के परिणामस्वरूप त्योहार की तारीखें परस्पर विरोधी होती हैं, जो भारत की समृद्ध सांस्कृतिक विविधता और क्षेत्रीय मतभेदों को उजागर करती हैं।
-चंद्र और सौर कैलेंडर का मिश्रण: हिंदू कैलेंडर चंद्र और सौर मंडल का मिश्रण है, जिससे तिथियों में भिन्नता होती है। अधिकांश त्योहार चंद्र तिथियों (तिथि) का पालन करते हैं, जबकि अन्य, जैसे मकर संक्रांति, सौर गतिविधियों (सूर्य का मकर राशि में प्रवेश) पर निर्भर करते हैं। इस दोहरे दृष्टिकोण के परिणामस्वरूप अलग-अलग तिथियां होती हैं, जिसका उदाहरण चंद्र अमावस्या पर दिवाली का उत्सव है, जो मकर संक्रांति के सौर-आधारित समय के विपरीत है।
- अधिक मास और क्षय मास का प्रभाव: हिंदू कैलेंडर में चंद्र और सौर चक्र को संरेखित करने के लिए समय-समय पर समायोजन किया जाता है। हर तीन साल में अधिक मास (या मल मास) नामक एक अतिरिक्त महीना जोड़ा जाता है, जिससे त्योहार की तारीखें बदल जाती हैं। इसके अतिरिक्त, क्षय मास, जो कि एक छोटा महीना है, की कभी-कभी घटना भी त्योहार के समय को प्रभावित करती है, जिससे यह सुनिश्चित होता है कि चंद्र और सौर कैलेंडर समकालिक बने रहें।
- विभिन्न संप्रदाय (संप्रदाय) और उनके पंचांग: बंगाली, तमिल, गुजराती और तेलुगु पंचांग जैसी क्षेत्रीय विविधताओं के साथ-साथ विक्रम संवत और शक संवत सहित विभिन्न संप्रदायों के लिए अलग-अलग पंचांगों का उपयोग किया जाता है। ये विविध कैलेंडर त्योहार की तारीखों में विसंगतियों का कारण बनते हैं, जो भारत की समृद्ध सांस्कृतिक विविधता को उजागर करते हैं। क्षेत्रीय पंचांगों की अनूठी गणना के परिणामस्वरूप उत्सवों का समय अलग-अलग होता है।
- स्मार्त और वैष्णव परंपराएँ: हिंदू धर्म में स्मार्त और वैष्णव परंपराओं में त्योहार की तारीखों के बारे में अलग-अलग दृष्टिकोण हैं। वैष्णव अनुयायी पंचांग में भगवान विष्णु से संबंधित घटनाओं से जुड़े त्योहार मनाते हैं, जबकि स्मार्त अनुयायी सामान्य पंचांग का पालन करते हैं। यह अंतर दोनों परंपराओं के बीच त्योहार की तारीखों में भिन्नता की ओर ले जाता है, जो उनके अद्वितीय आध्यात्मिक फोकस और सांस्कृतिक प्रथाओं को दर्शाता है।
(Disclaimer: इस लेख में दी गई जानकारियों की Lokmat Hindi News पुष्टि नहीं करता है। यहां दी गई जानकारी मान्यताओं पर आधारित हैं। अधिक जानकारी के लिए हमेशा किसी विशेषज्ञ से परामर्श लें।)